लखनऊ: 22 अप्रैल को पूरे विश्व में पृथ्वी दिवस को मनाया जाता है. पर्यावरण का संतुलन होना बहुत जरूरी है क्योंकि पर्याप्त मात्रा में वन क्षेत्रफल के जरिए ही हमें प्रचुर मात्रा में मुफ्त ऑक्सीजन मिलती है, लेकिन मानव ने अपने आर्थिक लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पृथ्वी का भरपूर दोहन किया है जिसका खामियाजा हम भुगत रहे हैं. कही न कहीं इसी का नतीजा है कि इस समय देश कोरोना वायरस की महामारी के कारण बुरी तरह से प्रभावित है. लोग ऑक्सीजन की कमी के कारण मर रहे हैं. साल 2021 में इसके 51 साल पूरे होने जा रहे हैं.
पृथ्वी दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण हेतु जागरूक करना है. मौजूदा समय में ग्लेशियर पिघल रहे हैं, ग्लोबल वार्मिंग बढ़ रहा है और प्रदूषण भी खूब बढ़ रहा है. इतना ही नहीं पृथ्वी पर वन क्षेत्रफल भी लगातार कम होता जा रहा है. उत्तर प्रदेश में तो वन क्षेत्रफल अब घटकर 9.20 फ़ीसदी रह गया है. ऐसी स्थति में पृथ्वी की गुणवत्ता, उर्वरकता और महत्ता को बनाए रखने के लिए हमें पर्यावरण और पृथ्वी को सुरक्षित रखने की जरूरत है. इसके लिए पेड़ों को लगाने की जरूरत है.
क्या है पृथ्वी दिवस का इतिहास
पृथ्वी हमें रहने के लिए स्थान ही नहीं देती बल्कि उसके पर्यावरण के चलते हमारा जीवन संभव है. लगातार बिगड़ते पर्यावरण के कारण पृथ्वी का संतुलन बिगड़ रहा है. इसलिए 1970 में अमेरिकी सीनेटर गेलोर्ड नेल्सन ने पर्यावरण शिक्षा के रूप में इस दिवस की स्थापना की थी. जिसके बाद से पृथ्वी दिवस मनाने की प्रथा शुरू हुई. 22 अप्रैल 1970 से प्रारम्भ हुए इस दिवस को आज पूरी दुनिया के 195 से अधिक देश मनाते हैं.
क्या है पृथ्वी दिवस का उद्देश्य
22 अप्रैल 2021 को पृथ्वी दिवस की 51वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को पृथ्वी और पर्यावरण के संरक्षण के प्रति जागरूक करना है. यह ग्रह कई प्रकार के जीवों और वनस्पति का गृह है और इसको बचाना हम सभी का दायित्व है. तकनीक और विज्ञान के दौर में जिस तरह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं, औसत तापमान बढ़ रहा है, बेमौसम बारिश आम हो गई है, मिट्टी की क्वालिटी घट रही है, प्रदूषण तेजी से बढ़ रहा और कंक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं, इन तमाम चीजों के बीच पृथ्वी को बचाना और इस पर ध्यान देना हमारी जिम्मेदारी है.
ऑक्सीजन की कमी से जूझ रहा है देश
पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीव-जंतुओं को ऑक्सीजन मुफ्त में प्रकृति द्वारा मिलती है, लेकिन अब मानव द्वारा किए जा रहे पृथ्वी के आर्थिक दोहन के चलते पृथ्वी और प्रकृति हमारी अपेक्षाओं को पूरा करने में असमर्थ दिखाई दे रही है. जिसके चलते ही जो पहले कभी नहीं हुआ वह दिन अब देखने को मिल रहे हैं. देश में कोरोनावायरस की दूसरी लहर का संक्रमण जारी है. इस संक्रमण के कारण देश के कई राज्य बुरी तरह से प्रभावित हैं. जहां इन दिनों ऑक्सीजन की कमी के कारण लोगों की सांसे थम रही हैं. जो ऑक्सीजन हमें पर्यावरण द्वारा अब तक मुफ्त मिलती थी, अब हम उसकी कीमत चुकाने को तैयार हैं, फिर भी हमें नहीं मिल पा रही है.
उत्तर प्रदेश में घट रहा है वन क्षेत्रफल
उत्तर प्रदेश में प्रदेश की योगी सरकार द्वारा हर साल रिकॉर्ड संख्या में पौधारोपण का कार्य किया जा रहा है. वहीं इस बार भी 30 करोड़ पौधारोपण करने का लक्ष्य है, जिसकी तैयारियां चल रही हैं. इन दिनों प्रदेश में वन क्षेत्रफल की स्थिति अब 9.20 फीसदी रह गई है जो कि औसत से काफी कम है. वन विभाग के मुख्य वन संरक्षक मुकेश कुमार ने बताया कि इस बार प्रदेश सरकार 30 करोड़ पौधारोपण करने का लक्ष्य रखा गया है. वन विभाग का प्रयास है कि वृक्षारोपण के द्वारा ही वन क्षेत्रफल को बढ़ाया जाए.
खतरे में हमारी धरती
जलवायु परिवर्तन के कारण मानव स्वास्थ्य पर इसका असर हो रहा है. औद्योगीकरण के पूर्व काल में कार्बन डाइआक्साइड का स्तर 280 पीपीएम था, जो अब 410 पीपीएम तक पहुंच गया है.जलवायु परिवर्तन का मानव स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इस बार कोरोना काल में ऑक्सीजन की कमी के रूप में इसका दुष्प्रभाव भी देखने को मिल रहा है. विश्व के अनेक भागों में पड़ने वाली तेज गर्मी और लू के थपेड़ों का सीधा संबंध जलवायु परिवर्तन से है और ये परिस्थितियां लाखों लोगों के जानलेवा बन जाती हैं. जलवायु परिवर्तन ने अनेक बीमारियों के प्रसार को भी बढ़ावा दिया है. मलेरिया, डेंगू ,कोरोना जैसी बीमारियां इसी का नतीजा हैं.
जनजीवन और अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा जलवायु परिवर्तन
भारत के जनजीवन और अर्थव्यवस्था को जलवायु परिवर्तन बहुत गहराई से प्रभावित कर रहा है. देश में सत्तर करोड़ से ज्यादा लोग आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर हैं. भारत विश्व की ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का साढ़े चार फीसद हिस्सा उत्सर्जित करता है. जलवायु परिवर्तन से सूखे और बाढ़ के हालात बनते हैं, जिनका सीधा प्रभाव किसानों पर पड़ता है. वरिष्ठ पर्यावरण विशेषज्ञ रविंद्र सिन्हा बताते हैं कि इस बार पृथ्वी दिवस के कुछ खास मायने हैं, जिस पर हमारे पर्यावरण वैज्ञानिकों को गहनता से चिंतन करना होगा. क्योंकि कोरोनावायरस की महामारी के चलते कई अवस्थाएं भी हमारे सामने दिखाई दे रही हैं. इसलिए सबको मिलजुल कर इस पर्यावरण को बचाने और अपने पृथ्वी को समृद्ध बनाने के लिए हमें प्रयास करना होगा.