ETV Bharat / state

50 वर्ष पुराना पॉलिस्टर खादी उद्योग बंद होने के कगार पर, हजारों लोगों का छिनेगा रोजगार

50 वर्ष पुराना पॉलिस्टर खादी उद्योग बंद होने के कगार पर है. ईटीवी भारत ने पावर लूम-हैंडलूम संचालकों और मजदूरों से बात करके उनकी समस्याओं और मांगों को प्रशासन तक पहुंचाने का काम किया है. देखिए यह रिपोर्ट...

Etv Bharat
50 वर्ष पुराना पॉलिस्टर खादी उद्योग बंद होने के कगार पर
author img

By

Published : Oct 15, 2022, 1:13 PM IST

Updated : Nov 4, 2022, 7:40 PM IST

कासगंज: जिले के छोटे से कस्बे गंजडुंडवारा की पॉलिस्टर खादी पिछले 50 वर्षों से लोगों की पसंद बनी हुई है. इस पॉलिस्टर खादी को बनाने के लिए नगर में काफी संख्या में पावर लूम और हैंडलूम की मशीनें लगी हुई हैं. इन कारखानों से हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है. लेकिन, अब सरकार की गलत नीतियों और उदासीनता के कारण यह उद्योग बंद होने के कगार पर है. हजारों लोगों से उनका रोजगार छिनने की नौबत आ गई है. आज शनिवार को ईटीवी भारत ने पावर लूम-हैंडलूम संचालकों और मजदूरों से बात करके उनकी समस्याओं और मांगों को प्रशासन तक पहुंचाने का काम किया है.

कासगंज का गंजडुंडवारा कस्बा पॉलिस्टर खादी के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. यहां पर छोटे बड़े हैंडलूम और पावर लूम की काफी मशीनें लगी हुई हैं. जहां एक तरफ हैंडलूम पर काम करने वाले मजदूर मात्र 50 से 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कमा रहे हैं तो वहीं, पावरलूम पर काम करने वाले मजदूरों को मात्र 200 से 300 रुपये तक की आमदनी ही हो पा रही है. इससे घर खर्च चलाना बहुत मुश्किल हो रहा है. दाल रोटी की जुगाड़ हो जाए यही बहुत है. आवश्यकता पड़ने पर मजदूर पावर लूम और हैंडलूम संचालकों से पैसे उधार लेते हैं. उन पैसों को चुका पाना भी मजदूरों के लिए लोहे के चने चबाने जैसा होता है.

लूम-हैंडलूम संचालकों और मजदूरों ने दी जानकारी
हथकरघा (हैंडलूम) चलाकर कड़ी मेहनत कर दिन भर में चार से पांच गमछा बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाली शहनाज बताती हैं कि वह मात्र 50 से 100 रुपये प्रतिदिन कमाती हैं. कभी अगर अस्वस्थ हो जाएं तो एक पैसा भी नहीं मिल पाता. लेकिन, हम क्या करें, हमें इसके अलावा और कोई दूसरा काम भी नहीं आता है. इसके चलते इस काम को छोड़ भी नहीं सकते. सरकार को और प्रशासन को हमारे बारे में सोचना चाहिए.पावर लूम संचालक अब्दुल हकम बताते हैं कि मेरे पिता का पावरलूम का कारखाना लगा हुआ है. लेकिन, हम भविष्य में इस काम को नहीं करना चाहेंगे. क्योंकि, बिजली के हालात बहुत खराब हैं. पर्याप्त बिजली नहीं मिलती है और पिछले कई सालों से हमारे बिजली के बिल भी नहीं आए हैं. इसके अलावा हमारे इस उद्योग को जो पहले सब्सिडी मिलती थी वह भी सरकार ने बंद कर दी है. इसके चलते इस धंधे में दिन प्रतिदिन घाटा हो रहा है.पावर लूम संचालक मुमताज हुसैन बताते हैं कि लाइट सुचारू रूप से नहीं मिल पाती है. सरकार ने सब्सिडी बंद कर दी है. हमारे पास 4 पावरलूम की मशीनें हैं. लेकिन, बिजली विभाग ने अनाप-शनाप बिल भेज दिया है. एक वर्ष पूर्व बिल भेजा था 27000 रुपये का और अब 29 लाख 90 हजार का बिल भेज दिया है. हमारी सारी मशीनें और घर भी बिक जाए, तब भी हम बिल का भुगतान नहीं कर पाएंगे. इन्हीं परेशानियों के चलते लोग यह काम छोड़ रहे हैं. कई लोगों ने तो अपनी पावर लूम मशीनें कबाड़ के भाव में बेच दीं हैं. लोग धंधा बदल रहे हैं. कोई सब्जी बेच रहा है तो कोई हाथ ठेल लगा रहा है. लेकिन, अब यह धंधा कोई करना नहीं चाहता है.

इसे भी पढ़े-ढाई सौ करोड़ की लागत से सुधरेगी देश के सबसे पुराने संस्कृत विश्वविद्यालय की सूरत, ये है प्लान

पावर लूम में काम करने वाले मजदूर उवैदुर्रहमान बताते हैं कि वह लगभग 20 वर्षो से पावर लूम मशीन चलाने का काम करते है. पावर लूम संचालकों की दिन-ब-दिन मशीनें बढ़ती गई. लेकिन हमारी दिहाड़ी उस हिसाब से नहीं बढ़ी. आज से 20 साल पहले 100 रुपये मिलता था अब ढाई सौ से 300 रुपये तक मिलता है. इसमें खाली दाल रोटी ही चल पाती है. अगर कभी बीमारी हो जाए तो मालिकों से पैसा उधार लेना पड़ता है और उन्हें चुकाते चुकाते सालों बीत जाते हैं.

पावर लूम कारखाने में काम करने वाले मजदूर राकेश कुमार बताते हैं कि वह 9 घंटे प्रतिदिन काम करते हैं. तब जाकर 200 से 250 रुपये कमाते हैं. हमें हमारी मेहनत का आधा पैसा तक नहीं मिल रहा है. देखा जाए तो आज के हिसाब से कम से कम प्रतिदिन की मजदूरी 500 रुपये तक मिलनी चाहिए.

गंजडुंडवारा के सबसे पुराने और प्रसिद्ध पावर लूम संचालक स्टैंडर्ड ब्रांड के मालिक मुबीन भाई बताते है कि सबसे बड़ी समस्या बिजली की है. पिछले 2 सालों से पावर लूम संचालकों की बिलिंग नहीं हुई है. इसके चलते पावर लूम संचालकों को डर है कि पता नहीं कितना अनाप-शनाप बिल बिजली विभाग से भेजा जाएगा. अभी हाल ही में लाखों रुपये के बिजली के बिल संचालकों को आए हैं. जिनके यहां मात्र चार मशीनें लगी हुई है. दूसरा, पहले सरकार हम लोगों को सब्सिडी दिया करती थी. लेकिन, अब पिछले 2 सालों से पावर लूम संचालकों को सब्सिडी मिलनी भी बंद हो गई है. अब हम सब को डर है कि बिजली का बिल बिना सब्सिडी के आएगा या सब्सिडी काट के आएगा यह संशय बना हुआ है. जिसके चलते लोग अब यह कारोबार छोड़ रहे हैं. पहले सब्सिडी 65 रुपये प्रति मशीन मिला करती थी. अभी 2 साल पहले 135 रुपये प्रति मशीन सब्सिडी मिला करती थी.

इसके अलावा रेलवे ट्रांसपोर्ट बिल्कुल बंद हो गया है. पहले गंजडुंडवारा रेलवे स्टेशन से ही माल लोड होकर दूसरे शहर और दूसरे प्रदेशों में जाया करता था. अब रेलवे का ट्रांसपोर्ट बंद होने से काफी परेशानी हो रही है. हमारी सरकार से यही मांग है कि रोकी गई सब्सिडी को फिर से शुरु किया जाए और बिजली के बिलों की जल्द से जल्द बिलिंग कराई जाए. साथ ही पर्याप्त मात्रा में बिजली दी जाए और रेलवे ट्रांसपोर्ट को पुनः शुरू किया जाए. इसके अलावा कासगंज जिलाधिकारी से मेरा निवेदन है कि हमारे इस उद्योग को वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट के रूप में शामिल किया जाए और इसे प्रोत्साहित किया जाए.

जब इस पूरे मामले में कासगंज जिलाधिकारी हर्षिता माथुर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस उद्योग को ओडीओपी में शामिल करने के सार्थक प्रयास किए जाएंगे.

यह भी पढ़े-नुजूल की जमीन पर पावर लूम लगा कर हो रहा था कपड़े का निर्माण, प्रशासन ने चलाया बुलडोजर

कासगंज: जिले के छोटे से कस्बे गंजडुंडवारा की पॉलिस्टर खादी पिछले 50 वर्षों से लोगों की पसंद बनी हुई है. इस पॉलिस्टर खादी को बनाने के लिए नगर में काफी संख्या में पावर लूम और हैंडलूम की मशीनें लगी हुई हैं. इन कारखानों से हजारों लोगों को रोजगार मिल रहा है. लेकिन, अब सरकार की गलत नीतियों और उदासीनता के कारण यह उद्योग बंद होने के कगार पर है. हजारों लोगों से उनका रोजगार छिनने की नौबत आ गई है. आज शनिवार को ईटीवी भारत ने पावर लूम-हैंडलूम संचालकों और मजदूरों से बात करके उनकी समस्याओं और मांगों को प्रशासन तक पहुंचाने का काम किया है.

कासगंज का गंजडुंडवारा कस्बा पॉलिस्टर खादी के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है. यहां पर छोटे बड़े हैंडलूम और पावर लूम की काफी मशीनें लगी हुई हैं. जहां एक तरफ हैंडलूम पर काम करने वाले मजदूर मात्र 50 से 100 रुपये प्रतिदिन के हिसाब से कमा रहे हैं तो वहीं, पावरलूम पर काम करने वाले मजदूरों को मात्र 200 से 300 रुपये तक की आमदनी ही हो पा रही है. इससे घर खर्च चलाना बहुत मुश्किल हो रहा है. दाल रोटी की जुगाड़ हो जाए यही बहुत है. आवश्यकता पड़ने पर मजदूर पावर लूम और हैंडलूम संचालकों से पैसे उधार लेते हैं. उन पैसों को चुका पाना भी मजदूरों के लिए लोहे के चने चबाने जैसा होता है.

लूम-हैंडलूम संचालकों और मजदूरों ने दी जानकारी
हथकरघा (हैंडलूम) चलाकर कड़ी मेहनत कर दिन भर में चार से पांच गमछा बनाकर अपने परिवार का भरण पोषण करने वाली शहनाज बताती हैं कि वह मात्र 50 से 100 रुपये प्रतिदिन कमाती हैं. कभी अगर अस्वस्थ हो जाएं तो एक पैसा भी नहीं मिल पाता. लेकिन, हम क्या करें, हमें इसके अलावा और कोई दूसरा काम भी नहीं आता है. इसके चलते इस काम को छोड़ भी नहीं सकते. सरकार को और प्रशासन को हमारे बारे में सोचना चाहिए.पावर लूम संचालक अब्दुल हकम बताते हैं कि मेरे पिता का पावरलूम का कारखाना लगा हुआ है. लेकिन, हम भविष्य में इस काम को नहीं करना चाहेंगे. क्योंकि, बिजली के हालात बहुत खराब हैं. पर्याप्त बिजली नहीं मिलती है और पिछले कई सालों से हमारे बिजली के बिल भी नहीं आए हैं. इसके अलावा हमारे इस उद्योग को जो पहले सब्सिडी मिलती थी वह भी सरकार ने बंद कर दी है. इसके चलते इस धंधे में दिन प्रतिदिन घाटा हो रहा है.पावर लूम संचालक मुमताज हुसैन बताते हैं कि लाइट सुचारू रूप से नहीं मिल पाती है. सरकार ने सब्सिडी बंद कर दी है. हमारे पास 4 पावरलूम की मशीनें हैं. लेकिन, बिजली विभाग ने अनाप-शनाप बिल भेज दिया है. एक वर्ष पूर्व बिल भेजा था 27000 रुपये का और अब 29 लाख 90 हजार का बिल भेज दिया है. हमारी सारी मशीनें और घर भी बिक जाए, तब भी हम बिल का भुगतान नहीं कर पाएंगे. इन्हीं परेशानियों के चलते लोग यह काम छोड़ रहे हैं. कई लोगों ने तो अपनी पावर लूम मशीनें कबाड़ के भाव में बेच दीं हैं. लोग धंधा बदल रहे हैं. कोई सब्जी बेच रहा है तो कोई हाथ ठेल लगा रहा है. लेकिन, अब यह धंधा कोई करना नहीं चाहता है.

इसे भी पढ़े-ढाई सौ करोड़ की लागत से सुधरेगी देश के सबसे पुराने संस्कृत विश्वविद्यालय की सूरत, ये है प्लान

पावर लूम में काम करने वाले मजदूर उवैदुर्रहमान बताते हैं कि वह लगभग 20 वर्षो से पावर लूम मशीन चलाने का काम करते है. पावर लूम संचालकों की दिन-ब-दिन मशीनें बढ़ती गई. लेकिन हमारी दिहाड़ी उस हिसाब से नहीं बढ़ी. आज से 20 साल पहले 100 रुपये मिलता था अब ढाई सौ से 300 रुपये तक मिलता है. इसमें खाली दाल रोटी ही चल पाती है. अगर कभी बीमारी हो जाए तो मालिकों से पैसा उधार लेना पड़ता है और उन्हें चुकाते चुकाते सालों बीत जाते हैं.

पावर लूम कारखाने में काम करने वाले मजदूर राकेश कुमार बताते हैं कि वह 9 घंटे प्रतिदिन काम करते हैं. तब जाकर 200 से 250 रुपये कमाते हैं. हमें हमारी मेहनत का आधा पैसा तक नहीं मिल रहा है. देखा जाए तो आज के हिसाब से कम से कम प्रतिदिन की मजदूरी 500 रुपये तक मिलनी चाहिए.

गंजडुंडवारा के सबसे पुराने और प्रसिद्ध पावर लूम संचालक स्टैंडर्ड ब्रांड के मालिक मुबीन भाई बताते है कि सबसे बड़ी समस्या बिजली की है. पिछले 2 सालों से पावर लूम संचालकों की बिलिंग नहीं हुई है. इसके चलते पावर लूम संचालकों को डर है कि पता नहीं कितना अनाप-शनाप बिल बिजली विभाग से भेजा जाएगा. अभी हाल ही में लाखों रुपये के बिजली के बिल संचालकों को आए हैं. जिनके यहां मात्र चार मशीनें लगी हुई है. दूसरा, पहले सरकार हम लोगों को सब्सिडी दिया करती थी. लेकिन, अब पिछले 2 सालों से पावर लूम संचालकों को सब्सिडी मिलनी भी बंद हो गई है. अब हम सब को डर है कि बिजली का बिल बिना सब्सिडी के आएगा या सब्सिडी काट के आएगा यह संशय बना हुआ है. जिसके चलते लोग अब यह कारोबार छोड़ रहे हैं. पहले सब्सिडी 65 रुपये प्रति मशीन मिला करती थी. अभी 2 साल पहले 135 रुपये प्रति मशीन सब्सिडी मिला करती थी.

इसके अलावा रेलवे ट्रांसपोर्ट बिल्कुल बंद हो गया है. पहले गंजडुंडवारा रेलवे स्टेशन से ही माल लोड होकर दूसरे शहर और दूसरे प्रदेशों में जाया करता था. अब रेलवे का ट्रांसपोर्ट बंद होने से काफी परेशानी हो रही है. हमारी सरकार से यही मांग है कि रोकी गई सब्सिडी को फिर से शुरु किया जाए और बिजली के बिलों की जल्द से जल्द बिलिंग कराई जाए. साथ ही पर्याप्त मात्रा में बिजली दी जाए और रेलवे ट्रांसपोर्ट को पुनः शुरू किया जाए. इसके अलावा कासगंज जिलाधिकारी से मेरा निवेदन है कि हमारे इस उद्योग को वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट के रूप में शामिल किया जाए और इसे प्रोत्साहित किया जाए.

जब इस पूरे मामले में कासगंज जिलाधिकारी हर्षिता माथुर से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस उद्योग को ओडीओपी में शामिल करने के सार्थक प्रयास किए जाएंगे.

यह भी पढ़े-नुजूल की जमीन पर पावर लूम लगा कर हो रहा था कपड़े का निर्माण, प्रशासन ने चलाया बुलडोजर

Last Updated : Nov 4, 2022, 7:40 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.