झांसी: जिले में होलिका दहन की अनोखी परंपरा है. यहां कोई पंडित या शास्त्री नहीं, बल्कि शहर कोतवाली थाना के प्रभारी यानी शहर कोतवाल ही होलिका दहन करते हैं. यही नहीं, होलिका दहन के बाद बच्चे और लोग उनको घेरकर खड़े हो जाते हैं. तब कोतवाल उनको चंदा स्वरूप भेंट देते हैं. झांसी में राजा गंगाधर राव के समय से चली आ रही परंपरा करीब 200 साल बाद आज भी जिंदा है. जिले में वर्षोें से शहर कोतवाल द्वारा होलिका दहन की शुरुआत की जाती है.
हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी घास मंडी मुरली मनोहर मंदिर के सामने होलिका दहन किया गया. शुभ मुहूर्त के अनुसार, झांसी के शहर कोतवाल तुलसीराम पाण्डेय ने परम्परा निभाते हुए विधि-विधान से पूजा-अर्चना करते हुए होलिका दहन किया. होलिका दहन होते ही लोगों में होली के त्योहार को लेकर उत्साह और जोश देखा गया. एक-दूसरे को अबीर गुलाल लगाकर व गले मिलकर एक-दूसरे को होली की बधाइयां दीं.
गौरतलब है कि झांसी में लगभग 1854 में सबसे पहले होलिका दहन शहर कोतवाल द्वारा किया गया था. कहा जाता है कि 1853 में झांसी के महाराज गंगाधर राव के देहांत के बाद जो पहली होली आई उसे झांसी के लोगों ने नहीं मनाया था. उस समय शहर कोतवाल द्वारा ही होलिका दहन करके होली पर्व की शुरुआत की गई थी. तबसे लेकर आज तक यह परंपरा चली आ रही है. बहुत लंबे समय बाद ऐसा हुआ है कि किसी कोतवाल ने लगातार दो साल तक होलिका दहन कार्यक्रम में हिस्सा लिया हो. शहर कोतवाल तुलसीराम पाण्डेय द्वारा बड़ा बाजार स्थित मुरली मनोहर मंदिर के पास होलिका दहन किया गया.
शहर कोतवाल ने व्यापारियों और शहरवासियों के साथ मिलकर पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने के बाद होलिका दहन किया. उन्होंने बताया कि उनके शहर कोतवाल होने के नाते ये दूसरा अवसर है कि उन्हें लगातार दूसरी बार होली जलाने का मौका मिला, जिसको वे अपना सौभाग्य मानते हैं. जैसे कि परंपरागत मान्यता रही है कि यहां पर महारानी जी के समय से जब झांसी के महाराजा गंगाधर राव अश्वस्थ हो गए थे तो उन्होंने यहां की होली को जलाने के लिए उनके जो कोतवाल थे उनको नामित किया था. उसके बाद से यह परंपरा आज भी जीवित है और चलती आ रही है. परंपरा सदियों पुरानी हो गई है.
शहर कोतवाल ने बताया कि उन्हें लगता है कि बुंदेलखंड और खासतौर पर झांसीवासी आज पौराणिक परंपरा को सिद्दत के साथ और उसी सामाजिक सौहार्द के साथ मनाते चले आ रहे हैं. हिंदू हो या मुस्लिम, सिख, ईसाई सारे के सारे टोली में शामिल होते हैं और इस होली के जलने के बाद ही झांसी शहर की दूसरी अन्य होलियां जलाई जाती हैं. पुलिस के व्यवहार और पुलिस को दृष्टिगत रखते हुए काफी कुछ गौरवपूर्ण है. उन्होंने कहा कि उनके लिए बहुत खुशी का लम्हा है. क्योंकि, उनका दूसरा कार्यकाल है और उन्हें दूसरी बार झांसी की ऐतिहासिक होली दहन करने का अवसर मिला है. इसके लिए वे झांसीवासियों का भी शुक्रिया अदा करते हैं.
झांसी की अगर बात करें तो मगलवार को 1373 स्थानों पर होलिका दहन हुआ. मुख्य शहर के घासमंडी स्थित मुरली मनोहर मंदिर के पास सबसे पहले शहर कोतवाल ने परम्परा को निभाते हुए होली जलाई. इसके बाद ही हर वर्ष की तरह फिर पूरे महानगर में होली जली. वहीं, झांसी के झोकनबाग स्थित नारायण धर्मशाला के पास भी धूमधाम से होलिका दहन हुआ. यहां झांसी सदर विधायक रवि शर्मा ने होलिका दहन किया. होलिका दहन से पहले एरिया की महिलाओं ने होलिका स्थल पर आकर पूजा-अर्चना की. फिर परिक्रमा कर सुख-समृद्धि की कामना की. शहर के कई स्थानों पर होलिका और प्रहलाद के पुतले रखे गए.
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