गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में सोमवार को गोरखा रेजीमेंट और भारत-नेपाल मैत्री संघ के लोगों के लिए 5 अगस्त का दिन गर्व का दिन है. 5 अगस्त के दिन करगिल युद्ध के दौरान जम्मू कश्मीर में तैनात लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग पाकिस्तानी मिसाइल के हमले में शहीद हो गए थे. हालांकि जांबाज ने शहीद होने के पूर्व एक बंकर में फंसे अपने कई साथियों की जान भी बचाई थी.
ऐसे वीर सपूत को गोरखपुर के लोग और सैन्य सेवा से जुड़े हुए अधिकारी और सैनिक के दिन याद करते हैं. शहर के कूड़ाघाट तिराहे पर स्थापित शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित किए. वह अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे, और इनकी तीन पीढ़ियां भारतीय सेना को ही समर्पित रही हैं.
शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग की देश के लिए सेवा-
अमर शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग अपने पिता रिटायर्ड ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग और माता पुष्पलता गुरुंग के एकमात्र पुत्र थे.
नेपाल के मूल निवासी और देश के लिए कई सीधी लड़ाई लड़ चुके. गुरुंग के पिता मौजूदा दौर में अपनी पत्नी के साथ देहरादून में रहते हैं.
गौतम अपने पिता के आदेश पर सेना में कमीशन प्राप्त किया था. इनका जन्म 23 अगस्त 1973 को हुई था.
जानकर हैरानी होगी की ब्रिगेडियर पिता की बटालियन 34 में ही गौतम को कमीशन प्राप्त हुआ था. उन्होंने 6 मार्च 1997 को गोरखा राइफल्स में कमीशन प्राप्त किया था.
गौतम गुरुंग पहली नियुक्ति जून 1998 में जम्मू कश्मीर के तंगधार सेक्टर में रह कर देश की सेवा में जुट गए थे.
शहीद लेफ्टिनेंट गौतम गुरुंग की बहादूरी ने बचाया था सैनिकों-
4 अगस्त 1999 को साथियों के साथ लोहा लेने के दौरान एक मिसाइल दोस्त के बंकर में जा घुसी.
इस बंकर में कई साथी फंस गए और गुरुंग जान की परवाह किए बगैर साथियों को सकुशल बाहर तो निकाल लिया, लेकिन इसी बीच पाकिस्तानी दुश्मनों की एक और मिसाइल गौतम के कमर के हिस्से को छलनी करती हुई निकल गई.
इससे वह गंभीर रूप से घायल हो गए उन्हें बेस कैंप लाया गया लेकिन 5 अगस्त की सुबह ही वह शहीद हो गए. यह खबर देश को दुख के गौरवान्वित करने वाली थी.
एक सैन्य अफसर को गौरवान्वित करने वाली थी लेकिन एक पिता के रूप में निश्चित ही ब्रिगेडियर पीएस गुरुंग को काफी वेदना पहुंच गई.
1999 का वह दिन याद करके लोग सिहर उठते हैं जब गौतम की याद में नारे लग रहे थे तो किसी के भी आंखों से आंसू नहीं रूक रहे थे.