ETV Bharat / state

ड्रोन की नई तकनीक विकसित करने में MMMTU छात्रों ने देश में हासिल की पहली रैंक, मॉडल मचाएगा धमाल

गोरखपुर के मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (MMMTU) के इलेक्ट्रॉनिक एवं कम्युनिकेशन विभाग के विद्यार्थियों ने ड्रोन की एक नई तकनीक इजाद की है. इसके लिए इनको देश में पहला स्थान हासिल हुआ.

एमएमएमटीयू की शोध टीम के साथ बातचीत.
एमएमएमटीयू की शोध टीम के साथ बातचीत.
author img

By

Published : Nov 5, 2022, 12:28 PM IST

गोरखपुर: मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (MMMTU) के इलेक्ट्रॉनिक एवं कम्युनिकेशन विभाग के विद्यार्थियों ने ड्रोन के मामले में एक नई तकनीक इजाद की है. इसका प्रेजेंटेशन उन्होंने पिछले दिनों बेंगलुरु में किया था. जहां देशभर के 52 तकनीकी संस्थानों के शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया था. इसमें मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधार्थियों को अपने शोध को लेकर पूरे देश में पहला स्थान हासिल हुआ. इस शोध में ऐसे ड्रोन का निर्माण करना बताया गया है जो किसी भी संकटग्रस्त क्षेत्र में फंसे हुए व्यक्ति या स्थान तक बिना किसी गाइडेंस के पहुंच सकेगा और वापस आ सकेगा. इस तकनीक में पहला स्थान हासिल करने के बाद ड्रोन को तैयार करने में जुटे हुए शोधार्थी अपने शोध से उत्साहित हैं. वह तैयार ड्रोन का प्रेजेंटेशन देने के लिए 18 और 19 नवंबर को बेंगलुरु में आयोजित एयरोथान में भाग लेंगे जो SJCI कॉलेज में होगा.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंट्रोल और ऑब्जेक्ट डिटेक्ट की तकनीक पर काम करने वाले इस ड्रोन को तैयार करने में विश्वविद्यालय के आठ से 10 छात्रों की एक टीम काम कर रही है. इसको लीड विवेक शुक्ला कर रहे हैं. इनके नेतृत्व में टीम बेंगलुरु गई थी और तैयार प्रोजेक्ट रिपोर्ट सबमिट की थी. जिसे पहले स्थान पर चुना गया और इन्हें बेहतरीन क्षमता के साथ ऑब्जेक्ट डिटेक्ट ड्रोन तैयार करने की जिम्मेदारी मिली थी. इसे यह विश्वविद्यालय की लैब में अपने साथियों के साथ मिलकर पूरी जिम्मेदारी के साथ पूरा करने में जुटे हैं. इन छात्रों को विभाग के प्रोफेसर संजय कुमार सोनी का उचित मार्गदर्शन मिल रहा है, जिससे ड्रोन की नई तकनीक को इजाद करने में कामयाबी के अंतिम पायदान पर हैं. इनका मॉडल लगभग तैयार है, जिसका प्रेजेंटेशन बेंगलुरु में 19 नवंबर को होगा.

एमएमएमटीयू की शोध टीम के साथ बातचीत.

ईटीवी भारत से बातचीत में शोध टीम लीडर विवेक शुक्ला कहते हैं कि यह ड्रोन स्वचालित होगा. साथ ही ऑब्जेक्ट को खुद डिटेक्ट करेगा और वहां तक पहुंचकर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भी करेगा. विवेक ने बताया कि यह 12 से 15 किलोमीटर की दूरी खुद तय करके वापस अपने ऑपरेटिंग पॉइंट पर आ जाएगा. वहीं, प्रोफेसर सोनी ने कहा कि चाहे बाढ़ में फंसे हुए लोग हों या कहीं पर दवा का छिड़काव करना हो या आग लगने जैसी कोई स्थिति हो, इन सब जगह में यह ड्रोन बेहद कारगर साबित होगा. उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि देश के 52 नामी संस्थान बेंगलुरु के एसएई एरोथान (SEA AEROTHON) में जहां प्रतिभाग कर रहे थे, उसमें मदन मोहन मालवीय के हिस्से में टॉप बनने की सफलता आई और यह प्रोजेक्ट उसके हाथ लगा. जबकि उसमें आईआईटी और NIIT जैसी संस्थाएं भी शामिल थीं.

उन्होंने कहा कि पहले और दूसरे नंबर के बीच में भी पॉइंट का बड़ा अंतर था, जो हमारे शोधार्थियों और उनके विभाग के साथ विश्वविद्यालय के लिए भी बड़े ही गौरव का क्षण है. यह उत्साहित करने वाला है. इसका असर शोध परिणाम में देखने को मिलेगा. शोधार्थियों ने कहा कि ड्रोन को तैयार करने में सभी तकनीकों के साथ उसकी बैटरी पर भी विशेष फोकस किया जाता है, जिससे वह लंबे समय तक संचालित किया जा सके. ड्रोन में जो बैटरी लगती है अक्सर वह आयात की जाती है. लेकिन, हम उस बैटरी को भी तैयार कर रहे हैं, जिससे इसकी फ्लाइंग क्षमता घंटों में बदल सकती है.

यह भी पढ़ें: किसान ने बनाया 10 फीट ऊंचा ट्रैक्टर, खेती में ऐसे आएगा काम, देखें वीडियो

इसके अलावा उसके मॉडल पर भी ध्यान दिया जाता है, जिससे फ्लाइंग के समय यानी कि उड़ने के दौरान ड्रोन हवा का दबाव खुद से कैसे कंट्रोल कर सके और अपनी उड़ान को सफलतापूर्वक भर सके. यह सब डिजाइन का विशेष पार्ट है, जिस पर काम हुआ है. उन्हें फिर चैंपियन बनने की उम्मीद है. इस शोध टीम में हर्ष सहगल, उत्कर्ष दुबे, पीयूष चतुर्वेदी, आशुतोष शुक्ला, अंकित कुमार, अरुणेश कुमार सागर, आशुतोष तिवारी, अग्निवेश पांडे, प्रियांशु पांडे, सतीश यादव, अनिकेत चौरसिया और उत्कर्ष सिंह शामिल है.

गोरखपुर: मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (MMMTU) के इलेक्ट्रॉनिक एवं कम्युनिकेशन विभाग के विद्यार्थियों ने ड्रोन के मामले में एक नई तकनीक इजाद की है. इसका प्रेजेंटेशन उन्होंने पिछले दिनों बेंगलुरु में किया था. जहां देशभर के 52 तकनीकी संस्थानों के शोधार्थियों ने प्रतिभाग किया था. इसमें मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शोधार्थियों को अपने शोध को लेकर पूरे देश में पहला स्थान हासिल हुआ. इस शोध में ऐसे ड्रोन का निर्माण करना बताया गया है जो किसी भी संकटग्रस्त क्षेत्र में फंसे हुए व्यक्ति या स्थान तक बिना किसी गाइडेंस के पहुंच सकेगा और वापस आ सकेगा. इस तकनीक में पहला स्थान हासिल करने के बाद ड्रोन को तैयार करने में जुटे हुए शोधार्थी अपने शोध से उत्साहित हैं. वह तैयार ड्रोन का प्रेजेंटेशन देने के लिए 18 और 19 नवंबर को बेंगलुरु में आयोजित एयरोथान में भाग लेंगे जो SJCI कॉलेज में होगा.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस कंट्रोल और ऑब्जेक्ट डिटेक्ट की तकनीक पर काम करने वाले इस ड्रोन को तैयार करने में विश्वविद्यालय के आठ से 10 छात्रों की एक टीम काम कर रही है. इसको लीड विवेक शुक्ला कर रहे हैं. इनके नेतृत्व में टीम बेंगलुरु गई थी और तैयार प्रोजेक्ट रिपोर्ट सबमिट की थी. जिसे पहले स्थान पर चुना गया और इन्हें बेहतरीन क्षमता के साथ ऑब्जेक्ट डिटेक्ट ड्रोन तैयार करने की जिम्मेदारी मिली थी. इसे यह विश्वविद्यालय की लैब में अपने साथियों के साथ मिलकर पूरी जिम्मेदारी के साथ पूरा करने में जुटे हैं. इन छात्रों को विभाग के प्रोफेसर संजय कुमार सोनी का उचित मार्गदर्शन मिल रहा है, जिससे ड्रोन की नई तकनीक को इजाद करने में कामयाबी के अंतिम पायदान पर हैं. इनका मॉडल लगभग तैयार है, जिसका प्रेजेंटेशन बेंगलुरु में 19 नवंबर को होगा.

एमएमएमटीयू की शोध टीम के साथ बातचीत.

ईटीवी भारत से बातचीत में शोध टीम लीडर विवेक शुक्ला कहते हैं कि यह ड्रोन स्वचालित होगा. साथ ही ऑब्जेक्ट को खुद डिटेक्ट करेगा और वहां तक पहुंचकर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह भी करेगा. विवेक ने बताया कि यह 12 से 15 किलोमीटर की दूरी खुद तय करके वापस अपने ऑपरेटिंग पॉइंट पर आ जाएगा. वहीं, प्रोफेसर सोनी ने कहा कि चाहे बाढ़ में फंसे हुए लोग हों या कहीं पर दवा का छिड़काव करना हो या आग लगने जैसी कोई स्थिति हो, इन सब जगह में यह ड्रोन बेहद कारगर साबित होगा. उन्होंने इस बात पर खुशी जताई कि देश के 52 नामी संस्थान बेंगलुरु के एसएई एरोथान (SEA AEROTHON) में जहां प्रतिभाग कर रहे थे, उसमें मदन मोहन मालवीय के हिस्से में टॉप बनने की सफलता आई और यह प्रोजेक्ट उसके हाथ लगा. जबकि उसमें आईआईटी और NIIT जैसी संस्थाएं भी शामिल थीं.

उन्होंने कहा कि पहले और दूसरे नंबर के बीच में भी पॉइंट का बड़ा अंतर था, जो हमारे शोधार्थियों और उनके विभाग के साथ विश्वविद्यालय के लिए भी बड़े ही गौरव का क्षण है. यह उत्साहित करने वाला है. इसका असर शोध परिणाम में देखने को मिलेगा. शोधार्थियों ने कहा कि ड्रोन को तैयार करने में सभी तकनीकों के साथ उसकी बैटरी पर भी विशेष फोकस किया जाता है, जिससे वह लंबे समय तक संचालित किया जा सके. ड्रोन में जो बैटरी लगती है अक्सर वह आयात की जाती है. लेकिन, हम उस बैटरी को भी तैयार कर रहे हैं, जिससे इसकी फ्लाइंग क्षमता घंटों में बदल सकती है.

यह भी पढ़ें: किसान ने बनाया 10 फीट ऊंचा ट्रैक्टर, खेती में ऐसे आएगा काम, देखें वीडियो

इसके अलावा उसके मॉडल पर भी ध्यान दिया जाता है, जिससे फ्लाइंग के समय यानी कि उड़ने के दौरान ड्रोन हवा का दबाव खुद से कैसे कंट्रोल कर सके और अपनी उड़ान को सफलतापूर्वक भर सके. यह सब डिजाइन का विशेष पार्ट है, जिस पर काम हुआ है. उन्हें फिर चैंपियन बनने की उम्मीद है. इस शोध टीम में हर्ष सहगल, उत्कर्ष दुबे, पीयूष चतुर्वेदी, आशुतोष शुक्ला, अंकित कुमार, अरुणेश कुमार सागर, आशुतोष तिवारी, अग्निवेश पांडे, प्रियांशु पांडे, सतीश यादव, अनिकेत चौरसिया और उत्कर्ष सिंह शामिल है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.