ETV Bharat / state

1857 की गदर क्रांति का अहम गवाह है बुलंदशहर का काला आम चौराहा

1857 में आजादी का महासंग्राम शुरू हुआ तो बुलंदशहर ने भी इस लड़ाई में शत-प्रतिशत दिया. यहां के क्रांतिकारी अंग्रेजी हुकुमत को मुंहतोड़ जवाब दे रहे थे. क्रांतिकारियों के इस रवैये से अंग्रेजी हुकुमत ने कड़ा रुख अपनाया और जो अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाता था, तो उसे खुलेआम फांसी दी जाती थी.

काला आम चौराहा.
author img

By

Published : May 10, 2019, 10:08 PM IST

Updated : Sep 17, 2020, 4:28 PM IST


बुलंदशहर : 10 मई 1857 को जब पूरे देश में आजादी की चिनगारी उठ रही थी तो इससे बुलंदशहर भी अछूता न रहा. चारों तरफ कत्लेआम हो रहा था. ऐसा ही कुछ नजारा था बुलंदशहर में. जो भी अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ आवाज उठा रहा था, उसे खुलेआम फांसी दी जा रही थी. इस बात का साक्षी है जनपद का काला आम चौराहा, जो कभी कत्लेआम के नाम से जाना जाता था.

1857 के समय जब स्वतंत्रता का महासंग्राम शुरू हुआ तो बुलंदशहर के क्रांतिकारी शूरवीरों ने भी अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ एकजुटता दिखाई. इस एकजु़टता की मिसाल है जनपद का काला आम चौराहा.

बुलंदशहर का काला आम चौराहा.

आजादी की लड़ाई में बुलंदशहर का था अहम हाथ

  • 10 मई 1857 को शुरू हुआ था आजादी का महासंग्राम.
  • आजादी की लड़ाई में बुलंदशहर की अहम भागीदीरी थी.
  • शूरवीरों ने अंग्रेजी हुकूमत के प्रतीक के तौर पर स्थापित डाक बंगले, तारघर ध्वस्त कर दिए.
  • सरकारी इमारतों पर धावा बोल दिया.
  • गुस्साए अंग्रेजी हुकूमत के नुमाइंदों ने क्रांतिकारियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया.
  • क्रांतिकारियों को शहर के बीच स्थित आम के बाग में फांसी पर लटकाया जाने लगा.
  • फांसी पर लटकाए जाने वाली जगह को वर्तमान में काला आम चौराहा के नाम से जाना जाता है.
  • अंग्रेजी सेना ने 46 क्रांतिकारियों को पकड़कर जेल में डाल दिया था.

1857 को जब आजादी की लड़ाई शुरू हुई तो उसकी चिनगारी बुलंदशहर से ही उठी हुई मानी जाती है. शहर के काला आम चौराहा को पहले कत्लेआम बोला जाता था, क्योंकि अंग्रेज यहां क्रांतिकारियों को फांसी दिया करते थे.

-इंजीनियर मुकुल शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार


बुलंदशहर : 10 मई 1857 को जब पूरे देश में आजादी की चिनगारी उठ रही थी तो इससे बुलंदशहर भी अछूता न रहा. चारों तरफ कत्लेआम हो रहा था. ऐसा ही कुछ नजारा था बुलंदशहर में. जो भी अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ आवाज उठा रहा था, उसे खुलेआम फांसी दी जा रही थी. इस बात का साक्षी है जनपद का काला आम चौराहा, जो कभी कत्लेआम के नाम से जाना जाता था.

1857 के समय जब स्वतंत्रता का महासंग्राम शुरू हुआ तो बुलंदशहर के क्रांतिकारी शूरवीरों ने भी अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के खिलाफ एकजुटता दिखाई. इस एकजु़टता की मिसाल है जनपद का काला आम चौराहा.

बुलंदशहर का काला आम चौराहा.

आजादी की लड़ाई में बुलंदशहर का था अहम हाथ

  • 10 मई 1857 को शुरू हुआ था आजादी का महासंग्राम.
  • आजादी की लड़ाई में बुलंदशहर की अहम भागीदीरी थी.
  • शूरवीरों ने अंग्रेजी हुकूमत के प्रतीक के तौर पर स्थापित डाक बंगले, तारघर ध्वस्त कर दिए.
  • सरकारी इमारतों पर धावा बोल दिया.
  • गुस्साए अंग्रेजी हुकूमत के नुमाइंदों ने क्रांतिकारियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया.
  • क्रांतिकारियों को शहर के बीच स्थित आम के बाग में फांसी पर लटकाया जाने लगा.
  • फांसी पर लटकाए जाने वाली जगह को वर्तमान में काला आम चौराहा के नाम से जाना जाता है.
  • अंग्रेजी सेना ने 46 क्रांतिकारियों को पकड़कर जेल में डाल दिया था.

1857 को जब आजादी की लड़ाई शुरू हुई तो उसकी चिनगारी बुलंदशहर से ही उठी हुई मानी जाती है. शहर के काला आम चौराहा को पहले कत्लेआम बोला जाता था, क्योंकि अंग्रेज यहां क्रांतिकारियों को फांसी दिया करते थे.

-इंजीनियर मुकुल शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार

Intro:आज ही के दिन यानी 10 मई 1857 को देश की आजादी के लिए पहले महासंग्राम की रणभेरी बजी थी, और यह चिंगारी विकराल रूप ले गई थी उससे बुलंदशहर भी अछूता नहीं था। बुलंदशहर का काला आम चौराहा आज भी इसका साक्षी है और यहां के किस्से खुद इसकी गवाही देते हैं,देखिये देश के पहले संग्राम से जुड़े बुलन्दशहर के रिश्तों पर आधरित इटीवी भारत की ये विशेष खबर ।


Body:आज 10 मई है और आज ही के दिन 1857 में जब स्वतंत्रता के लिए महासंग्राम की शुरुआत हुई थी, उस वक्त देश की राजधानी के समीपवर्ती जिले बुलन्दशहर के क्रांतिकारी शूरवीरों ने भी अंग्रेजों की दमनकारी नीतियों के विरुध्द पूरे जोश और उत्साह से एकजुटता दिखाते हुए पुरजोर विरोध किया था,ब्रिटिश हुकूमत के पैर उस वक्त पूरी तरह से हिल गए थे ,सर्वसमाज के लोग स्वतंत्रता का संकल्प लेकर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एकजुट थे,और क्रान्तिदूतों जब एकजुटता दिखाई तो गुबार ग़दर के रूप मे देखा जा सकता था ,जिससे अंग्रेजी शासकों के इशारे पर कत्ल ए आम का जो खूनी खेल खेला गया था उसकी गवाही आज भी शहर का ये चौराहा देता है ...जिसे अब कालाआम चौराहा कहा जाता है । दरअसल जब ब्रिटिश हुकूमत का विरोध शुरू हुआ तो बुलन्दशहर में भी उस चिंगारी को शोला बनते देर नहीं लगी और दिल्ली से लेकर बुलन्दशहर तक में क्रांति का संकल्प कर चुके मतवालों ने फिरंगियों की सांसें फुलाकर रख दी थीं,जिससे उस वक्त पूरी तरह बौखला चुके अंग्रेजी शासकों ने ऐसा कत्लेआम मचाया कि शहर के बीचों बीच मौजूद ये कालाआम चौराहा खुद ब खुद इसकी गवाही देता है,इतिहासकार बताते हैं कि उस वक्त क्रांतिकारियों ने अंग्रेजी हुकूमत के प्रतीक के तौर पर स्थापित डाक बंगले ,तारघर अन्य सरकारी इमारतों पर धावा बोलकर फिरंगियों को खुली चुनोती दे डाली थी,सभी इमारतों पर तोड़फोड़ की गयी,दफ्तर आग के हवाले कर दिए ,जिससे उस वक्त नुमाइंदगी करने वाले फिरंगियों के हाथ पांव फूल गए थे, पूरी तरह से बौखला चुके अंग्रेजी हुकूमत के नुमाइंदों ने क्रांतिकारियों को निशाना बनाना शुरू किया ,अंग्रेजी सेना ने 46 क्रांतिकारियों को पकड़कर उस वक्त जेल में डाल दिया था,दिल दिमाग में आजाद भारत का सपना लेकर गदर में अहम भूमिका निभाने वाले क्रांतिकारियों को असहनीय यातनाएं दी गईं, बताते हैं कि 21 मई 1857 को बुलन्दशाहर से अलीगढ़ तक के क्षेत्र को अंग्रेजी राज से मुक्त कर लिया गया ,लेकिन कुछ मतलब परस्त और मौकापरस्त गद्दार जमीदारों ने उस वक्त अंग्रेजो से सांठ गांठ कर ली और उसका खामियाजा भुगतना पड़ा हमारे क्रांतिकारियों को जिसके बाद अंग्रेजी शासकों ने फिर से अपनी दहशत बैठाने के लिए क्रांतिकारियों को शहर के बीच स्थित आम के बाग में फांसी पर लीकान शुरू कर दिया ,इतिहास में अभी ये तमाम साक्ष्य हैं कि अंग्रेजों ने क्रांति की विचारधारा रखने वाले बहादु वीरों को पहले यातनाएं दिन और फिर फांसी पर लटकाकर छोड़ दिया करते थे,काबिलेगौर है कि हालांकि अब यहां एक शानदार स्मारक बना है जहाँ सभी अनाम शहीदों को श्रदांजलि देने के लिए कई कार्यक्रम अक्सर हुआ करते हैं लेकिन वो कुर्बानी जो 1857 से लेकर 1947 तक के बीच सेंकडों लोगों ने दी व्व एक दिन रंग लाई और आज हम आजाद भारत में सांस ले पा रहे हैं ।काबिलेगौर है कि यहां सेंकडों लोगों को यातना देने के बाद फांसी दी गयी थी।इटीवी भारत उन सभी अनाम शहीदों को श्रदांजलि देता है। बाइट... इंजीनियर मुकुल शर्मा ,वरिष्ठ पत्रकार । पीटीसी...श्रीपाल तेवतिया ।


Conclusion:
Last Updated : Sep 17, 2020, 4:28 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.