बाराबंकी: सिरौलीगौसपुर तहसील क्षेत्र में स्थित कुंतेश्वर महादेव का इतिहास अपने आप में एक अलग ही महत्व रखता है. कुंतेश्वर महादेव मंदिर प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है. जहां हर रोज सैकड़ों श्रृद्धालु अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं, लेकिन सावन के महीने में यहां श्रृद्धलुओं की खासी भीड़ देखी जाती है. कहा जाता है इस मंदिर का इतिहास ही कुछ ऐसा है कि श्रृद्धालुओं में कुंतेश्वर महादेव के प्रति काफी मान्यता है.
क्या है कुंतेश्वर महादेव का इतिहास
कहा जाता है कि आज से लगभग 8000 वर्ष पूर्व द्वापर युग के अंत में, जब देश की भूमि पर पूर्ण ब्रह्म लीला पुरुषोत्तम भगवान् श्रीकृष्ण के अवतार में थे. उस काल में भारत में कौरव वंश का साम्राज्य था. दोनों की माताएं कुंती और गांधारी अपने पुत्रों को राजा बनाने के लिए अवघड़ दानी शिव की आराधना करती थीं. एक दूसरे से अंजान दोनों माताओं का एक दिन मंदिर में आमना-सामना हो गया.
गांधारी और माता कुंती के झगड़ने पर प्रकट हुए भगवान शिव
गांधारी माता कुंती को मंदिर में देखते ही बिफर गईं और कहा कि विधवा को शिव पूजन का अधिकार नहीं है. इस पर माता कुंती ने कहा कि मैं बालपन से ही शिवजी की पूजा करती आ रही हूं. अचानक प्रकट हुए शिवजी ने दोनों को लड़ने से रोकते हुए कहा जो सोने के सुगंधित पुष्पों से मेरी पूजा करेगी उसी का पुत्र राजा होगा.
'कुबेर के बगीचे में मिलेंगे सोने के पुष्प'
दुर्योधन स्वर्णकारों को बुलाकर पुष्प गढ़वने लगा. तो वहीं माता कुंती वन में पुत्रों के पास आई और शिव जी की भविष्यवाणी सुनाइ. अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण को याद किया तो श्री कृष्ण ने बताया कि ऐसे पुष्प कुबेर के बगीचे में मिलेंगे.
माता कुंती ने किया भगवान शिव की मूर्ती का पूजन
अर्जुन ने माता से कहा कि ब्रह्म मुहूर्त में पुष्प प्राप्त हो जाएंगे. प्रात: काल में अर्जुन ने अपने मन व्यापक बाणों के द्वारा कुबेर के बगीचे से अनेक प्रकार के सुगंधित पुष्प लाए, जिसमें पारिजात नामक पुष्प जो सोने जैसा दिखता था. माता कुंती ने यहीं पर भगवान शिव की प्रतिमा स्थापित कर पूजन किया. शिव जी प्रकट हुए और उनके पुत्रों को राजा होने का वर दिया.
आज भी कुंतेश्वर महादेव मंदिर के प्रति लोगों की मान्यता है कि रात में माता कुंती इस शिवलिंग की पूजा करने आती हैं. यहां के पुजारी बताते हैं कि आज भी जब सुबह मंदिर का कपाट खुलता है तो शिवलिंग पूजित मिलता है.