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लखनऊ में लोहिया संस्थान को मिली कामयाबी; बिना चीरा लगाए होगा प्रोस्टेट का इलाज - PROSTATE TREATED WITHOUT SNCISION

लखनऊ के लोहिया संस्थान में डॉक्टर्स को बड़ी कामयाबी मिली है. अब प्रोस्टेट के मरीजों का इलाज भाप तकनीकी से किया जाएगाय

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कचत (Photo Credit: ETV Bharat)
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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Feb 4, 2025, 12:29 PM IST

लखनऊ: प्रोस्टेट के मरीजों का इलाज अब भाप से किया जा सकेगा. लखनऊ के लोहिया संस्थान में यह तकनीकी सफल हुई है. डॉक्टर्स की मानें तो इसमें मरीज को न तो चीरा लगाने की जरूरत होती है और न ही टांका लगाना पड़ता है.

लखनऊ में लोहिया संस्थान के यूरोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट विभाग ने प्रोस्टेट से पीड़ित दो मरीजों में भाप का इस्तेमाल करके इलाज में कामयाबी हासिल की है. चिकित्सा विज्ञान में इस तकनीक को 'रेजूम' कहा जाता है. इस तकनीक का इस्तेमाल कर मरीज को सर्जरी के दर्द से बचाया जा सकता है.

अब तक टीयूआरपी तकनीक से इलाज: यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. ईश्वर राम दयाल ने बताया कि अभी तक प्रोस्टेट ग्रंथि की समस्या से पीड़ित मरीजों का ऑपरेशन करने की जरूरत पड़ती थी. ट्रांसयूरेथ्रल रीसेक्शन ऑफ द प्रोस्टेट (टीयूआरपी) तकनीक से ही मरीज का इलाज किया जाता था.

दिल के मरीजों सहित डायबिटीज, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी से पीड़ितों का ऑपरेशन करने में दिक्कत आती थी. इन बीमारी से ग्रस्त लोगों को बेहोश करके ऑपरेशन में खतरा बना रहता था. लेकिन अब रेजूम तकनीक से प्रोस्टेट पीड़ित दो मरीजों का भाप से इलाज किया जा रहा है.

कैसे काम करती है रेजमू तकनीकी: डॉक्टर्स ने बताया कि हमारे पास दो मरीज पहुंचे. दोनों को दिल की नसों से संबंधित बीमारी है. डायबिटीज भी बेकाबू है और ब्लड प्रेशर की समस्या भी है. ऐसे मरीजों की दवा बंद नहीं की जा सकती है.

तब हमने रेजूम तकनीकी का इस्तेमाल किया. रेजूम प्रक्रिया एक न्यूनतम इनवेसिव, गैर-सर्जिकल इलाज है. इसमें प्रोस्टेट तक एंडोस्कोप के माध्यम से महीन निडिल पहुंचाई जाती है. इसके बाद भाप बढ़ी प्रोस्टेट ग्रंथि पर डाली जाती है.

यह भी पढ़ें : गर्भवती और गर्भ में पल रहे शिशु के लिए योग फायदेमंद, प्रशिक्षित योगाचार्य की निगरानी जरूरी - Mother and Child Referral Hospital Luckno

लखनऊ: प्रोस्टेट के मरीजों का इलाज अब भाप से किया जा सकेगा. लखनऊ के लोहिया संस्थान में यह तकनीकी सफल हुई है. डॉक्टर्स की मानें तो इसमें मरीज को न तो चीरा लगाने की जरूरत होती है और न ही टांका लगाना पड़ता है.

लखनऊ में लोहिया संस्थान के यूरोलॉजी और रीनल ट्रांसप्लांट विभाग ने प्रोस्टेट से पीड़ित दो मरीजों में भाप का इस्तेमाल करके इलाज में कामयाबी हासिल की है. चिकित्सा विज्ञान में इस तकनीक को 'रेजूम' कहा जाता है. इस तकनीक का इस्तेमाल कर मरीज को सर्जरी के दर्द से बचाया जा सकता है.

अब तक टीयूआरपी तकनीक से इलाज: यूरोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. ईश्वर राम दयाल ने बताया कि अभी तक प्रोस्टेट ग्रंथि की समस्या से पीड़ित मरीजों का ऑपरेशन करने की जरूरत पड़ती थी. ट्रांसयूरेथ्रल रीसेक्शन ऑफ द प्रोस्टेट (टीयूआरपी) तकनीक से ही मरीज का इलाज किया जाता था.

दिल के मरीजों सहित डायबिटीज, ब्लड प्रेशर जैसी बीमारी से पीड़ितों का ऑपरेशन करने में दिक्कत आती थी. इन बीमारी से ग्रस्त लोगों को बेहोश करके ऑपरेशन में खतरा बना रहता था. लेकिन अब रेजूम तकनीक से प्रोस्टेट पीड़ित दो मरीजों का भाप से इलाज किया जा रहा है.

कैसे काम करती है रेजमू तकनीकी: डॉक्टर्स ने बताया कि हमारे पास दो मरीज पहुंचे. दोनों को दिल की नसों से संबंधित बीमारी है. डायबिटीज भी बेकाबू है और ब्लड प्रेशर की समस्या भी है. ऐसे मरीजों की दवा बंद नहीं की जा सकती है.

तब हमने रेजूम तकनीकी का इस्तेमाल किया. रेजूम प्रक्रिया एक न्यूनतम इनवेसिव, गैर-सर्जिकल इलाज है. इसमें प्रोस्टेट तक एंडोस्कोप के माध्यम से महीन निडिल पहुंचाई जाती है. इसके बाद भाप बढ़ी प्रोस्टेट ग्रंथि पर डाली जाती है.

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