बाराबंकी: आस्था और विश्वास का जन सैलाब जिले में देखने को मिल रहा है, जहां पिछले तीन सौ वर्षों से एक मजार पर विभिन्न धर्मों के लोग आकर मत्था टेकते हैं और अपनी बीमारियां दूर करते हैं. खास बात यह है कि इस मजार पर भूतप्रेत भगाए जाने का दावा किया जाता है. दावा किया जाता है कि मजार पर सैकड़ों मरीज अजीब-अजीब हरकतें करते हैं और फिर शांत होने पर उन्हें कुछ याद नहीं रहता. साम्प्रदायिक सौहार्द्र की मिसाल इस मजार पर हर नौचंदी को हजारों की भीड़ इकट्ठा होती है.
क्या है पुरानी मान्यता
- जिला मुख्यालय से करीब 12 किमी दूर बांसा शरीफ है.
- बांसा शरीफ में स्थित हजरत सैयद शाह अब्दुल रज्जाक की मजार पर पिछले तीन सौ वर्षों से हजारों की संख्या में भीड़ जुटती है.
- माना जाता है कि सैयद शाह अब्दुल रज्जाक के पुरखे अलाउद्दीन खिलजी के जमाने में अफगानिस्तान के बदख्शां से यहां आए थे.
- शाह अब्दुल रज्जाक ने सारी जिंदगी गरीबों और मजलूमों की मदद की.
- शाह के वक्त में कई राजा और महाराजाओं ने उनको तमाम धन-दौलत देने की कोशिश की, लेकिन पीर फकीर शाह ने कुछ नहीं लिया.
- वह घूम-घूम कर लोगों को एकता और भाईचारे का पैगाम देते रहे.
- तीन सौ साल पहले ईद के पांचवें दिन शाह दुनिया से पर्दा कर गए, जिसके बाद लोगों ने उनकी यहीं पर मजार बनवा दी और उनकी याद में उर्स शुरू कर दिया.
- हर वर्ष ईद के दिन से यहां आठ दिनों तक मेला लगता है, जिसमे देश के कोने कोने से लोग यहां आते हैं
भूत-प्रेतों का होता है इलाज!
- बांसा शरीफ मे शाह की मजार पर भूत प्रेतों का इलाज किया जाता है.
- तमाम लोग जब डॉक्टरों से इलाज करा कर थक जाते हैं तो वे यहीं आकर शरण लेते हैं.
- दावा किया जाता है कि यहां हर मर्ज का इलाज होता है.
- महीने की हर नौचंदी को यहां हजारों की भीड़ होती है और इनमें विशेषकर महिलाओं की संख्या ज्यादा होती है.
...इस अनोखे तरीके से होता है मरीजों का इलाज
- मजार के खादिम एक कागज पर मरीज की परेशानियां लिखकर उसे मजार की चादर के नीचे या पास में कहीं रख देते हैं, जिसे चिल्ला बांधना कहते हैं.
- चिल्ला बांधने के बाद अगर मरीज पर कोई भूत-प्रेत का साया होता है तो उसकी हाजिरी होने लगती है.
- हाजिरी का मंजर ही बड़ा दिल दहलाने वाला होता है.
- हर मरीज अजीब-अजीब ढंग से हरकतें करने लगता है.
- थोड़ी देर बाद जब ये शांत होते हैं तो ऐसा लगता है, जैसे कुछ हुआ ही नहीं.
ये सिलसिला कई बार चलता है. कई लोगों को तो महीने बीत जाते हैं, फिर इनका फैसला होता है. फैसले के बाद मरीज ठीक हो जाता है. खास बात यह है कि ये प्रक्रियाएं अपने आप होती हैं. इसमें बाहरी व्यक्ति यहां तक कि परिजन भी न कुछ बोल सकते हैं और न ही कुछ कर सकते हैं.