बांदा: बुंदेलखंड की लठमार दिवारी नृत्य काफी प्रसिद्ध है. पूरे बुंदेलखंड में जमघट के दिन यानी कि दिवाली के दूसरे दिन होने वाले बुंदेलखंड के प्रसिद्ध लट्ठमार दिवारी नृत्य की धूम रही है. यह नृत्य यहां की प्राचीन विधा है, जिसे यहां के लोग भगवान राम और श्री कृष्ण से जोड़कर देखते हैं. यहां के लोगों का ऐसा मानना है कि लंका विजय प्राप्ति के बाद जब भगवान श्रीराम अयोध्या को जाने लगे तब यहां के बुंदेली लोगों ने इस नृत्य को कर उल्लास मनाया था. वहीं इंद्र के घमंड को जब भगवान श्री कृष्ण ने चूर किया था और गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर रखकर ग्वालों को जल प्रलय से बचाया था तब यहां लोगों ने दिवारी नृत्य कर खुशिया मनाई थीं.
बुंदेलखंड में दीवारी नृत्य यहां की लोक संस्कृत की पुरानी विधा है जो प्राचीन काल से चलती चली आ रही है. यहां पर ग्रामीण क्षेत्रों में के साथ-साथ शहरी क्षेत्रों में भी हाथों में मोर पंख लेकर मौनिया विशेष नृत्य करते हैं, जिसे दिवारी नृत्य कहते हैं. जिसमें इस विधा में पारंगत बुजुर्ग, युवा और बच्चे रंग बिरंगी पोशाकों में 18 से 20 की संख्या में ढोल नगाड़े के साथ ताल पर जमकर झूमते हैं और जोश में भरकर लाठियों से एक दूसरे पर वार करते हैं. इनके पैरों में और कमर में बंधे घुंघुरुयों की रुनझुन के साथ लाठियों की तड़तड़ाहट में इनके शरीर की लोच, फुर्ती और चतुराई देखने को मिलती है. 36 विधाओं का यह कर्तव्य मार्शल आर्ट को भी फेल कर देता है.
भगवान श्रीराम और कृष्ण से जुड़ी है दीवारी नृत्य की विधा
बुंदेलखंड के हजारों गौपालक दिवाली के अगले दिन मौन व्रत रखते हैं और हाथों में मोर पंख के गट्ठर लेकर अपने-अपने क्षेत्रों का भ्रमण करते हैं और इस दौरान दिवारी नृत्य भी करते हैं. माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने आज ही के दिन इंद्र का घमंड चूर किया था और उन्होंने गोवर्धन पर्वत को अपने हाथ की छोटी उंगली से उठाकर लोगों को जल प्रलय से बचाया था. और तब लोगों ने जश्न मनाया था और तभी से यहां के बुंदेली मोर पंखों को लेकर क्षेत्रों का भ्रमण कर गायों की सेवा करते हैं और इस नृत्य को करते हैं. तो वहीं यहां के बुंदेलीयों का यह भी मानना है कि अपने वनवास काल के दौरान लंका विजय प्राप्त करने के बाद जब भगवान श्रीराम अयोध्या को जाने लगे तब चित्रकूट के लोगों ने खुशी में दिवारी नृत्य किया था. और तब से यह परंपरा अनवरत चलती चली आ रही है.