बांदा: गरीब और मजदूर वर्ग के लोगों के लिए केंद्र सरकार द्वारा चलाई गई महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की स्थिति जिले में बहुत खराब है. आए दिन मनरेगा मजदूर अपनी शिकायतें लेकर अधिकारियों की चौखटों के चक्कर लगाने को मजबूर हैं. कहीं पर मजदूरों को काम नहीं मिल रहा तो कहीं पर उनके द्वारा किए गए काम का उन्हें भुगतान नहीं मिल रहा. यही नहीं, कहीं पर अपात्र लोगों के जॉब कार्ड बना दिए गए है. ग्राम प्रधान और सचिव की मिलीभगत से यह योजना जमीन पर खरी नहीं उतर पा रही है. यानी कि कहा जाए कि सरकार ने जिस उद्देश्य से इस योजना को शुरू किया था, उसका जिले में बैठे जिम्मेदार सही से क्रियान्वयन नहीं कर रहे हैं.
बता दें कि, जिले में चार तहसीलें हैं-सदर, बबेरू, तिंदवारी और नरैनी. यहां से आये दिन जिलाधिकारी व उप जिलाधिकारियों के ऑफिस रोजाना किसी न किसी गांव से गरीब व मजदूर तबके के लोग मनरेगा से सम्बंधित शिकायत लेकर पहुंचते हैं. इसी को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने बबेरू तहसील क्षेत्र के कुछ गांवों में जाकर मनरेगा की जमीनी हकीकत जानी तो हैरान करने वाले मामले सामने आए. यहां पर प्रधानों और सचिवों की मनमानी, लापरवाही और धांधली जैसे मामले सामने आए हैं. कहीं पर मजदूरों के जॉब कार्ड बना दिये गए तो उन्हें काम नहीं मिल रहा है. कहीं पर पात्र लोगों को छोड़ अपात्र लोगों के जॉब कार्ड बनाकर पैसे निकाल लेने के मामले सामने आए हैं. वहीं कहीं पर काम करने के बाद मजदूर भुगतान के लिए भटक रहे हैं.
बबेरू तहसील क्षेत्र के मुरवल गांव के रहने वाले पप्पू चौरसिया ने बताया कि, मेरे पास न घर है, न शौचालय है. मेरा न राशन कार्ड बना है और न ही जॉब कार्ड बना है. कई बार प्रधान से बात की तो वह पैसों की मांग कर वापस कर देता है. वहीं इसी गांव की रहने वाली रेखा ने बताया कि, मेरा पति दिव्यांग है. कई बार जॉब कार्ड के लिए प्रधान से कहा, लेकिन प्रधान ने जॉब कार्ड नहीं बनाया. हम लोग किसी तरह अपना पेट भरते हैं.
मिया बरौली गांव के रहने वाले चंद्रपाल ने बताया कि, हमने मनरेगा में काम किया था, लेकिन हमारा जॉब कार्ड में अभी तक पैसा नहीं आया है. हम लोगों ने मनरेगा के तहत खंती खोदने का काम किया था और हमारा 2 साल से पैसा पड़ा हुआ है और नहीं मिल रहा है. इसी गांव की रहने वाली राजूदेवी ने बताया कि, हम बहुत दिन से मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं. लेकिन हमें समय से पैसा नहीं मिल रहा. बीच-बीच में कभी-कभी पैसे दे दिए जाते हैं. अगर हजार रुपये का काम किया जाता है तो दो या तीन सौ रुपये दे दिए जाते हैं. प्रधान और सचिव से जब पैसे के बारे में पूछा जाता है तो वह कहते हैं कि तुम्हारा खाता नहीं खुला है. जबकि हमारा खाता खुला हुआ है.
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बबेरू तहसील क्षेत्र के ही पछौहा गांव के रहने वाले सुखदेव ने बताया कि, हम अपनी समस्या लेकर उप जिलाधिकारी कार्यालय आए हैं. हमारी समस्या यह है कि हमने जो मनरेगा के तहत काम किया है, उसका पैसा हमें नहीं मिल रहा है. हम पिछले 4 महीने से काम कर रहे हैं, लेकिन हमें पैसा नहीं दिया जा रहा है. हम भुखमरी की कगार पर पहुंच गए हैं. हमारे गांव के कई लोग हैं, जो परेशान हैं और उन्हें पैसा नहीं मिल रहा है.
मनरेगा मजदूरों के भुगतान और कार्य संबंधी शिकायत मुझे प्राप्त हुई है. मैं इस प्रकरण को गंभीरता से लिखवा रहा हूं. जांच में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाएगी.
-हरिश्चंद्र वर्मा, मुख्य विकास अधिकारी