बहराइच: कतर्नियाघाट वन्यजीव विहार में आने वाले पर्यटकों को घड़ियाल, मगरमच्छ के साथ-साथ डॉल्फिन की तिकड़ी खूब लुभा रही है. गेरुआ नदी में डॉल्फिन की अठखेलियां देखकर पर्यटक रोमांचित हो उठते हैं. कतर्निया से होकर निकली गेरुआ नदी डॉल्फिन के लिए सबसे बड़ी प्राकृतिक प्रवास बन चुकी है. इनकी बढ़ती हुई संख्या जलजीव विशेषज्ञों के लिए सुखद है. दक्षिणी अफ्रीका से जलचर विशेषज्ञ यहां आकर इनकी दिनचर्या पर शोध भी कर चुके हैं.
पर्यटक उठाते हैं आनंद
भारत-नेपाल की सीमा से सटा कतर्नियाघाट वन्यजीव प्रभाग 551 वर्ग किमी में फैला है. यह वन संपदा वन्यजीव ही नहीं, जलजीवों के लिए भी मुफीद है. गंगा की धारा में हिलोरों के साथ उछाल मारने वाली डॉल्फिन का गेरुआ नदी में प्राकृतिक प्रवास बढ़ रहा है. देश-विदेश से आने वाले पर्यटक मगरमच्छ और घड़ियाल के बीच डॉल्फिन का भी नजारा ले रहे हैं.
नदी में लगाए गए थे कैमरे
गेरुआ नदी में डॉल्फिन की दिनचर्या पर दक्षिण अफ्रीका के जलचर विशेषज्ञों ने अध्ययन किया है. कुछ साल पहले यहां के विशेषज्ञों ने कतर्निया में लगातार सवा महीने तक डेरा जमा कर डॉल्फिन पर अध्ययन किया था. इसके लिए नदी के भीतर काम करने वाले कैमरे भी लगाए गए थे.
डॉल्फिन के लिए मुफीद है गेरुआ का प्रदूषण मुक्त जल
पांच साल के अंदर डॉल्फिन की तादाद बढ़ी है. इसके अलावा डाॅल्फिन घाघरा, सरयू, शारदा और राप्ती नदी में भी देखी जा सकती हैं. जल कंपन महसूस करने में माहिर डॉल्फिन हिलते पानी में बार-बार भागती रहती हैं. नदी के भीतर काम करने वाले कैमरों से भी यह बार-बार भागती रहती हैं. डॉल्फिन सुइस गंगा नदी में पाई जाने वाली जलचर प्रजाति है. इसी कारण इसे गैंगटिक और गैंजाइटिक नाम से भी जाना जाता है. जलीय प्रदूषण मुक्त वातावरण में ही इनकी वंश वृद्धि होती है. गेरुआ नदी का पानी प्रदूषण मुक्त है, इसलिए यहां इनका प्राकृतिक प्रवास बना रहता है.