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इस्लाम से पहले यूनानी सभ्यता में बुर्के का चलन था : इतिहासकार इरफान हबीब

प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा कि इस्लाम में बुर्का का चलन था, लेकिन उससे पहले यूनानी सभ्यता में भी इसके ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं. उन्होंने बताया कि शुरुआत की सभ्यता में पर्दा नहीं था, यह पैगंबर मोहम्मद साहब के समय से शुरू हुई. बेपर्दगी को बुरा समझा जाता था.

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Published : May 11, 2019, 5:43 PM IST

जानकारी देते इतिहासकार इरफान हबीब.

अलीगढ़ : देश में इस समय बुर्के को लेकर बहस छिड़ी है. श्रीलंका में आतंकी घटना के बाद वहां बुर्के पर पाबंदी लगाई गई तो केरल के एक शिक्षण संस्थान में भी बुर्के पर बैन लगा दिया गया. वहीं शिवसेना की तरफ से भी बुर्के पर बैन की आवाज उठी. यूपी में भाजपा विधायक संगीत सोम ने बुर्के पर बैन को लेकर वीडियो वायरल किया. आखिर इस बुर्का या पर्दा प्रथा का चलन कहां से हुआ? इस पर प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब ने ईटीवी भारत से बात कर रोशनी डाली.

जानकारी देते इतिहासकार इरफान हबीब.

जानें, क्या बोले इतिहासकार इरफान हबीब

  • इस्लाम में पर्दे का चलन था, लेकिन उससे पहले यूनानी सभ्यता में पर्दादारी के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं.
  • यूनानी सभ्यता में मिली मूर्तियों में औरतों को पर्दे के साथ चित्रित किया गया है. इससे पता चलता है कि बुर्का प्रथा इस्लाम से पहले मौजूद थी.
  • शुरुआत की सभ्यता में पर्दा नहीं था, यह पैगंबर मोहम्मद साहब के समय से शुरू हुई.
  • मुस्लिम औरतें काम बुर्के में नहीं कर सकती थीं. उन्हें मेहनत करनी पड़ती थी. पत्थर कूटना, चूना बनाना, सूत काटना, खेत में हल चलाना आदि काम करना पड़ता था.

अफगानिस्तान के पैट्रिया में औरतों की मूर्ति मिलीं, इनके चेहरे पर नकाब मौजूद है. इंग्लैंड में भी अमीर महिलाएं घर से बाहर जाती थीं तो हैट के साथ चेहरे पर जाली डालती थीं. वहीं तुर्क वंशी तैमूर की पत्नियां दरबार में बैठती थीं, उस समय भी बुर्का नहीं था. हिंदुस्तान में भी घूंघट की रस्म कितनी पुरानी है. इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं. ऐसे में कह सकते हैं कि पुराने समय में परिस्थितियों के अनुसार बुर्का या पर्दा होती थी. कोई दबाव नहीं दिखता है. हिंदुस्तान में सबूत नहीं है कि बुर्के को बुरे काम के लिए इस्तेमाल किया गया हो. बुर्के का सवाल भाजपा के लोग ही उठाते हैं, जो कि सन 1925 से ही एक ही आईडियोलॉजी पर जिंदा हैं.

-इरफान हबीब, इतिहासकार

अलीगढ़ : देश में इस समय बुर्के को लेकर बहस छिड़ी है. श्रीलंका में आतंकी घटना के बाद वहां बुर्के पर पाबंदी लगाई गई तो केरल के एक शिक्षण संस्थान में भी बुर्के पर बैन लगा दिया गया. वहीं शिवसेना की तरफ से भी बुर्के पर बैन की आवाज उठी. यूपी में भाजपा विधायक संगीत सोम ने बुर्के पर बैन को लेकर वीडियो वायरल किया. आखिर इस बुर्का या पर्दा प्रथा का चलन कहां से हुआ? इस पर प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब ने ईटीवी भारत से बात कर रोशनी डाली.

जानकारी देते इतिहासकार इरफान हबीब.

जानें, क्या बोले इतिहासकार इरफान हबीब

  • इस्लाम में पर्दे का चलन था, लेकिन उससे पहले यूनानी सभ्यता में पर्दादारी के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं.
  • यूनानी सभ्यता में मिली मूर्तियों में औरतों को पर्दे के साथ चित्रित किया गया है. इससे पता चलता है कि बुर्का प्रथा इस्लाम से पहले मौजूद थी.
  • शुरुआत की सभ्यता में पर्दा नहीं था, यह पैगंबर मोहम्मद साहब के समय से शुरू हुई.
  • मुस्लिम औरतें काम बुर्के में नहीं कर सकती थीं. उन्हें मेहनत करनी पड़ती थी. पत्थर कूटना, चूना बनाना, सूत काटना, खेत में हल चलाना आदि काम करना पड़ता था.

अफगानिस्तान के पैट्रिया में औरतों की मूर्ति मिलीं, इनके चेहरे पर नकाब मौजूद है. इंग्लैंड में भी अमीर महिलाएं घर से बाहर जाती थीं तो हैट के साथ चेहरे पर जाली डालती थीं. वहीं तुर्क वंशी तैमूर की पत्नियां दरबार में बैठती थीं, उस समय भी बुर्का नहीं था. हिंदुस्तान में भी घूंघट की रस्म कितनी पुरानी है. इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं. ऐसे में कह सकते हैं कि पुराने समय में परिस्थितियों के अनुसार बुर्का या पर्दा होती थी. कोई दबाव नहीं दिखता है. हिंदुस्तान में सबूत नहीं है कि बुर्के को बुरे काम के लिए इस्तेमाल किया गया हो. बुर्के का सवाल भाजपा के लोग ही उठाते हैं, जो कि सन 1925 से ही एक ही आईडियोलॉजी पर जिंदा हैं.

-इरफान हबीब, इतिहासकार

Intro:अलीगढ़ : देश में बुर्के को लेकर बहस छिड़ी है .श्रीलंका में आतंकी घटना के बाद बुर्के पर पाबंदी लगाई गई. तो केरल के एक शिक्षण संस्थान में बुर्के पर बैन लगाया गया . वहीं शिवसेना की तरफ से भी बुर्के पर बैन की आवाज उठी. तो यूपी में भाजपा विधायक संगीत सोम ने बुर्के पर बैन को लेकर वीडियो वायरल किया. आखिर इस बुर्का या पर्दा प्रथा का चलन कहां से हुआ. इस पर प्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब ने ईटीवी भारत के संवाददाता से बात कर रोशनी डाली. उन्होंने बताया कि इस्लाम में पर्दे का चलन था. लेकिन इस्लाम से पहले यूनानी सभ्यता में पर्दादारी के ऐतिहासिक प्रमाण मिलते हैं. बुर्के के इतिहास पर बातचीत में इरफान हबीब ने बताया कि अरब क्षेत्रों में महिलाओं को आजादी थी. शुरुआत की सभ्यता में पर्दा नहीं था. लेकिन पैगंबर मोहम्मद साहब के समय से शुरू हुई. मोहम्मद साहब की एक पत्नी आयशा बाहर गई थी. लेकिन इससे यह पूरी तरह से पता नहीं चलता कि इसे इस्लामिक बेपर्दगी कहा जाए.


Body:प्रोफेसर इरफान हबीब ने मुगल काल की चित्रकारी का उदाहरण देते हुए बताया कि मुस्लिम औरतें काम बुर्के में नहीं कर सकती थी. उन्हें मेहनत करनी पड़ती थी. पत्थर कूटना , चूना बनाना, सूत काटना , खेल में हल चला रही है. इन चित्रों में हिंदू औरतों को भी देख सकते हैं. जो साड़ी और लहंगे में दिखती है. वह सिर को ढके हैं. लेकिन परदा नहीं है . उन्होंने बताया मुगल काल में अमीर या सामंती महिलाएं जो घोड़े पर है वह पर्दा करती है. बेपर्दगी को बुरा समझा जाता था. अमीर औरतें पालकी या ऐसे माध्यम से जाती थी. जहां बुर्का पहनने की जरूरत नहीं होती थी. उन्होंने बताया कि रोजी रोटी का सवाल था. तो औरतें बिना पर्दे के जाती थी.

प्रोफेसर इरफान हबीब ने बताया कि यूनानी सभ्यता में मिली मूर्तियों में औरतों को पर्दे के साथ चित्रित किया गया है. इससे पता चलता है कि बुर्का प्रथा इस्लाम से पहले मौजूद था.


Conclusion:अफगानिस्तान में पैट्रिया में औरतों की मूर्ति मिली. जिसके चेहरे पर नकाब मौजूद है. इंग्लैंड में भी अमीर महिलाएं घर से बाहर जाती थी. तो हैट के साथ चेहरे पर जाली डालती थी. वहीं तुर्क वंशी तैमूर की पत्नियां दरबार में बैठती थी
. उस समय भी बुर्का नहीं था. हिंदुस्तान में भी घुंघट की रस्म कितनी पुरानी है. इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं . ऐसे में कह सकते हैं कि पुराने समय में परिस्थितियों के अनुसार बुर्का या पर्दा होता था. कोई दबाव नहीं दिखता है . उन्होंने कहा हिंदुस्तान में सबूत नहीं है कि बुर्के को बुरे काम के लिए इस्तेमाल किया गया हो .बुर्के पर उठ रहे सवाल पर कहा कि यह भाजपा के लोग ही उठाते हैं. जो कि 19 25 से ही एक ही आईडियोलॉजी पर जिंदा है.

बाइक - इरफान हबीब, इतिहासकार

आलोक सिंह ,अलीगढ़

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