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सहकारिता में टूटा यादव परिवार का 30 साल पुराना तिलिस्म, भाजपा ने किया सपा का सफाया

उत्तरप्रदेश में भाजपा अब समाजवादी पार्टी के लिए मजबूत मानी जाने वाली संस्थाओं में पैर जमा रही है. बीजेपी ने प्रदेश की सहकारिता से यादव परिवार को बेदखल किया गया है. भाजपा ने उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव फेडरेशन में सभापति और उपसभापति के पद पर कब्जा कर लिया है. इस तरह सहकारिता में यादव परिवार का 30 साल पुराना तिलिस्म भी टूट गया.

शिवपाल सिंह यादव सहकारिता
शिवपाल सिंह यादव सहकारिता
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Published : Jun 14, 2022, 7:48 PM IST

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार प्रदेश में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी अब हर स्तर पर मजबूत ही होती जा रही है, वहीं विपक्षी दल निरंतर कमजोर पड़ रहे हैं. विधानसभा, विधान परिषद समेत अन्य संस्थाओं में बीजेपी का वर्चस्व कायम हो रहा है. अब सहकारिता में भी 'यादव परिवार' का पिछले 30 साल का तिलिस्म टूट गया है. भाजपा ने सपा परिवार की दावेदारी सहकारिता से खत्म कर दी है. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया और समाजवादी पार्टी से विधायक शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव इस बार सभापति नहीं बन पाए हैं. 1991 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब सहकारिता से यादव परिवार पूरी तरह से साफ हो गया है.

सहकारिता में 30 साल तक रहा सपा का दबदबा : उत्तर प्रदेश की कुर्सी पर काबिज कोई भी दल रहा हो लेकिन सहकारिता में नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव के परिवार का ही दबदबा रहा था. पिछले 30 साल से सहकारी ग्रामीण विकास बैंक पर मुलायम परिवार का कब्जा रहा. लेकिन 2022 में उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव फेडरेशन (UPPCF) के सभापति और उपसभापति के चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी का किला ढह गया है. यूपीपीसीएफ के नए अध्यक्ष वाल्मीकि त्रिपाठी बन गए हैं. बता दें कि पिछले 10 सालों से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव फेडरेशन के सभापति थे. अब शिवपाल सिंह यादव के बेटे भी सभापति नहीं रह गए हैं. उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक, उत्तर प्रदेश राज्य निर्माण सहकारी संघ लिमिटेड, उत्तर प्रदेश राज्य निर्माण एवं श्रम विकास सहकारी संघ लिमिटेड के अलावा अन्य सहकारी संस्थाओं पर भाजपा का परचम पहले ही बुलंद हो चुका है. पीसीएफ ही एकमात्र ऐसी संस्था थी, जिसका चुनाव भारतीय जनता पार्टी के पहले कार्यकाल में संपन्न नहीं हो पाया था. इस बार बीजेपी ने यहां पर भी अपना कब्जा जमा लिया है और सपा का सूपड़ा साफ कर दिया है.

बोर्ड के सदस्य तक नहीं बन पाए आदित्य : सभापति के चयन के लिए फेडरेशन की 14 सदस्यीय कमेटी में भारतीय जनता पार्टी के 11 सदस्य निर्विरोध चुन लिए गए. सभापति बनने के लिए फेडरेशन के 14 सदस्य बोर्ड में शामिल होना आवश्यक है. भारतीय जनता पार्टी ने शिवपाल के बेटे आदित्य यादव को बोर्ड का सदस्य तक बनने नहीं दिया. शेष तीन सीटें अब महिला कोटे की हैं, जिनका सरकार ही मनोनयन करती है.
BJP captured the cooperative of Uttar Pradesh
1994 से उत्तरप्रदेश की सहकारिता पर यादव परिवार का कब्जा था.

सहकारिता के महारथी रहे शिवपाल सिंह यादव : साल 1960 में उत्तर प्रदेश सहकारी ग्रामीण बैंक के सबसे पहले सभापति बनने वाले जगन सिंह रावत थे. उनके बाद रऊफ जाफरी और शिवमंगल सिंह 1971 तक सहकारिता के सभापति रहे. उनके कार्यकाल के बाद बैंक की कमान अधिकारियों के हाथ दे दी गई. साल 1991 में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के परिवार का सहकारिता में दखल हुआ. करीब तीन साल के लिए हाकिम सिंह सभापति बने और इसके बाद साल 1994 में शिवपाल सिंह यादव ने सभापति का पद हथिया लिया. जब शिवपाल हटे तो उनके बेटे आदित्य यादव सभापति बन गए. आदित्य पिछले 10 साल से इस पद पर कब्जा जमाए हुए थे, लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी के आगे समाजवादी पार्टी परिवार की एक भी न चल सकी. लिहाजा, सहकारिता में सपा शून्य हो गई.

पढ़ें : Gyanvapi Case: अखिलेश यादव और ओवैसी पर केस चलेगा या नहीं, 27 जून को होगी सुनवाई

लखनऊ. उत्तर प्रदेश में लगातार दूसरी बार प्रदेश में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी अब हर स्तर पर मजबूत ही होती जा रही है, वहीं विपक्षी दल निरंतर कमजोर पड़ रहे हैं. विधानसभा, विधान परिषद समेत अन्य संस्थाओं में बीजेपी का वर्चस्व कायम हो रहा है. अब सहकारिता में भी 'यादव परिवार' का पिछले 30 साल का तिलिस्म टूट गया है. भाजपा ने सपा परिवार की दावेदारी सहकारिता से खत्म कर दी है. प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के मुखिया और समाजवादी पार्टी से विधायक शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव इस बार सभापति नहीं बन पाए हैं. 1991 के बाद ऐसा पहली बार हो रहा है, जब सहकारिता से यादव परिवार पूरी तरह से साफ हो गया है.

सहकारिता में 30 साल तक रहा सपा का दबदबा : उत्तर प्रदेश की कुर्सी पर काबिज कोई भी दल रहा हो लेकिन सहकारिता में नेताजी यानी मुलायम सिंह यादव के परिवार का ही दबदबा रहा था. पिछले 30 साल से सहकारी ग्रामीण विकास बैंक पर मुलायम परिवार का कब्जा रहा. लेकिन 2022 में उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव फेडरेशन (UPPCF) के सभापति और उपसभापति के चुनाव के बाद समाजवादी पार्टी का किला ढह गया है. यूपीपीसीएफ के नए अध्यक्ष वाल्मीकि त्रिपाठी बन गए हैं. बता दें कि पिछले 10 सालों से प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव फेडरेशन के सभापति थे. अब शिवपाल सिंह यादव के बेटे भी सभापति नहीं रह गए हैं. उत्तर प्रदेश कोऑपरेटिव बैंक लिमिटेड, उत्तर प्रदेश सहकारी ग्राम विकास बैंक, उत्तर प्रदेश राज्य निर्माण सहकारी संघ लिमिटेड, उत्तर प्रदेश राज्य निर्माण एवं श्रम विकास सहकारी संघ लिमिटेड के अलावा अन्य सहकारी संस्थाओं पर भाजपा का परचम पहले ही बुलंद हो चुका है. पीसीएफ ही एकमात्र ऐसी संस्था थी, जिसका चुनाव भारतीय जनता पार्टी के पहले कार्यकाल में संपन्न नहीं हो पाया था. इस बार बीजेपी ने यहां पर भी अपना कब्जा जमा लिया है और सपा का सूपड़ा साफ कर दिया है.

बोर्ड के सदस्य तक नहीं बन पाए आदित्य : सभापति के चयन के लिए फेडरेशन की 14 सदस्यीय कमेटी में भारतीय जनता पार्टी के 11 सदस्य निर्विरोध चुन लिए गए. सभापति बनने के लिए फेडरेशन के 14 सदस्य बोर्ड में शामिल होना आवश्यक है. भारतीय जनता पार्टी ने शिवपाल के बेटे आदित्य यादव को बोर्ड का सदस्य तक बनने नहीं दिया. शेष तीन सीटें अब महिला कोटे की हैं, जिनका सरकार ही मनोनयन करती है.
BJP captured the cooperative of Uttar Pradesh
1994 से उत्तरप्रदेश की सहकारिता पर यादव परिवार का कब्जा था.

सहकारिता के महारथी रहे शिवपाल सिंह यादव : साल 1960 में उत्तर प्रदेश सहकारी ग्रामीण बैंक के सबसे पहले सभापति बनने वाले जगन सिंह रावत थे. उनके बाद रऊफ जाफरी और शिवमंगल सिंह 1971 तक सहकारिता के सभापति रहे. उनके कार्यकाल के बाद बैंक की कमान अधिकारियों के हाथ दे दी गई. साल 1991 में सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव के परिवार का सहकारिता में दखल हुआ. करीब तीन साल के लिए हाकिम सिंह सभापति बने और इसके बाद साल 1994 में शिवपाल सिंह यादव ने सभापति का पद हथिया लिया. जब शिवपाल हटे तो उनके बेटे आदित्य यादव सभापति बन गए. आदित्य पिछले 10 साल से इस पद पर कब्जा जमाए हुए थे, लेकिन इस बार भारतीय जनता पार्टी के आगे समाजवादी पार्टी परिवार की एक भी न चल सकी. लिहाजा, सहकारिता में सपा शून्य हो गई.

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