बलिया: जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ जितेंद्र पाल ने बताया है कि कोरोना और प्रदूषण से बचने के लिए पटाखों से दूर रहना बेहद जरुरी है. वायु प्रदूषण और नमी के चलते जहरीला धुआं हमारे स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है. दिवाली पर पटाखे जलाने की परंपरा को इस बार नजरअंदाज करना ही स्वास्थ्य के लिए बेहतर रहेगा.
पटाखे जलाने पर रोक
एनजीटी यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने लखनऊ समेत प्रदेश के 13 से अधिक प्रदूषण वाले जिलों में पटाखे जलाने पर रोक लगा रखी है. मुख्य चिकिसाधिकारी डॉ. जितेन्द्र पाल का कहना है कि दिवाली पर चन्द सेकेण्ड के धमाकों व तेज रोशनी के लिए की जाने वाली आतिशबाजी से निकलने वाले जहरीले धुंएं में कई तरह के खतरनाक रासायनिक तत्व मौजूद होते हैं, जो पर्यावरण को प्रदूषित करने के साथ ही शरीर को नुकसान पहुंचाते हैं. धुएं में मौजूद कैडमियम फेफड़ों में ऑक्सीजन की मात्रा को कम करता है. इसके अलावा इसमें मौजूद सल्फर, कॉपर, बेरियम, लीड, अल्युमिनियम व कार्बन डाईआक्साइड आदि सीधे फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं.
पटाखों से बनाएं दूरी, इसके नुकसान से बचना है जरुरी
कोरोना ने सांस की तकलीफ वालों को ज्यादा प्रभावित किया है. इसलिए पटाखे का धुआं हमारे शरीर की सांस तंत्र को प्रभावित कर कोरोना की गिरफ्त में न ले जाने पाए, उसके लिए इस बार पटाखे से दूर रहें. डॉ. पाल ने बताया कि पटाखों से निकलने वाला धुआं वातावरण में नमी के चलते बहुत ऊपर नहीं जा पाता है, जिससे हमारे इर्द-गिर्द रहकर सांस लेने में परेशानी, खांसी आदि की समस्या पैदा करता है. दमे के रोगियों की शिकायत भी बढ़ जाती है. धुएं के कणों के सांस मार्ग और फेफड़ों में पहुंच जाने पर ब्रॉनकाइटिस और सीओपीडी की समस्या बढ़ सकती है. यह धुआं सबसे अधिक त्वचा को प्रभावित करता है, जिससे एलर्जी, खुजली, दाने आदि निकल सकते हैं. पटाखे की चिंगारी से त्वचा जल सकती है. पटाखों से निकलने वाली तेज रोशनी आंखों को भी नुकसान पहुंचाती है. इससे आंखों में खुजली और दर्द हो सकता है. आंखें लाल हो सकती हैं और आंसू निकल सकते हैं. चिंगारी आंखों में जाने से आंखों की रोशनी भी जा सकती है. पटाखों का तेज धमाका कानों पर भी असर डालता है. इससे कम सुनाई पड़ना या बहरेपन की भी दिक्कत पैदा हो सकती है.