आगरा : सुलाहकुल नगरी, मोहब्बत की नगरी, ताजनगरी और सांप्रदायिक सद्भाव की नगरी. यह सभी नाम आगरा को ऐसे ही नहीं मिले हैं. आगरा क्लब स्थित दरगाह मरकज साबरी की दरगाह सांप्रदायिक सद्भाव और एकता की एक शानदार मिसाल है. यहां पर हिंदू, सिख और ईसाई अपनी मिन्नत लेकर आते हैं. जो यह दिखाता है कि राम और रहीम में कोई फर्क नहीं है. यह दरगाह सर्वधर्म समभाव की यह नजीर पेश करती है. हिंदू और ईसाई समाज के लोग भी यहां रोजा रखते हैं. सभी मजहब के लोग, महिलाएं और बच्चे शाम को एक साथ बैठकर रोजा इफ्तारी करते हैं.
सर्वधर्म समभाव की मिसाल
आगरा क्लब स्थित मरकज साबरी दरगाह पर लगभग 50 प्रतिशत हिंदू सज्जदा करने आते हैं. यहां लोग नवरात्रि में जितनी श्रद्धा से व्रत रखते हैं. उतनी ही शिद्दत से माहे रमजान में रोजा रखते हैं.
रोजा इफ्तार पार्टी में शामिल सरोज बाथम ने बताया कि
वह यहां पर रोजा इफ्तार के लिए सामान बनाने करीब 25 साल से आ रही हैं. हम हिंदू, सिख और ईसाई समाज की बहनें मिलकर रोजा इफ्तार के लिए पकौड़ी, पापड़, पूरी, सब्जी सहित अन्य सभी सामान तैयार करते हैं.
गायत्री ने बताया कि
- मैं अपने परिवार के साथ 25 साल से मरकज साबरी बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने आती हूं. मैं रोजा ही नहीं 12 महीने सजदा करने आती हूं.
- मैं रोजा भी रखती हूं. मेरी बेटियां और ससुराल वाले भी दरगाह पर आते हैं. रोजा रखने से हमें सब कुछ मिला है.
सभी परिवार वाले जानते हैं और खुश हैं
- रोजा इफ्तार में शामिल राजकुमार ने बताया कि मैं रोजा रखता हूं. तरावीह भी पढ़ता हूं. जब मैं स्कूल जाता था. तब यहीं से होकर जाता था.
- धीरे धीरे बाबा में मेरी श्रद्धा बढ़ी और करीब 25 साल से मैं लगातार यहां पर आता हूं. सजदा करता हूं. रोजे रखता हूं.
- मेरी ससुराल और परिवार के सभी लोगों को पता है कि मैं मेरे गुरु मुस्लिम हैं. लेकिन किसी को इस पर ऐतराज नहीं है.
यहां बस इंसान की बात होती है
- पीर दरगाह की इंतजामियां कमेटी के महासचिव व अखिल भारतीय सर्वधर्म एकता संगठन के महासचिव विजय जैन कहते हैं कि हमारे पीर यहां पर एक अजब ही नजारा देखने को मिलता है.
- हम सब गुलशन की तरह हैं. हर धर्म, हर जाति, हर संप्रदाय के लोग यहां पर रोजा इफ्तार में शामिल होते हैं. सब खुशी महसूस करते हैं. यहां किसी भी तरह की दुरंगी की बात नहीं होती है.
- यहां पर बस एक ही रंग की बात होती है. हिंदू-मुस्लिम की कोई बात नहीं, बस इंसान की बात होती है.
रोजेदार के साथ इफ्तारी करने को मिलता है पूरा फल
- दरगाह मरकज साबरी के सज्जादानशीन पीर अलहाज अली शाह चिश्ती साबरी कहते हैं कि रोजा रखने से दिल में चमक पैदा होती है और सब्र करने का माद्दा आता है. रोजे का मतलब है बुराई से खुद को बचाना है.
- यहां रोजा इफ्तार करते समय रंग बिरंगा लहराता गुलशन दिखता है. महसूस होता है जैसे गंगा जमुना का मिलन होता है. वह कहते हैं कि यहां हिंदू और ईसाई भी रोजा रखते हैं और इफ्तार करते हैं.
- इस्लाम में लिखा हुआ है कि जो रोजा रखता है और उसके साथ कोई भी व्यक्ति बैठ करके इफ्तार करता है तो उसे भी रोजे रखने का फल मिलता है. हमारे यहां पर दुरंगी बात नहीं की जाती.