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भारत और जापान : रिश्तों को नई दिशा देने के इरादे

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Published : Dec 14, 2019, 5:16 PM IST

Updated : Dec 16, 2019, 12:56 PM IST

जापानी प्रधानमंत्री शिंजो अबे की गुवाहाटी में अपने भारतीय समकक्ष नरेंद्र मोदी के साथ बैठक होने वाली है. प्रधानमंत्री अबे अपनी 15 से 17 दिसंबर की तीन दिवसीय यात्रा के लिए भारत आने वाले थे.

पीएम मोदी और शिंजो अबे
पीएम मोदी और शिंजो अबे

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे, जल्द ही राष्ट्राध्यक्षों के 12वें सालाना द्विपक्षीय सम्मेलन में हिस्सा लेने भारत आयेंगे. हांलाकि ये कहा गया है कि ये सम्मेलन 15 से 17 दिसंबर को होगा, लेकिन इसके स्थान के बारे में अभी कोई घोषणा नहीं की गई है. वहीं एक टीवी चैनल ने ये दावा किया है कि ये सम्मेलन गुवाहाटी में होगा और इसके लिये वहां एक 115 साल पुराने ब्रिटिश काल के बंगले को तैयार किया जा रहा है. इस जगह को चुनने के पीछे पीएम मोदी की पसंद बताई जा रही है. इससे पहले भी पीएम, विदेशी राजनेताओं के साथ देश के अलग-अलग हिस्सों में मुलाकात करते रहे हैं.

जापान के अलावा, केवल रूस और भारत के बीच ऐसे द्विपक्षीय सम्मेलन होते हैं. हाल ही में रूस ने 18वें भारत-रूस सम्मिट में हिस्सा लिया था. इनके अलावा, हाल ही में भारत और चीन के बीच भी हेड ऑफ स्टेट स्तर के सम्मेलन की शुरुआत हुई है, लेकिन ये अभी अनौपचारिक स्तर पर ही है. ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि जापान को भारत ने इन दोनों विश्व शक्तियों जितना महत्व क्यों दिया है. इसके पीछे कारण साफ है, आर्थिक तौर पर जापान भारत का सबसे बड़ा दाता है. निवेश के लिहाज से भी जापान भारत में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है. जापान ने साल 2000 से अब तक भारत में कुल 27.28 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश किया है. भारत और जापान के बीच आर्थिक साझेदारी के दो बड़े उदाहरणों में जापानी मदद से बनी दिल्ली मेट्रो और अहमदाबाद-मुंबई हाई स्पीड रेल है, जिसे बुलेट ट्रेन के नाम से जाना जाता है.

बुलेट ट्रेन परियोजना को 2013 सम्मेलन के दौरान हरी झंडी मिली थी और इसके लिये जापान ने भारत को 0.1% सालाना ब्याज दर पर 50 साल के लिये $13 बिलियन देने का वादा किया है, जिसमें ऋण वापसी के लिये 15 साल का मॉरेटोरियम का समय भी है. ये शायद भारत द्वारा अब तक की गई सबसे फायदेमंद डीलों मे से एक है, लेकिन दुर्भाग्यवश इस परियोजना पर महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार के आने के बाद से तलवार लटक रही है.

अभी तक हुए सम्मेलनों में, विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग और निवेश के 24 ये ज्यादा करार हो चुके हैं, लेकिन इसे कहीं से भी कामयाबी नही माना जा सकता है. भारत में ऑटो, फार्मा और इलेकट्रानिक्स के क्षेत्र में कई जापानी कंपनियां काम कर रही हैं. जापान क्षेत्रफल में भारत से 11.5% और आबादी के लिहाज से 11% कम है. लेकिन, जापान की आर्थिक ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जापान की जीडीपी भारत की जीडीपी के दोगुना है और ह्यूमन डेनेलपमेंट इंडेक्स में जापान 0.915 के साथ 19वें स्थान पर है. वहीं भारत 0.667 के साथ 129वें स्थान पर है.

पीएम मोदी और शिंजो अबे
पीएम मोदी और शिंजो अबे

सामरिक दृष्टि से भी भारत के लिये जापान, इस क्षेत्र में चीन के बड़ते आर्थिक दबदबे को चुनौती देने के लिये महत्वपूर्ण है. जापान में मौजूद अमरीकी सैन्य बेस के जरिये, जापान साउथ चाइना समुद्र में चीनी मंसूबो पर नजर रखने में कारगर भूमिका निभाता है. भारत द्वारा, चीन की पहल वाले आरसेप पर हस्ताक्षर न करने का जापान ने समर्थन किया है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के विस्तार को लेकर, 1990 में भारत, जापान, ब्राजील और जर्मनी ने G-4 संगठन का गठन कर परिषद में एक दूसरे के लिये स्थाई सदस्यता की वकालत करने का काम किया है. हांलाकि, कुछ साल पहले चीन ने इस मसले पर, इस शर्त पर भारत का साथ देने की बात कही थी कि भारत जापान का साथ छोड़ दे. लेकिन भारत ने ऐसा नही किया और जापान से अपने रिश्तों को और मजबूत कर लिया.

जापान चतुर्भुज या क्वाड का भी हिस्सा है, जो ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमरीका के बीच रक्षा मसलों पर समन्व्य का एक मंच है. इस मंच के अंतर्गत हाल ही में जापान के तट पर 'मालाबार' नाम से हुए संयुक्त सैन्य अभ्यास ने चीन को खासा परेशान भी किया था. चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना को चुनौती देने के लिये भारत और जापान ने मिलकर, एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर का गठन किया है. 2008 में जापान ने भारत के साथ एक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर भी किये हैं. अमरीका के साथ सहयोग की ही तर्ज पर भारत ने हाल ही में जापान के साथ 2+2 मीटिंग की है. दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों ने विश्व में बढ़ रहे आतंकवाद के खतरे की निंदा करते हुए सभी देशों को आतंकवाद और आतंकवादियों के लिये पनाहगाह बने देशों पर एक्शन लेने की मांग की है. जापान ने भारत द्वारा शुरू किये गये 'इंडो-पैसिफिक ओशन्स इंनिशियेटिव' का भी स्वागत किया है और इस मंच पर अपनी भूमिका बढ़ाने की भी इच्छा जाहिर की है. जापान के लिये यह मंच क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देने का बेहतर मौका है.

इस पृष्ठभूमि में ही आने वाले सालाना सम्मलेन के होने की उम्मीद है, जिन विषयों पर बातचीत होने की संभावना है, उनमे इंडो-पेसिफिक ओशियन्स इनिशियेटिव में साझेदारी, सीमा पार आतंकवाद, रक्षा, सौर ऊर्जा और तकनीक हस्तांतरण क्षेत्र में और सहयोग शामिल होंगे. इसमे कोई शक नहीं है कि भारत जापान के रिश्ते काफी मजबूत हैं और यहां से इन रिश्तों को और मजबूत किया जायेगा.

(लेखक-जेके त्रिपाठी)

जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे, जल्द ही राष्ट्राध्यक्षों के 12वें सालाना द्विपक्षीय सम्मेलन में हिस्सा लेने भारत आयेंगे. हांलाकि ये कहा गया है कि ये सम्मेलन 15 से 17 दिसंबर को होगा, लेकिन इसके स्थान के बारे में अभी कोई घोषणा नहीं की गई है. वहीं एक टीवी चैनल ने ये दावा किया है कि ये सम्मेलन गुवाहाटी में होगा और इसके लिये वहां एक 115 साल पुराने ब्रिटिश काल के बंगले को तैयार किया जा रहा है. इस जगह को चुनने के पीछे पीएम मोदी की पसंद बताई जा रही है. इससे पहले भी पीएम, विदेशी राजनेताओं के साथ देश के अलग-अलग हिस्सों में मुलाकात करते रहे हैं.

जापान के अलावा, केवल रूस और भारत के बीच ऐसे द्विपक्षीय सम्मेलन होते हैं. हाल ही में रूस ने 18वें भारत-रूस सम्मिट में हिस्सा लिया था. इनके अलावा, हाल ही में भारत और चीन के बीच भी हेड ऑफ स्टेट स्तर के सम्मेलन की शुरुआत हुई है, लेकिन ये अभी अनौपचारिक स्तर पर ही है. ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि जापान को भारत ने इन दोनों विश्व शक्तियों जितना महत्व क्यों दिया है. इसके पीछे कारण साफ है, आर्थिक तौर पर जापान भारत का सबसे बड़ा दाता है. निवेश के लिहाज से भी जापान भारत में तीसरा सबसे बड़ा निवेशक है. जापान ने साल 2000 से अब तक भारत में कुल 27.28 बिलियन अमरीकी डॉलर का निवेश किया है. भारत और जापान के बीच आर्थिक साझेदारी के दो बड़े उदाहरणों में जापानी मदद से बनी दिल्ली मेट्रो और अहमदाबाद-मुंबई हाई स्पीड रेल है, जिसे बुलेट ट्रेन के नाम से जाना जाता है.

बुलेट ट्रेन परियोजना को 2013 सम्मेलन के दौरान हरी झंडी मिली थी और इसके लिये जापान ने भारत को 0.1% सालाना ब्याज दर पर 50 साल के लिये $13 बिलियन देने का वादा किया है, जिसमें ऋण वापसी के लिये 15 साल का मॉरेटोरियम का समय भी है. ये शायद भारत द्वारा अब तक की गई सबसे फायदेमंद डीलों मे से एक है, लेकिन दुर्भाग्यवश इस परियोजना पर महाराष्ट्र में शिवसेना सरकार के आने के बाद से तलवार लटक रही है.

अभी तक हुए सम्मेलनों में, विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग और निवेश के 24 ये ज्यादा करार हो चुके हैं, लेकिन इसे कहीं से भी कामयाबी नही माना जा सकता है. भारत में ऑटो, फार्मा और इलेकट्रानिक्स के क्षेत्र में कई जापानी कंपनियां काम कर रही हैं. जापान क्षेत्रफल में भारत से 11.5% और आबादी के लिहाज से 11% कम है. लेकिन, जापान की आर्थिक ताकत का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जापान की जीडीपी भारत की जीडीपी के दोगुना है और ह्यूमन डेनेलपमेंट इंडेक्स में जापान 0.915 के साथ 19वें स्थान पर है. वहीं भारत 0.667 के साथ 129वें स्थान पर है.

पीएम मोदी और शिंजो अबे
पीएम मोदी और शिंजो अबे

सामरिक दृष्टि से भी भारत के लिये जापान, इस क्षेत्र में चीन के बड़ते आर्थिक दबदबे को चुनौती देने के लिये महत्वपूर्ण है. जापान में मौजूद अमरीकी सैन्य बेस के जरिये, जापान साउथ चाइना समुद्र में चीनी मंसूबो पर नजर रखने में कारगर भूमिका निभाता है. भारत द्वारा, चीन की पहल वाले आरसेप पर हस्ताक्षर न करने का जापान ने समर्थन किया है. संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद के विस्तार को लेकर, 1990 में भारत, जापान, ब्राजील और जर्मनी ने G-4 संगठन का गठन कर परिषद में एक दूसरे के लिये स्थाई सदस्यता की वकालत करने का काम किया है. हांलाकि, कुछ साल पहले चीन ने इस मसले पर, इस शर्त पर भारत का साथ देने की बात कही थी कि भारत जापान का साथ छोड़ दे. लेकिन भारत ने ऐसा नही किया और जापान से अपने रिश्तों को और मजबूत कर लिया.

जापान चतुर्भुज या क्वाड का भी हिस्सा है, जो ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमरीका के बीच रक्षा मसलों पर समन्व्य का एक मंच है. इस मंच के अंतर्गत हाल ही में जापान के तट पर 'मालाबार' नाम से हुए संयुक्त सैन्य अभ्यास ने चीन को खासा परेशान भी किया था. चीन के वन बेल्ट वन रोड परियोजना को चुनौती देने के लिये भारत और जापान ने मिलकर, एशिया-अफ्रीका ग्रोथ कॉरिडोर का गठन किया है. 2008 में जापान ने भारत के साथ एक सुरक्षा समझौते पर हस्ताक्षर भी किये हैं. अमरीका के साथ सहयोग की ही तर्ज पर भारत ने हाल ही में जापान के साथ 2+2 मीटिंग की है. दोनों देशों के रक्षा और विदेश मंत्रियों ने विश्व में बढ़ रहे आतंकवाद के खतरे की निंदा करते हुए सभी देशों को आतंकवाद और आतंकवादियों के लिये पनाहगाह बने देशों पर एक्शन लेने की मांग की है. जापान ने भारत द्वारा शुरू किये गये 'इंडो-पैसिफिक ओशन्स इंनिशियेटिव' का भी स्वागत किया है और इस मंच पर अपनी भूमिका बढ़ाने की भी इच्छा जाहिर की है. जापान के लिये यह मंच क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती देने का बेहतर मौका है.

इस पृष्ठभूमि में ही आने वाले सालाना सम्मलेन के होने की उम्मीद है, जिन विषयों पर बातचीत होने की संभावना है, उनमे इंडो-पेसिफिक ओशियन्स इनिशियेटिव में साझेदारी, सीमा पार आतंकवाद, रक्षा, सौर ऊर्जा और तकनीक हस्तांतरण क्षेत्र में और सहयोग शामिल होंगे. इसमे कोई शक नहीं है कि भारत जापान के रिश्ते काफी मजबूत हैं और यहां से इन रिश्तों को और मजबूत किया जायेगा.

(लेखक-जेके त्रिपाठी)

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Last Updated : Dec 16, 2019, 12:56 PM IST
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