बीकानेर में राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में दिखे कई रंग...देखें Video - Rajasthan Hindi news
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बीकानेर. केंद्रीय कला संस्कृति मंत्रालय की ओर से 25 फरवरी से 5 मार्च तक बीकानेर में 14 वें राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव का आयोजन हुआ. 9 दिन के इस आयोजन में बीकानेर के डॉ. करणी सिंह स्टेडियम में मिनी भारत नजर आ आया. इसकी शुरुआत केंद्रीय कला संस्कृति मंत्रालय की तरफ से एक भारत और श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना को लेकर 2015 में की गई थी. बता दें कि कोरोना के चलते 2 साल को छोड़कर लगातार यह आयोजन देश के अलग-अलग शहरों में हो रहे हैं. इस साल एक आयोजन जहां मुंबई में हुआ. वहीं, दूसरा बीकानेर में हुआ. बीकानेर में आयोजित 14वें राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में पूरी तरह से भारत की विविधता में एकता की बात सार्थक होती नजर आईं.
अलग-अलग राज्यों के कलाकार : पंजाब, उड़ीसा, हिमाचल, उत्तराखंड, गोवा, असम और महाराष्ट्र समेत अलग-अलग राज्यों के कलाकार बीकानेर आए हैं. इस दौरान कलाकारों का आपस में मेल मिलाप सौहार्द की भावना को बढ़ा रहा है. साथ ही वे एक दूसरे की संस्कृति से भी रूबरू हो रहे हैं. ऐसे में यह राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव न सिर्फ कला बल्कि खान-पान रहन-सहन और एक दूसरे की परंपराओं, वेशभूषा को जानने का माध्यम बन रहा है.
9 दिन तक चलने वाले इस राष्ट्रीय महोत्सव में बड़े कलाकार अभी तक शामिल हुए हैं. जिनमें सूफी गायक हंसराज हंस, मैथिली ठाकुर, अनवर खान, मालिनी अवस्थी समेत करीब 8 पद्मश्री इसमें शामिल हुए. हर राज्य की परंपरागत लोक कला और लोक कलाकारों को भी इस महोत्सव में बड़े कलाकारों के साथ प्रस्तुति देने के लिए मंच मिल रहा है.
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कत्थक, भांगडा, गिंदड़, बिहू एक साथ : राष्ट्रीय संस्कृति महोत्सव में मिनी भारत नजर आने की बात यूं ही नहीं कही जा रही है. इसकी बानगी या अलग-अलग राज्यों के कलाकारों के एक साथ एक दूसरे से मेल मिलाप से देखने को मिली. वहीं, मंच पर भी एक साथ दक्षिण भारत का कत्थक, पंजाब का भांगड़ा, राजस्थान का गिंदर और अमस के बिहू नृत्य और प्रस्तुतियों का एक साथ होना इस बात की गवाही कर रहा है.
सीखने और जानने को मिल रहा : असम से आई कलाकार रिमझिम गोगोई कहती हैं कि वाकई में यह आयोजन कला संस्कृति को बढ़ाने के लिए एक मील का पत्थर है. साथ ही देश की अलग-अलग संस्कृति को जानने और पहचानने का एक माध्यम है. पहली बार बीकानेर आई रिमझिम कहती हैं कि यहां सब कलाकारों से मिलने से उनकी खान-पान वेशभूषा बोली और परंपरागत कला को जानने का मौका मिला है. वहीं, कत्थक नृत्यांगना वीणा जोशी कहती हैं कि इस तरह के आयोजन होने से कला को बढ़ावा मिलता है. ऐसे आयोजन लगातार होनी चाहिए.