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MUDA मामला: CM सिद्धारमैया की पत्नी को राहत, HC ने ED के समन पर लगाई अंतरिम रोक - MUDA CASE

मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी ने ईडी के समन को रद्द करने की मांग की है और कहा कि आरोप निराधार और राजनीति से प्रेरित हैं.

Karnataka CM Wife Parvathi Minister Byrathi Suresh Move High Court Against ED Summons in MUDA Case
कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 27, 2025, 4:51 PM IST

Updated : Jan 27, 2025, 10:19 PM IST

बेंगलुरु: मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) से संबंधित अवैध भूमि आवंटन मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती और राज्य सरकार में शहरी विकास मंत्री ब्यरथी सुरेश को हाईकोर्ट से फिलहाल राहत मिल गई है. हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ ED द्वारा जारी समन पर अंतरिम रोक लगाई और मामले में अगली सुनवाई 10 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है.

जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने सोमवार को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ईडी के समन पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया.

सुनवाई के दौरान पीठ ने ईडी की ओर से पेश हुए सहायक सॉलिसिटर जनरल अरविंद कामथ से सवाल किए, "MUDA मामले को CBI को ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई पूरी हो चुकी है और लोकायुक्त पुलिस को मामले की जांच रिपोर्ट विशेष अदालत में जमा न करने का निर्देश दिया गया है. इस बीच, प्रवर्तन निदेशालय को उसी आरोप के संबंध में समन जारी करने की क्या जरूरत थी? इतनी जल्दी क्यों है?"

पीठ ने सुनवाई स्थगित करते हुए कहा कि समन को तामील करने और पूछताछ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

वहीं, सुनवाई के दौरान मंत्री ब्यरथी सुरेश की ओर से दलीलें पेश करने वाले वरिष्ठ वकील सीवी नागेश ने पीठ से कहा, "ईडी ने हमारे मुवक्किलों को एमयूडीए मामले के संबंध में समन जारी किया है और उन्हें पूछताछ के लिए उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है. हालांकि, हमारे मुवक्किलों का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है. समन अवैध रूप से जारी किए गए हैं."

इससे पहले, पार्वती और ब्यरथी सुरेश ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के समन के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया. दोनों ने ईडी के समन को रद्द करने की मांग करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर कीं. जस्टिस एम. नागप्रसन्ना के समक्ष याचिकाओं को तत्काल सुनवाई के लिए भेजा गया.

याचिकाकर्ताओं की पैरवी कर रहे अधिवक्ता विक्रम हुइलगोल (Advocate Vikram Huilgol) ने अदालत से मामले को प्राथमिकता के आधार पर लेने का अनुरोध किया. अदालत ने याचिकाओं पर सोमवार को ही सुनवाई करने पर सहमति जताई.

यह मामला मैसूर के केसारे गांव में सर्वेक्षण संख्या 464 के अंतर्गत एक भूमि के टुकड़े से संबंधित है. सीएम सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती द्वारा दायर याचिका के अनुसार, यह भूमि शुरू में उनके भाई ने खरीदी थी और बाद में 2010 में एक पारिवारिक समारोह के दौरान उन्हें उपहार में दी गई थी. इसके बाद विकास उद्देश्यों के लिए MUDA द्वारा भूमि का अधिग्रहण किया गया और फिर इसे गैर-अधिसूचित कर दिया गया. कई अपीलों के बाद MUDA ने मुआवजे के रूप में एक वैकल्पिक भूखंड आवंटित किया.

हालांकि, पार्वती का दावा है कि उन्होंने अक्टूबर 2024 में वैकल्पिक भूखंड को मुडा को वापस कर दिया था, जिससे उन पर सभी अधिकार समाप्त हो गए थे. इसके बावजूद ईडी ने भूमि से संबंधित वित्तीय अनियमितताओं और अवैध लेनदेन का आरोप लगाते हुए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत उन्हें पूछताछ के लिए तलब किया है.

समन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
याचिका में तर्क दिया गया है कि समन निराधार हैं, इसमें जरूरी साक्ष्यों का अभाव है और यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. याचिका यह भी दावा किया गया है कि यह मामला राजनीति से प्रेरित है, जिसका उद्देश्य उनके पति, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को निशाना बनाना है.

ईडी का मामले में शामिल होना गैर-जरूरी
दूसरी ओर, मंत्री ब्यरथी सुरेश ने भी ईडी के समन को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि उनका इस मामले से कोई संबंध नहीं है. उनका तर्क है कि लोकायुक्त पुलिस पहले से ही मामले की जांच कर रही है और ईडी का इसमें शामिल होना गैर-जरूरी है. मंत्री का तर्क है कि समन कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसे रद्द किया जाना चाहिए.

दोनों याचिकाओं में इस बात पर जोर दिया गया है कि आरोप निराधार और राजनीति से प्रेरित हैं. साथ ही कानूनी कार्यवाही से राहत की मांग की गई है.

यह भी पढ़ें- रांची विरोध प्रदर्शन मामले में झारखंड सरकार को झटका, SC के पूछा- धारा 144 लगाने की क्या जरूरत थी

बेंगलुरु: मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण (MUDA) से संबंधित अवैध भूमि आवंटन मामले में कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती और राज्य सरकार में शहरी विकास मंत्री ब्यरथी सुरेश को हाईकोर्ट से फिलहाल राहत मिल गई है. हाईकोर्ट ने उनके खिलाफ ED द्वारा जारी समन पर अंतरिम रोक लगाई और मामले में अगली सुनवाई 10 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी है.

जस्टिस एम. नागप्रसन्ना की अध्यक्षता वाली एकल पीठ ने सोमवार को याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए ईडी के समन पर अंतरिम रोक लगाने का आदेश दिया.

सुनवाई के दौरान पीठ ने ईडी की ओर से पेश हुए सहायक सॉलिसिटर जनरल अरविंद कामथ से सवाल किए, "MUDA मामले को CBI को ट्रांसफर करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई पूरी हो चुकी है और लोकायुक्त पुलिस को मामले की जांच रिपोर्ट विशेष अदालत में जमा न करने का निर्देश दिया गया है. इस बीच, प्रवर्तन निदेशालय को उसी आरोप के संबंध में समन जारी करने की क्या जरूरत थी? इतनी जल्दी क्यों है?"

पीठ ने सुनवाई स्थगित करते हुए कहा कि समन को तामील करने और पूछताछ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती.

वहीं, सुनवाई के दौरान मंत्री ब्यरथी सुरेश की ओर से दलीलें पेश करने वाले वरिष्ठ वकील सीवी नागेश ने पीठ से कहा, "ईडी ने हमारे मुवक्किलों को एमयूडीए मामले के संबंध में समन जारी किया है और उन्हें पूछताछ के लिए उपस्थित होने का निर्देश दिया गया है. हालांकि, हमारे मुवक्किलों का इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है. समन अवैध रूप से जारी किए गए हैं."

इससे पहले, पार्वती और ब्यरथी सुरेश ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) के समन के खिलाफ हाईकोर्ट का रुख किया. दोनों ने ईडी के समन को रद्द करने की मांग करते हुए कर्नाटक हाईकोर्ट में अलग-अलग याचिकाएं दायर कीं. जस्टिस एम. नागप्रसन्ना के समक्ष याचिकाओं को तत्काल सुनवाई के लिए भेजा गया.

याचिकाकर्ताओं की पैरवी कर रहे अधिवक्ता विक्रम हुइलगोल (Advocate Vikram Huilgol) ने अदालत से मामले को प्राथमिकता के आधार पर लेने का अनुरोध किया. अदालत ने याचिकाओं पर सोमवार को ही सुनवाई करने पर सहमति जताई.

यह मामला मैसूर के केसारे गांव में सर्वेक्षण संख्या 464 के अंतर्गत एक भूमि के टुकड़े से संबंधित है. सीएम सिद्धारमैया की पत्नी पार्वती द्वारा दायर याचिका के अनुसार, यह भूमि शुरू में उनके भाई ने खरीदी थी और बाद में 2010 में एक पारिवारिक समारोह के दौरान उन्हें उपहार में दी गई थी. इसके बाद विकास उद्देश्यों के लिए MUDA द्वारा भूमि का अधिग्रहण किया गया और फिर इसे गैर-अधिसूचित कर दिया गया. कई अपीलों के बाद MUDA ने मुआवजे के रूप में एक वैकल्पिक भूखंड आवंटित किया.

हालांकि, पार्वती का दावा है कि उन्होंने अक्टूबर 2024 में वैकल्पिक भूखंड को मुडा को वापस कर दिया था, जिससे उन पर सभी अधिकार समाप्त हो गए थे. इसके बावजूद ईडी ने भूमि से संबंधित वित्तीय अनियमितताओं और अवैध लेनदेन का आरोप लगाते हुए धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत उन्हें पूछताछ के लिए तलब किया है.

समन मौलिक अधिकारों का उल्लंघन
याचिका में तर्क दिया गया है कि समन निराधार हैं, इसमें जरूरी साक्ष्यों का अभाव है और यह उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है. याचिका यह भी दावा किया गया है कि यह मामला राजनीति से प्रेरित है, जिसका उद्देश्य उनके पति, मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को निशाना बनाना है.

ईडी का मामले में शामिल होना गैर-जरूरी
दूसरी ओर, मंत्री ब्यरथी सुरेश ने भी ईडी के समन को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है, जिसमें कहा गया है कि उनका इस मामले से कोई संबंध नहीं है. उनका तर्क है कि लोकायुक्त पुलिस पहले से ही मामले की जांच कर रही है और ईडी का इसमें शामिल होना गैर-जरूरी है. मंत्री का तर्क है कि समन कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है और इसे रद्द किया जाना चाहिए.

दोनों याचिकाओं में इस बात पर जोर दिया गया है कि आरोप निराधार और राजनीति से प्रेरित हैं. साथ ही कानूनी कार्यवाही से राहत की मांग की गई है.

यह भी पढ़ें- रांची विरोध प्रदर्शन मामले में झारखंड सरकार को झटका, SC के पूछा- धारा 144 लगाने की क्या जरूरत थी

Last Updated : Jan 27, 2025, 10:19 PM IST
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