देवली (टोंक). क्षेत्र के राजकीय ट्रॉमा हॉस्पिटल देवली चार जिलों की सीमा और नेशनल हाईवे पर स्थित है. ऐसे में कोरोना के हालात और चिकित्सा सुविधाओं के हालात यहां ठीक नहीं है.
चिकित्सा प्रभारी डॉक्टर राजेंद्र गुप्ता ने बताया कि देवली चिकित्सालय में हमारे पास कुल 18 सिलेंडर है, जिसमें से 16 भरे हुए हैं और दो सिलेंडर मरीजों के ऑक्सीजन पर लगाए हैं. हालांकि हमें अभी खाली 50 सिलेंडर और उपलब्ध हुई है. जिनको भराने की प्रक्रिया जारी है और हमारा पूरा पैरामेडिकल स्टाफ मरीजों की सहायता करने के लिए तैयार है.
इस अस्पताल में चार जिलों के मरीज इलाज के लिए आते है, लेकिन यहां आकर उन्हें पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है. कोरोना संक्रमित या फिर उसके जैसे लक्षण दिखने वाले मरीज को तो भर्ती करने की जहमत ही नहीं उठाते, उसे डॉक्टर प्राथमिक उपचार कर तुरंत जयपुर, टोंक, कोटा रैफर कर देते है. ऐसे में यहां आने वाले मरीजों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.
जानकारी के अनुसार देवली शहर टोंक के अलावा भीलवडा, अजमेर, बूंदी की सीमाओ से सटा हुआ है. ऐसे में इस शहर से रोजाना काफी लोगों की आवाजाही बनी रहती है. मरीजों की संख्या भी अन्य पंचायत समिति मुख्यालयों के अस्पतालों से यहां अधिक रहती है. तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने पहले सीएम कार्यकाल में बढ़ती दुर्घटनाओं को रोकने के लिए स्थानीय अस्पताल को राजकीय ट्रोमा अस्पताल का दर्जा दिया था.
वर्तमान विधायक हरीश चन्द्र मीणा ने विधानसभा सभा में आवाज उठाई थी और 100 बेड भी करवा दिए, लेकिन अब तक इसमें ट्रॉमा के हिसाब से सुविधाएं नहीं बढ़ी. घटना-दुर्घटना के घायलों को इस अस्पताल में पर्याप्त चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है. ऐसे घायलों के लिए मात्र डेढ दर्जन छोटे सिलेंडर है. एक सिलेंडर मरीज को दो घंटे ऑक्सीजन दे सकता है, जो नाकाफी है. ऐसे में कोई बड़ी दुर्घटना हो गई और उनके घायलों को ऑकसीजन की जरूरत पड़ गई तो देवली के इस ट्रॉमा अस्पताल के भरोसे उसकी जान जा सकती है. अभी जो हालात कोरोना के बने हुए है, उसके लिए तो यह अस्पताल कोई उपयोगी नहीं है. यहां मरीजों के लिए आक्सीजन की व्यवस्था पर्याप्त नहीं है. ऐसे में डॉ. ऐसे मरीजों को रेफर करना ही बेहतर समझता है.
कहने को तो यह ट्रॉमा चिकित्सालय है. इसके बावजूद इसमें ना तो आक्सीजन पाइप लाइन वार्ड में बिछी हुई है और ना ही जम्बो सिलेंडर मौजूद है. ऐसे में छोटे सिलेंडर से मरीजों को ट्रॉमा अस्पताल की तरह बेहतर चिकित्सा सुविधा नहीं मिलती है. लोगों का कहना है कि अभी इस अस्पताल में ऑक्सीजन की सुविधा पर्याप्त होती, तो यहां और इस अस्पताल में आने वाले आस-पास के तीन अन्य जिलों के मरीजों को अन्य अस्पतालों में इलाज करवाने नहीं जाना पड़ता.