श्रीगंगानगर. वर्षों बाद राज्य के सीमावर्ती इलाकों में टिड्डी दल का फसलों पर हमला हुआ है. यह पहली बार देखने में आया है कि राज्य में कड़ाके की ठंड के बावजूद टिड्डियों ने बड़ी तादाद में बीकानेर और श्रीगंगानगर के सीमावर्ती चकों, खासतौर से पाकिस्तान से सटे इलाकों में हमला किया है.
इससे पहले खरीफ की फसल पर दो बार टिड्डियों का हमला हो चुका है. कृषि विभाग का कहना है कि विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों की टीम पूरी तरह चाक-चौबंद है और टिड्डियों के दल पर सप्रे का छिड़काव कर उन्हें मारा जा रहा है. टिड्डी दल के पसरने के साथ ही विभाग को सूचना हो गई और टिड्डी नियंत्रण दल बीकानेर के स्टाफ के साथ विभिन्न स्थानों पर दवा का छिड़काव कर रहा है. साथ ही किसानों को इस मामले में जागरुक किया जा रहा है.
कृषि विभाग टिड्डियों वाले क्षेत्रों पर टिड्डी नाशक दवाओं का छिड़काव करवा रहा है. टिड्डियां ज्यादातर पेड़ों पर बैठ रही हैं. किसान फसलों के ऊपर टिड्डियां उड़ती देखते हैं, तो पीपे और थाली बजाकर उन्हें बैठने नहीं दे रहे हैं. वहीं कृषि विभाग और सूरतगढ़ टिड्डी मंडल के कार्मिक किसानों की मदद से टिड्डियों पर कंट्रोल करने में लगे हुए हैं. कई स्थानों पर रात में कीटनाशक क्लोरो पायरीफ़ोर्स 50 ईसी का छिड़काव किया गया. वहां टिड्डियों का ढेर लग गया है. कई जगह जीवित और मृत टिड्डियां पक्षियों का आहार बन रही हैं. जहां टिड्डी मृत देखी गई वहां फसलों को व्यापक नुकसान हुआ है.
कृषि विभाग के अधिकारियों की माने तो टिड्डियों से फसलों के नुकसान का आकलन अभी नहीं किया जा सकता. फिर भी प्रारंभिक रिपोर्ट के अनुसार सरसों और गेहूं में 10% तक नुकसान होने की आशंका है. टिड्डियों का पहला दल अनूपगढ़-घड़साना क्षेत्र के केके टिब्बा पोस्ट, दूसरा दल कैलाश पोस्ट तथा तीसरा दल पाकिस्तान बॉर्डर से लगे कई गांव में प्रवेश किया. विभाग के अनुसार आमतौर पर शाम के समय पड़ाव डालने वाली यह टिड्डियां, जहां भी बैठेंगी इन पर कीटनाशक के छिड़काव से कंट्रोल कर लिया जाएगा.
विभाग किसानों को 100% अनुदान पर टिड्डी नियंत्रण के लिए पौध संरक्षण रसायन वितरित कर रहा है. किसानों के ट्रैक्टरों पर सप्रे माउंटेड से छिड़काव किया जा रहा है. विभाग के उपनिदेशक डॉ जीआर मटोरिया ने टीम के साथ संबंधित चकों में दौरा कर दवा का छिड़काव करवाया. वैज्ञानिकों की मानें तो कच्छ के पश्चिमी क्षेत्र अरब और यमन आदि से होते हुए, यह टिड्डियां खरीफ मौसम के दौरान आईं थीं. टिड्डियां रेतीली झाड़ी और कम घास फूस वाले क्षेत्र में भूमि के भीतर 10 इंच गहराई में अंडे दबा देती हैं. अनुकूल मौसम में इन अंडों में से फाका निकलता है, जो शीघ्र जवान हो जाते हैं और पुन: प्रजनन शुरू कर देते हैं.