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प्रवासी मजदूरों का दर्द...कहा- अब तो कॉरेंटाइन पीरियड भी पूरा हो गया...कुछ रोजी-रोटी का भी इंतजाम कर दो सरकार

सीकर जिले में करीब 30 हजार प्रवासी मजदूर दूसरे राज्यों से वापस आए हैं. यहां आने पर प्रशासन ने सभी को क्वॉरेंटाइन सेंटरों में भेज दिया है. ज्यादातर लोगों के क्वॉरेंटाइन का समय पूरा होने वाला है. इसी बीच इनके सामने संकट है कि अब ये मजदूर करेंगे क्या?

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काम-धंधा छोड़कर सीकर आए प्रवासी मजदूर
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Published : May 30, 2020, 5:13 PM IST

सीकर. कोरोना वायरस की वजह से देशभर में ठप हुए काम-धंधे और लॉकडाउन के बाद काफी संख्या में मजदूरों ने एक राज्य से दूसरे राज्यों में पलायन किया. राजस्थान से भी काफी संख्या में मजदूर दूसरे राज्यों में पहुंचे तो यहां के जो लोग दूसरी जगहों पर काम करते थे वह भी काफी संख्या में राजस्थान आए. यहां आने के बाद प्रशासन ने सभी को क्वॉरेंटाइन कर दिया.

काम-धंधा छोड़कर सीकर आए प्रवासी मजदूर

सीकर जिले की बात की जाए तो यहां दूसरे राज्यों से करीब 30 हजार प्रवासी मजदूर आ चुके हैं, जिनमें से ज्यादातर मजदूर महाराष्ट्र, गुजरात और अन्य दूसरे राज्यों में मजदूरी करते थे. वहां से यह लोग अपना काम-धंधा छोड़कर वापस अपने प्रदेश में आए और यहां आते ही प्रशासन ने इनको क्वॉरेंटाइन सेंटरों में भेज दिया. अब ज्यादातर लोगों के क्वॉरेंटाइन का समय पूरा होने वाला है. इस वजह से अब इनके सामने संकट यह है कि ये सब यहां काम धंधा क्या करेंगे? क्योंकि रोजगार की तलाश में ही यह लोग दूसरे राज्यों में गए थे और जो काम करते थे उस तरह का रोजगार यहां नहीं है.

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प्रवासियों के सामने रोजी-रोटी का सकंट

पढ़ेंः Exclusive: राम मंदिर, अनुच्छेद- 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन जैसे अटके मुद्दों का पीएम ने किया समाधान: कटारिया

दरअसल, जिले में ना तो कोई फैक्ट्री चलती है और ना ही कोई ऐसा व्यवसाय है जिससे इनको रोजगार मिल सके. इस वजह से इन लोगों को अब यह चिंता सता रही है कि रोजी-रोटी के लिए क्या करेंगे. क्योंकि खेती-बाड़ी के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है और खेती में भी फायदा नहीं होने की वजह से यह पहले दूसरी जगहों पर गए थे.

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खत्म हुई क्वॉरेंटाइन की अवधि

उठने लगी मांगें, सरकार करे व्यवस्था

बाहर से आए लोगों ने अभी से यह मांग उठानी शुरू कर दी है कि सरकार इनके रोजगार के लिए व्यवस्था करे. जिससे की इनके सामने रोजी रोटी का संकट न बने. कई जनप्रतिनिधि भी इन मजदूरों के लिए काम देने की मांग कर चुके हैं. इससे पहले भी कई सांसदों ने नरेगा में जॉब कार्ड बढ़ाने की मांग उठाई थी.

पढ़ेंः भिखारियों के फिरेंगे दिन...सर्वे के बाद Skill Development और स्थाई पुनर्वास के होंगे प्रयास

इस तरह समझें लोगों की परेशानी

1- सीकर के मुकेश कुमावत का कहना है कि महाराष्ट्र में वो टाइल्स लगाने का काम करते थे. हर महीने करीब 20 हजार रुपए की मजदूरी बन जाती थी, लेकिन अब वहां से काम छोड़कर यहां आ गए तो यहां कोई तय नहीं है कि क्या काम करेंगे?

2- सांवली के पास ढानी के रहने वाले सीताराम का कहना है कि वो महाराष्ट्र में मजदूरी करते थे. मजदूरी से हर दिन वो 500 कमा लेते थे. इस तरह महीने में 15 हजार तक कमा सकते थे, लेकिन काम धंधा छोड़कर वो अब गांव आ गए हैं.

3- मंडवाड़ा के रहने वाले नन्दकिशोर का कहना है कि वह नेपाल में मेसन का काम करते थे. लॉकडाउन की वजह से काम बंद हो गया. जिसके बाद वो मुश्किल से अपने जिले तक पहुंचे हैं. नेपाल में उनको हर महीने 25 से 30 हजार बच रहे थे, लेकिन अब यहां क्या करेंगे कुछ समझ नहीं आ रहा?

सीकर. कोरोना वायरस की वजह से देशभर में ठप हुए काम-धंधे और लॉकडाउन के बाद काफी संख्या में मजदूरों ने एक राज्य से दूसरे राज्यों में पलायन किया. राजस्थान से भी काफी संख्या में मजदूर दूसरे राज्यों में पहुंचे तो यहां के जो लोग दूसरी जगहों पर काम करते थे वह भी काफी संख्या में राजस्थान आए. यहां आने के बाद प्रशासन ने सभी को क्वॉरेंटाइन कर दिया.

काम-धंधा छोड़कर सीकर आए प्रवासी मजदूर

सीकर जिले की बात की जाए तो यहां दूसरे राज्यों से करीब 30 हजार प्रवासी मजदूर आ चुके हैं, जिनमें से ज्यादातर मजदूर महाराष्ट्र, गुजरात और अन्य दूसरे राज्यों में मजदूरी करते थे. वहां से यह लोग अपना काम-धंधा छोड़कर वापस अपने प्रदेश में आए और यहां आते ही प्रशासन ने इनको क्वॉरेंटाइन सेंटरों में भेज दिया. अब ज्यादातर लोगों के क्वॉरेंटाइन का समय पूरा होने वाला है. इस वजह से अब इनके सामने संकट यह है कि ये सब यहां काम धंधा क्या करेंगे? क्योंकि रोजगार की तलाश में ही यह लोग दूसरे राज्यों में गए थे और जो काम करते थे उस तरह का रोजगार यहां नहीं है.

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प्रवासियों के सामने रोजी-रोटी का सकंट

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दरअसल, जिले में ना तो कोई फैक्ट्री चलती है और ना ही कोई ऐसा व्यवसाय है जिससे इनको रोजगार मिल सके. इस वजह से इन लोगों को अब यह चिंता सता रही है कि रोजी-रोटी के लिए क्या करेंगे. क्योंकि खेती-बाड़ी के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं है और खेती में भी फायदा नहीं होने की वजह से यह पहले दूसरी जगहों पर गए थे.

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खत्म हुई क्वॉरेंटाइन की अवधि

उठने लगी मांगें, सरकार करे व्यवस्था

बाहर से आए लोगों ने अभी से यह मांग उठानी शुरू कर दी है कि सरकार इनके रोजगार के लिए व्यवस्था करे. जिससे की इनके सामने रोजी रोटी का संकट न बने. कई जनप्रतिनिधि भी इन मजदूरों के लिए काम देने की मांग कर चुके हैं. इससे पहले भी कई सांसदों ने नरेगा में जॉब कार्ड बढ़ाने की मांग उठाई थी.

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इस तरह समझें लोगों की परेशानी

1- सीकर के मुकेश कुमावत का कहना है कि महाराष्ट्र में वो टाइल्स लगाने का काम करते थे. हर महीने करीब 20 हजार रुपए की मजदूरी बन जाती थी, लेकिन अब वहां से काम छोड़कर यहां आ गए तो यहां कोई तय नहीं है कि क्या काम करेंगे?

2- सांवली के पास ढानी के रहने वाले सीताराम का कहना है कि वो महाराष्ट्र में मजदूरी करते थे. मजदूरी से हर दिन वो 500 कमा लेते थे. इस तरह महीने में 15 हजार तक कमा सकते थे, लेकिन काम धंधा छोड़कर वो अब गांव आ गए हैं.

3- मंडवाड़ा के रहने वाले नन्दकिशोर का कहना है कि वह नेपाल में मेसन का काम करते थे. लॉकडाउन की वजह से काम बंद हो गया. जिसके बाद वो मुश्किल से अपने जिले तक पहुंचे हैं. नेपाल में उनको हर महीने 25 से 30 हजार बच रहे थे, लेकिन अब यहां क्या करेंगे कुछ समझ नहीं आ रहा?

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