सीकर. 'आमजन में विश्वास और अपराधियों में डर' सीकर पुलिस द्वारा प्रयोग की जाने वाली यह लाइन अब झूठी साबित होती नजर आ रही है. वजह भी वाजिब है, क्योंकि कोर्ट खुद इस पर अप्रत्यक्ष मुहर लगाता नजर आ रहा है. सीकर पुलिस अपने ही कातिलों की जांच ढंग से नहीं कर पाई इसलिए आरोपियों को सजा की जगह बरी होने का मौका मिल गया.
जब पुलिस खुद पर हमला करने वालों को ही सजा नहीं दिलवा पाई तो फिर आम आदमी तो क्या उम्मीद ही क्या करें. पिछले 15 दिन में सीकर कोर्ट ने दो ऐसे फैसले किए है, जिनमें पुलिस की गलत जांच की वजह से पुलिस पर हमला करने वाले बदमाश बरी हो गए. इन दोनों ही मामलों को लेकर कोर्ट ने डीजीपी को यह तक लिखा है कि इस तरह के अधिकारियों को जांच नहीं दे, जो सही जांच नहीं करते.
यह दोनों मामले गंभीर थे. एक मामले में पुलिस के एएसआई की हत्या की गई थी, तो दूसरे मामले में पुलिस पर जानलेवा हमला किया था. जिसमें एक एएसआई का जबड़ा टूट गया था. 23 अक्टूबर 2013 को फतेहपुर कोतवाली थाने के एएसआई ओमप्रकाश गोरावा की हत्या की गई थी. मामले के मुख्य आरोपी दिनेश उर्फ लारा और एक अन्य को कोर्ट में 15 दिन पहले बरी कर दिया है.
इसी तरह 27 अप्रैल 2014 को सीकर कोतवाली के एएसआई महेंद्र सिंह और कांस्टेबल राकेश पर ड्यूटी के दौरान बदमाशों ने जानलेवा हमला किया था. इस मामले में कुल 9 आरोपी नामजद थे. जिनको कोर्ट ने संदेह का लाभ देकर न केवल बरी किया है बल्कि पुलिस की जांच के खिलाफ भी बड़ी टिप्पणी की है.
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दोनों ही मामलों में कोर्ट ने डीजीपी को लिखा है कि पुलिस ने जांच सही नहीं की. इसी वजह से बदमाशों को बरी करना पड़ रहा है. हालांकि अब इन मामलों में पुलिस अपील कर दोबारा जांच कर सकती है लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर खुद पर हमला करने वालों को ही पुलिस ठीक से जांच में शामिल क्यों नहीं करती.
पुलिस के जांच में अधिकारियों ने की बड़ी चूक इस वजह से छूटे बदमाश-
एएसआई ओमप्रकाश की हत्या करने वाले बदमाशों के खिलाफ पुलिस कड़ी से कड़ी नहीं जोड़ पाई और इसी वजह से बदमाश बैखोफ घूम रहे है. पुलिस कोर्ट में यह तक साबित नहीं कर पाई कि एएसआई की हत्या के पीछे आरोपी दिनेश उर्फ लारा का कोई मकसद भी था. पुलिस द्वारा आरोपी के ही मोहल्ले के दो लोगों को गवाह बनाया गया और दोनों मुकर गए. यह साबित करता है कि पुलिस की तैयारी पूरी नहीं थी.
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इसी तरह एएसआई महेंद्र सिंह और कांस्टेबल राकेश पर हमला करने के मामले में पुलिस ने जांच में पूरी तरह से लापरवाही बरती है. करीब 12 बदमाशों ने पुलिस पर हॉस्टल में हमला किया था लेकिन पुलिस ने कोर्ट में यह तक साबित नहीं किया कि इनमें से कौन सा बदमाश हॉस्टल के किस कमरे में रहता था. अपनी जांच में अधिकारी ने हॉस्टल के रिकॉर्ड तक को शामिल नहीं किया.