सीकर. लंबे समय से सीकर में 'लालगढ़' यानी कि माकपा का गढ़ लगातार कमजोर होता जा रहा है. एक समय ऐसा था जब सीकर में माकपा के 8 में दो विधायक थे. लोकसभा चुनाव में भी 22 से 23% वोट माकपा को हासिल होते थे. लेकिन पिछले 10 साल में सीकर में माकपा लगातार कमजोर होती जा रही है. छात्र संघ चुनाव से लेकर लोकसभा तक माकपा का प्रभुत्व होता था लेकिन अब इस पार्टी की हालत नाजुक चल रही है. लोकसभा चुनाव में तो पार्टी महज 2.3% वोटों पर सिमट कर रह गई है.
एक समय ऐसा भी था जब सीकर में माकपा के विधायकों की संख्या भाजपा से ज्यादा थी. 2008 के चुनाव में सीकर में माकपा के दो विधायक जीते थे, और भाजपा का केवल एक.जिले के सबसे बड़े कॉलेज पर आज तक माकपा के छात्र संगठन एसएफआई ने कांग्रेस और भाजपा के छात्र संगठनों को नहीं जितने दिया.
लेकिन, पिछले10 सालों की बात करें तो 2008 विधानसभा चुनाव के बाद माकपा का एक भी विधायक सीकर में नहीं जीत पाया है. 1996 में सीकर लोकसभा चुनावों में 9.33% वोट हासिल करने वाली माकपा ने अगले चुनाव यानी 1998 में 24.92% वोट हासिल कर लिए थे. इसके बाद 2009 के चुनाव में भी माकपा ने जिले में 22.28% वोट हासिल किए. लेकिन 2014 के चुनाव के बाद माकपा का वोट ग्राफ गिरता जा रहा है. 2014 के चुनावों में पार्टी को महज 4.98% वोट ही मिले. इस बार के चुनावों की बात करें तो माकपा को केवल 2.3% वोट हासिल कर पाई. इसके बाद भी माकपा नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी का जनाधार आगे भी बरकरार रहेगा.