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राजसमंद के देवगढ़ में अरावली की पहाड़ियों पर विराजित हैं सेंड माता, नवरात्रि पर लगता है भक्तों का मेला

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Published : Oct 24, 2020, 5:50 PM IST

राजसमंद के देवगढ़ में शक्ति स्थलों में शुमार सेंड माता मंदिर की महिमा का गुणगान आसपास सहित कई क्षेत्रों में आज भी किया जाता है. अरावली की तीसरे नंबर की चोटी पर बनाई गई यह मंदिर 100 किलोमीटर दूर से अपनी रमणीय स्थिति का आभास कराता है.

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देवगढ़ में अरावली पहाड़ियों पर स्थित है सेंड माता

देवगढ़ (राजसमंद). जिले के देवगढ़ उपखंड क्षेत्र के प्रसिद्ध शक्ति स्थलों में शुमार सेंड माता मंदिर की महिमा का गुणगान आसपास सहित कई क्षेत्रों में आज भी किया जाता है. अरावली की तीसरे नंबर की चोटी पर बनाई गई मंदिर 100 किलोमीटर दूर से अपनी रमणीय स्थिति का आभास कराता है. लगभग 500 वर्ष पुराना है यह मंदिर आदिकाल से शक्ति स्वरूपा मां अंबे का यशोगान करता हुआ भक्तों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है.

यहां आने वाले हर भक्त की झोली कभी खाली नहीं रहती है, ऐसी मान्यता है यहां की. किंवदंतियों के अनुसार सेंड माता मंदिर का निर्माण आमेट ठिकाने के राव ने करवाया था. बताया जाता है कि आमेट ठिकाने के राव किसी समय इन जंगलों में भटक रहे थे. उन्हें रास्ते का ज्ञान नहीं रहा ऐसे में वहां एक ऊंटनी पर सवारी करके महिला प्रकट हुई उसने राव को सही रास्ते का ज्ञान कराया.

साथ ही बताया कि मेरा मंदिर किसी पहाड़ी पर बना दो ऐसा आदेश मिलने पर आमेट ठिकाने के राव की ओर से भेडियों की जन्मस्थली अरावली की इस मनोरम पहाड़ी पर एक मंदिर बनवाकर के मूर्ति स्थापित की गई. बता दें कि ऊटनी को क्षेत्रीय भाषा में सेंड कहा जाता है इसलिए सेंड माता नाम से जानी गई है. मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है और यह अरावली की तीसरी सबसे बड़ी चोटी पर बना हुआ है.

पढ़ें: फेस्टिवल सीजन के तहत बांद्रा-जैसलमेर सुपरफास्ट साप्ताहिक एक्सप्रेस ट्रेन पहुंची जैसलमेर, कम दिखी यात्रियों की संख्या

भव्य मंदिर के अंदर कांच की नक्काशी बनी हुई है वह मूर्ति संगमरमर की है. नवरात्रि में नौ दिनों तक माता के विभिन्न स्वरूपों का विभिन्न पोशाकों से श्रृंगार करवाया जाता है और पारंपरिक रूप से पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का जनसैलाब उमड़ा रहता है. यहां का नजारा किसी मेले से कम नजर नहीं आता है. साथ ही नवरात्रि में विधिवत रूप से जवारा भी बोया जाता है और उसका विसर्जन नवरात्रि समाप्ति के बाद किया जाता है.

यह मंदिर राजस्थान ही नहीं वरन महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश के श्रद्धालुओं का भी आस्था का केंद्र बना हुआ है. समुद्र तल से लगभग 6 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर बना यह मंदिर दूरदराज के लिए देशी व विदेशी पर्यटकों के लिए एक पर्यटन स्थल से भी कम नहीं है.

इस मंदिर के प्रांगण से 100 किलोमीटर के दायरे में बसे गांव एक टापू से दिखते हुए नजर आते हैं. वहीं अगर मौसम साफ हो तो यहां से 200 किलोमीटर दूर चित्तौड़गढ़ का किला भी नजर आता है. पिछले एक दशक में 3 बार मंदिर पर आकाशीय बिजली गिरी थी लेकिन मंदिर व मां की प्रतिमा पर कोई असर नहीं हुआ है.

देवगढ़ (राजसमंद). जिले के देवगढ़ उपखंड क्षेत्र के प्रसिद्ध शक्ति स्थलों में शुमार सेंड माता मंदिर की महिमा का गुणगान आसपास सहित कई क्षेत्रों में आज भी किया जाता है. अरावली की तीसरे नंबर की चोटी पर बनाई गई मंदिर 100 किलोमीटर दूर से अपनी रमणीय स्थिति का आभास कराता है. लगभग 500 वर्ष पुराना है यह मंदिर आदिकाल से शक्ति स्वरूपा मां अंबे का यशोगान करता हुआ भक्तों के लिए एक वरदान साबित हो रहा है.

यहां आने वाले हर भक्त की झोली कभी खाली नहीं रहती है, ऐसी मान्यता है यहां की. किंवदंतियों के अनुसार सेंड माता मंदिर का निर्माण आमेट ठिकाने के राव ने करवाया था. बताया जाता है कि आमेट ठिकाने के राव किसी समय इन जंगलों में भटक रहे थे. उन्हें रास्ते का ज्ञान नहीं रहा ऐसे में वहां एक ऊंटनी पर सवारी करके महिला प्रकट हुई उसने राव को सही रास्ते का ज्ञान कराया.

साथ ही बताया कि मेरा मंदिर किसी पहाड़ी पर बना दो ऐसा आदेश मिलने पर आमेट ठिकाने के राव की ओर से भेडियों की जन्मस्थली अरावली की इस मनोरम पहाड़ी पर एक मंदिर बनवाकर के मूर्ति स्थापित की गई. बता दें कि ऊटनी को क्षेत्रीय भाषा में सेंड कहा जाता है इसलिए सेंड माता नाम से जानी गई है. मंदिर लगभग 500 वर्ष पुराना है और यह अरावली की तीसरी सबसे बड़ी चोटी पर बना हुआ है.

पढ़ें: फेस्टिवल सीजन के तहत बांद्रा-जैसलमेर सुपरफास्ट साप्ताहिक एक्सप्रेस ट्रेन पहुंची जैसलमेर, कम दिखी यात्रियों की संख्या

भव्य मंदिर के अंदर कांच की नक्काशी बनी हुई है वह मूर्ति संगमरमर की है. नवरात्रि में नौ दिनों तक माता के विभिन्न स्वरूपों का विभिन्न पोशाकों से श्रृंगार करवाया जाता है और पारंपरिक रूप से पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के दौरान यहां भक्तों का जनसैलाब उमड़ा रहता है. यहां का नजारा किसी मेले से कम नजर नहीं आता है. साथ ही नवरात्रि में विधिवत रूप से जवारा भी बोया जाता है और उसका विसर्जन नवरात्रि समाप्ति के बाद किया जाता है.

यह मंदिर राजस्थान ही नहीं वरन महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश के श्रद्धालुओं का भी आस्था का केंद्र बना हुआ है. समुद्र तल से लगभग 6 हजार किलोमीटर की ऊंचाई पर बना यह मंदिर दूरदराज के लिए देशी व विदेशी पर्यटकों के लिए एक पर्यटन स्थल से भी कम नहीं है.

इस मंदिर के प्रांगण से 100 किलोमीटर के दायरे में बसे गांव एक टापू से दिखते हुए नजर आते हैं. वहीं अगर मौसम साफ हो तो यहां से 200 किलोमीटर दूर चित्तौड़गढ़ का किला भी नजर आता है. पिछले एक दशक में 3 बार मंदिर पर आकाशीय बिजली गिरी थी लेकिन मंदिर व मां की प्रतिमा पर कोई असर नहीं हुआ है.

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