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प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 50 केएलडी तक पानी छोड़ने वाली फैक्ट्रियों को दी राहत

पाली शहर के उद्यमियों को राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने राहत प्रदान की है. अब पाली में 50 केएलडी रंगीन पानी छोड़ने वाली फैक्ट्रियों को लामेला तकनीक लगाना आवश्यक नहीं होगा.

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Published : Jun 16, 2019, 4:38 PM IST

प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 50 केएलडी तक पानी छोड़ने वाली फेक्ट्रोयों को दी राहत

पाली. राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने शनिवार को आदेश जारी कर ऐसी इकाइयों में रंगीन पानी में पीएच को न्यूट्रल करने के बाद ट्रीटमेंट प्लांट में भेजने की मंजूरी प्रदान की है. इस आदेश से पाली शहर में संचालित हो रही 350 से अधिक फैक्ट्री संचालकों को बड़ी राहत मिली है. मंडल ने पहले भी 100 से अधिक केएलडी वाली इकाइयों को लामेला तकनीक का प्लांट लगाने के आदेश दिए थे. बाद में सीईटीपी ने इसे सभी के लिए लागू कर दिया था.

जानकारी के अनुसार लामेला प्लांट तकनीक से एक फैक्ट्री मालिक पर 7 से 10 लाख रुपए तक का आर्थिक भार आता है. अब 50 केएलडी तक के लिए यह अनिवार्यता खत्म कर दी गई है. अब ऐसे उद्यमियों को अपने यहां पर दो प्लास्टिक की टंकी ही मंगवानी पड़ेगी, इसमें कास्टिक और एसिडिक पानी को न्यूट्रल किया जा सकेगा. इस तरह फैक्ट्री का दो टंकी के लिए केवल एक हजार रुपए खर्च होगा.

जानकारी के अनुसार प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने पहले 100 केएलडी से अधिक क्षमता वाली पाली शहर की 66 फैक्ट्रियों में लामेला तकनीक पर आधारित प्राइमरी ट्रीटमेंट प्लांट लगाना अनिवार्य कर दिया था. इसके बाद सीईटीपी ने सभी फैक्ट्रियों के लिए यह प्लांट अनिवार्य करने के आदेश जारी किए थे. इसके पीछे प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारियों का मानना था कि लामेला तकनीक से फैक्ट्रियों का पानी प्राइमरी ट्रीट करने से ट्रीटमेंट प्लांट पर निर्धारित पैरामीटर्स के अनुरूप पानी आएगा. इससे प्लांटों की सैंपल रिपोर्ट फेल होने का संकट नहीं रहेगा. इस बीच छोटे उद्यमियों के लिए भी लामेला तकनीक अनिवार्य करने का विरोध हो गया था.

प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 50 केएलडी तक पानी छोड़ने वाली फैक्ट्रियों को दी राहत

छोटे फैक्ट्रियों के संचालकों का कहना था कि उनके यहां मात्र 50 केएलडी तक ही पानी निकलता है. ऐसे में उनके लिए प्रति लामेला के 8 लाख का खर्च करना महंगा पड़ेगा. गौरतलब है कि एनजीटी के आदेश पर गठित की गई एक्सपर्ट कमेटी ने पाली शहर में 2 दिन तक फैक्ट्रियों से निकलने वाले रंगीन पानी का पीएच नापा था. बड़ी इकाइयों में यह काफी ज्यादा था. वहीं शहर में टेबल प्रिंटिंग, डाइंग और अन्य छोटे-मोटे प्रोसेस करने वाली इकाइयों में यह कम पाया गया.

इसके बाद एक्सपर्ट कमेटी ने इस बारे में अपनी राय दी थी कि छोटे उद्यमियों के लिए पीएच करेक्शन करने के लिए किसी अन्य तकनीक पर जाना चाहिए. पीएच का निर्धारित मानक राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 6.50 से 9 तक रखा गया है. इसके लिए 2 टंकियों में रंगीन पानी को जिसमें एसिड ज्यादा है, उसमें कास्टिक मिलाने तथा कास्टिक ज्यादा होने पर एसिड मिलाकर मिक्स करने का सुझाव दिया. इस आधार पर राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने आदेश भी जारी किए.

पाली. राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने शनिवार को आदेश जारी कर ऐसी इकाइयों में रंगीन पानी में पीएच को न्यूट्रल करने के बाद ट्रीटमेंट प्लांट में भेजने की मंजूरी प्रदान की है. इस आदेश से पाली शहर में संचालित हो रही 350 से अधिक फैक्ट्री संचालकों को बड़ी राहत मिली है. मंडल ने पहले भी 100 से अधिक केएलडी वाली इकाइयों को लामेला तकनीक का प्लांट लगाने के आदेश दिए थे. बाद में सीईटीपी ने इसे सभी के लिए लागू कर दिया था.

जानकारी के अनुसार लामेला प्लांट तकनीक से एक फैक्ट्री मालिक पर 7 से 10 लाख रुपए तक का आर्थिक भार आता है. अब 50 केएलडी तक के लिए यह अनिवार्यता खत्म कर दी गई है. अब ऐसे उद्यमियों को अपने यहां पर दो प्लास्टिक की टंकी ही मंगवानी पड़ेगी, इसमें कास्टिक और एसिडिक पानी को न्यूट्रल किया जा सकेगा. इस तरह फैक्ट्री का दो टंकी के लिए केवल एक हजार रुपए खर्च होगा.

जानकारी के अनुसार प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने पहले 100 केएलडी से अधिक क्षमता वाली पाली शहर की 66 फैक्ट्रियों में लामेला तकनीक पर आधारित प्राइमरी ट्रीटमेंट प्लांट लगाना अनिवार्य कर दिया था. इसके बाद सीईटीपी ने सभी फैक्ट्रियों के लिए यह प्लांट अनिवार्य करने के आदेश जारी किए थे. इसके पीछे प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारियों का मानना था कि लामेला तकनीक से फैक्ट्रियों का पानी प्राइमरी ट्रीट करने से ट्रीटमेंट प्लांट पर निर्धारित पैरामीटर्स के अनुरूप पानी आएगा. इससे प्लांटों की सैंपल रिपोर्ट फेल होने का संकट नहीं रहेगा. इस बीच छोटे उद्यमियों के लिए भी लामेला तकनीक अनिवार्य करने का विरोध हो गया था.

प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 50 केएलडी तक पानी छोड़ने वाली फैक्ट्रियों को दी राहत

छोटे फैक्ट्रियों के संचालकों का कहना था कि उनके यहां मात्र 50 केएलडी तक ही पानी निकलता है. ऐसे में उनके लिए प्रति लामेला के 8 लाख का खर्च करना महंगा पड़ेगा. गौरतलब है कि एनजीटी के आदेश पर गठित की गई एक्सपर्ट कमेटी ने पाली शहर में 2 दिन तक फैक्ट्रियों से निकलने वाले रंगीन पानी का पीएच नापा था. बड़ी इकाइयों में यह काफी ज्यादा था. वहीं शहर में टेबल प्रिंटिंग, डाइंग और अन्य छोटे-मोटे प्रोसेस करने वाली इकाइयों में यह कम पाया गया.

इसके बाद एक्सपर्ट कमेटी ने इस बारे में अपनी राय दी थी कि छोटे उद्यमियों के लिए पीएच करेक्शन करने के लिए किसी अन्य तकनीक पर जाना चाहिए. पीएच का निर्धारित मानक राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 6.50 से 9 तक रखा गया है. इसके लिए 2 टंकियों में रंगीन पानी को जिसमें एसिड ज्यादा है, उसमें कास्टिक मिलाने तथा कास्टिक ज्यादा होने पर एसिड मिलाकर मिक्स करने का सुझाव दिया. इस आधार पर राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने आदेश भी जारी किए.

Intro:पाली. पाली शहर के उद्यमियों को राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने राहत प्रदान की है। अब पाली में 50 केएलडी रंगीन पानी छोड़ने वाली फैक्ट्रियों को लामेला तकनीक लगाना आवश्यक नहीं होगा। राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने शनिवार को आदेश जारी कर ऐसी इकाइयों में रंगीन पानी में पीएच को न्यूट्रल करने के बाद ट्रीटमेंट प्लांट में भेजने की मंजूरी प्रदान की है। इस आदेश से पाली शहर में संचालित हो रही 350 से अधिक फैक्ट्री संचालकों को बड़ी राहत मिली है। मंडल ने पहले भी 100 से अधिक केएलडी वाली इकाइयों को लामेला तकनीक का प्लांट लगाने के आदेश दिए थे। बाद में सीईटीपी ने इसे सभी के लिए लागू कर दिया था।



Body: जानकारी के अनुसार लामेला प्लांट तकनीक से एक फैक्ट्री मालिक पर 7 से 10 लाख रुपए तक का आर्थिक भार आता है। अब 50 केएलडी तक के लिए यह अनिवार्यता खत्म कर दी गई है। अब ऐसे उद्यमियों को अपने यहां पर दो प्लास्टिक की टंकी ही मंगवानी पड़ेगी। इसमें कास्टिक तथा एसिडिक पानी को न्यूटन किया जा सकेगा। प्रतिक फैक्ट्री का दो टंकी के ऊपर मात्र 1 हजार रुपए का खर्च होगा। जानकारी के अनुसार प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने पहले 100 केएलडी से अधिक क्षमता वाली पाली शहर की 66 फैक्ट्रियों में लामेला तकनीक पर आधारित प्राइमरी ट्रीटमेंट प्लांट लगाना अनिवार्य कर दिया था। इसके बाद सीईटीपी ने सभी फैक्ट्रियों के लिए यह प्लांट अनिवार्य करने के आदेश जारी किए थे। इसके पीछे प्रदूषण नियंत्रण मंडल के अधिकारियों का मानना था कि लामेला तकनीक से फैक्ट्रियों का पानी प्राइमरी ट्रीट करने से ट्रीटमेंट प्लांट पर निर्धारित पैरामीटर्स के अनुरूप पानी आएगा। इससे प्लांटों की सैंपल रिपोर्ट फेल होने का संकट नहीं रहेगा। इस बीच छोटे उद्यमियों के लिए भी लामेला तकनीक अनिवार्य करने का विरोध हो गया था। छोटे फैक्ट्रियों के संचालकों का कहना था की उनके यहां मात्र 50 केएलडी तक ही पानी निकलता है। ऐसे में उनके लिए प्रति लामेला के 8 लाख का खर्च करना महंगा पड़ेगा।


Conclusion: गौरतलब है कि एनजीटी के आदेश पर गठित की गई एक्सपर्ट कमेटी ने पाली शहर में 2 दिन तक फैक्ट्रियों से निकलने वाले रंगीन पानी का पीएच नापा था। बड़ी इकाइयों में यह काफी ज्यादा था। वहीं शहर में टेबल प्रिंटिंग, डाइंग तथा अन्य छोटे-मोटे प्रोसेस करने वाली इकाइयों में यह कम पाया गया। इसके बाद एक्सपर्ट कमेटी ने इस बारे में अपनी राय दी थी कि छोटे उद्यमियों के लिए पीएच करेक्शन करने के लिए किसी अन्य तकनीक पर जाना चाहिए। पीएच का निर्धारित मानक राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने 6.50 से 9 तक रखा गया है। इसके लिए 2 टंकियों में रंगीन पानी को जिसमें एसिड ज्यादा है उसमें कास्टिक मिलाने तथा कास्टिक ज्यादा होने पर एसिड मिलाकर मिक्स करने का सुझाव दिया। इस आधार पर राजस्थान प्रदूषण नियंत्रण मंडल ने आदेश भी जारी किए।
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