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नागौर की दो ग्रेजुएट सगी बहनों ने अपनाया संयम का पथ, जैन साध्वी की ली दीक्षा - सुरभि

दीक्षा के उपलक्ष्य में नागौर में करीब पांच दिन तक धार्मिक आयोजन हुए. दोनों बहनों का 9 फरवरी को धूम-धाम से वरघोड़ा निकाला गया. इसके बाद 10 को दादावाड़ी में उन्होंने सांसारिक मोह का त्याग कर संयम का पथ अपना लिया.

जैन साध्वी
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Published : Feb 11, 2019, 8:14 PM IST

नागौर. त्याग और बलिदान के साथ आध्यात्म और धर्म के लिए भी जानी जाने वाली नागौर नगरी के इतिहास में अब एक नया पाठ जुड़ गया है. नागौर के खजांची परिवार की दो सगी बहनों ने सांसारिक मोह त्याग कर संयम का पथ अंगीकार कर लिया है. मुमुक्षु स्वीटी और सुरभि की साध्वी की दीक्षा ली है.

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दीक्षा के उपलक्ष्य में नागौर में करीब पांच दिन तक धार्मिक आयोजन हुए. दोनों बहनों का 9 फरवरी को धूम-धाम से वरघोड़ा निकाला गया. इसके बाद 10 को दादावाड़ी में उन्होंने सांसारिक मोह का त्याग कर संयम का पथ अपना लिया. माता सरला देवी और पिता मनोज कुमार खजांची की बड़ी बेटी स्वीटी ग्रेजुएट हैं. जबकि सुरभि पोस्ट ग्रेजुएट हैं. उन्होंने कंप्यूटर की पढ़ाई भी की है.

जैन समाज के खरतरगच्छ महासंघ के प्रवक्ता भास्कर खजांची ने बताया कि सुरभि को आठ साल पहले वैराग्य की प्रेरणा मिली. उन दिनों साध्वी सुरंजना श्रीजी के चातुर्मास प्रवचन में दोनों बहनें लगातार आई तो भौतिक जीवन के प्रति उनका मोह खत्म हो गया था. चार साल से ये दोनों बहनें धार्मिक अध्ययन के लिए सुरंजना श्रीजी के साथ राह रही हैं. उनका कहना है कि करीब 100 साल पहले खजांची परिवार से एक युवती साध्वी बनी थी.

अब खजांची परिवार की ही दो बहनों ने एक साथ दीक्षा लेकर एक नया इतिहास रचा है. साध्वी बनने से पहले मुमुक्षु सुरभि ने कहा कि आज युवा डॉक्टर, इंजीनियर या सरकारी अधिकारी बनना चाहते हैं. लेकिन उन्होंने भौतिक जीवन के बजाय आत्म कल्याण का मार्ग चुना. इसमें उनके माता पिता का भी पूरा सहयोग मिला. जिस तरह शादी के लिए माता पिता लड़की के लिए दूल्हा तय करते हैं. उसी तरह इन दोनों बहनों के लिए गुरु का चयन माता-पिता ने ही किया. मुमुक्षु स्वीटी और सुरभि ने साध्वी सुरंजना श्रीजी के सानिध्य में दीक्षा ली.

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नागौर. त्याग और बलिदान के साथ आध्यात्म और धर्म के लिए भी जानी जाने वाली नागौर नगरी के इतिहास में अब एक नया पाठ जुड़ गया है. नागौर के खजांची परिवार की दो सगी बहनों ने सांसारिक मोह त्याग कर संयम का पथ अंगीकार कर लिया है. मुमुक्षु स्वीटी और सुरभि की साध्वी की दीक्षा ली है.

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दीक्षा के उपलक्ष्य में नागौर में करीब पांच दिन तक धार्मिक आयोजन हुए. दोनों बहनों का 9 फरवरी को धूम-धाम से वरघोड़ा निकाला गया. इसके बाद 10 को दादावाड़ी में उन्होंने सांसारिक मोह का त्याग कर संयम का पथ अपना लिया. माता सरला देवी और पिता मनोज कुमार खजांची की बड़ी बेटी स्वीटी ग्रेजुएट हैं. जबकि सुरभि पोस्ट ग्रेजुएट हैं. उन्होंने कंप्यूटर की पढ़ाई भी की है.

जैन समाज के खरतरगच्छ महासंघ के प्रवक्ता भास्कर खजांची ने बताया कि सुरभि को आठ साल पहले वैराग्य की प्रेरणा मिली. उन दिनों साध्वी सुरंजना श्रीजी के चातुर्मास प्रवचन में दोनों बहनें लगातार आई तो भौतिक जीवन के प्रति उनका मोह खत्म हो गया था. चार साल से ये दोनों बहनें धार्मिक अध्ययन के लिए सुरंजना श्रीजी के साथ राह रही हैं. उनका कहना है कि करीब 100 साल पहले खजांची परिवार से एक युवती साध्वी बनी थी.

अब खजांची परिवार की ही दो बहनों ने एक साथ दीक्षा लेकर एक नया इतिहास रचा है. साध्वी बनने से पहले मुमुक्षु सुरभि ने कहा कि आज युवा डॉक्टर, इंजीनियर या सरकारी अधिकारी बनना चाहते हैं. लेकिन उन्होंने भौतिक जीवन के बजाय आत्म कल्याण का मार्ग चुना. इसमें उनके माता पिता का भी पूरा सहयोग मिला. जिस तरह शादी के लिए माता पिता लड़की के लिए दूल्हा तय करते हैं. उसी तरह इन दोनों बहनों के लिए गुरु का चयन माता-पिता ने ही किया. मुमुक्षु स्वीटी और सुरभि ने साध्वी सुरंजना श्रीजी के सानिध्य में दीक्षा ली.

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Intro:नागौर. नागौर की धरती त्याग और बलिदान के साथ आध्यात्म और धर्म के लिए भी जानी जाती है। इसी कड़ी में अब एक नया पाठ जुड़ गया है। नागौर के खजांची परिवार की दो सगी बहनों ने सांसारिक जीवन त्याग कर संयम का पथ अंगीकार कर लिया है। मुमुक्षु स्वीटी और सुरभि की दीक्षा के उपलक्ष्य में नागौर में करीब पांच दिन तक धार्मिक आयोजन हुए। दोनों बहनों का 9 फरवरी को धूम-धाम से वरघोड़ा निकाला गया। इसके बाद 10 को दादावाड़ी में उन्होंने सांसारिक जीवन का त्याग कर संयम का पथ अपना लिया।


Body:माता सरला देवी और पिता मनोज कुमार खजांची की बड़ी बेटी स्वीटी ग्रेजुएट हैं। जबकि सुरभि पोस्ट ग्रेजुएट हैं। उन्होंने कंप्यूटर की पढ़ाई भी की है। जैन समाज के खरतरगच्छ महासंघ के प्रवक्ता भास्कर खजांची ने बताया कि सुरभि को आठ साल पहले वैराग्य की प्रेरणा मिली। उन दिनों साध्वी सुरंजना श्रीजी के चातुर्मास प्रवचन में दोनों बहनें लगातार आई तो भौतिक जीवन के प्रति उनका मोह खत्म हो गया था। चार साल से ये दोनों बहनें धार्मिक अध्ययन के लिए सुरंजना श्रीजी के साथ राह रही हैं। उनका कहना है कि करीब 100 साल पहले खजांची परिवार से एक युवती साध्वी बनी थी। अब खजांची परिवार की ही दो बहनों ने एक साथ दीक्षा लेकर एक नया इतिहास रचा है। साध्वी बनने से पहले मुमुक्षु सुरभि ने कहा कि आज युवा डॉक्टर, इंजीनियर या सरकारी अधिकारी बनना चाहते हैं। लेकिन उन्होंने भौतिक जीवन के बजाय आत्म कल्याण का मार्ग चुना। इसमें उनके माता पिता का भी पूरा सहयोग मिला। जिस तरह शादी के लिए माता पिता लड़की के लिए दूल्हा तय करते हैं। उसी तरह इन दोनों बहनों के लिए गुरु का चयन माता पिता ने ही किया। मुमुक्षु स्वीटी और सुरभि ने साध्वी सुरंजना श्रीजी के सानिध्य में दीक्षा ली।


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