कोटा. राजस्थान सरकार ने किसानों की गिरदावरी रिपोर्ट को 100 फीसदी सटीक करवाने के लिए मोबाइल एप्लीकेशन बनाई थी, जिसके जरिए किसानों को ही अपनी फसल की गिरदावरी करनी थी, लेकिन यह प्रयोग शुरुआती तौर पर असफल ही नजर आ रहा है. कोटा जिले की बात की जाए तो एक प्रतिशत से भी कम किसान मोबाइल एप के जरिए अपनी गिरदावरी कर पाए. यह आंकड़ा महज 0.25 फीसदी है, जबकि शेष सभी किसानों की गिरदावरी सरकारी कर्मचारियों ने ही की है.
कोटा के लाडपुरा तहसीलदार निवासी भरत यादव ने बताया कि जिले की सभी 6 तहसील में 5,52,256 किसानों को अपने गिरदावरी करनी थी, इसमें से महज 1415 किसानों ने ही अपनी गिरदावरी स्वयं की है, शेष 5,50,841 किसानों की गिरदावरी राजस्व विभाग के कर्मचारी पटवारी ने की है. इस मामले में मोबाइल एप की जानकारी नहीं होना और अन्य तकनीकी कारणों के चलते किसान पीछे रह गए हैं.
लाडपुरा में एक भी किसान नहीं कर पाया गिरदावरी : जिले के आंकड़े पर नजर डालें तो पता चला कि लाडपुरा तहसील में एक भी किसान एप के जरिए गिरदावरी नहीं कर पाया. जहां 1,06,593 खसरों की गिरदावरी होनी थी. सभी गिरदावरी पटवारी ने राज खसरा गिरदावरी एप के जरिए की है. वहीं, किसान एप के जरिए होने वाली गिरदावरी काफी कम है. सबसे ज्यादा रामगंजमंडी में 612, उसके बाद पीपल्दा में 292, कनवास में 199, दीगोद में 159 और सांगोद में 153 किसानों ने अपनी गिरदावरी स्वयं मोबाइल एप से की है. शेष की गिरदावरी पटवारी ने या तो खेत में जाकर की है या फिर डेटा कलेक्शन करके की है. सरकार ने दो तरह की एप उनके लिए बना रखी थी. इनमें किसानों के लिए किसान गिरदावरी और राजस्व अधिकारियों के लिए राज खसरा गिरदावरी है. किसानों को भी एप्लीकेशन की कई खामियों और रोज हो रहे बदलाव के चलते समस्या का सामना करना पड़ा और वह भी ठीक से गिरदावरी नहीं कर पाए.
किसानों को ये आती है परेशानी : गिरदावरी एक्यूरेट नहीं होने की शिकायत कई बार किसान करते हैं. उनका यह भी कहना होता है कि जब वह अपनी जमीन पर बोई गई फसल को समर्थन मूल्य पर बेचते हैं, तब गिरदावरी मांगी जाती है. कई बार ऐसा होता है कि उन्होंने सोयाबीन की उपज की होती है, जबकि उसमें कोई दूसरी फसल इंद्राज (दर्ज होना) हो जाती है. इसके चलते समर्थन मूल्य का रजिस्ट्रेशन और टोकन कटवाने में काफी समस्या आती है. इसी तरह से फसल खराब हो जाने पर मुआवजा मिलने में भी समस्या आती है, क्योंकि उसका इंश्योरेंस किसी और फसल का हो जाता है. ऐसे में मुआवजा मिलने में भी काफी दिक्कत आती है. तहसीलदार भरत यादव का कहना है कि किसानों को आगे इस एप से गिरदावरी करने के बाद शिकायत नहीं रहेगी कि पटवारी ने अलग फसल गिरदावरी में दर्ज कर दी, उसे संतुष्टि भी रहेगी कि गिरदावरी सही हुई है.
अभी शुरुआत थी, लगातार कर रहे हैं प्रचार : लाडपुरा तहसीलदार भरत यादव का कहना है कि ये शुरुआत है, अभी किसान ऑनलाइन और मोबाइल एप के बारे में थोड़े कम जागरूक हैं और कम समझते हैं. इस बार जो गिरदावरी हुई है, बहुत कम किसानों का रिस्पॉन्स आया है, लेकिन प्रचार प्रसार चल रहा है. हमारा स्टाफ भी किसानों को जागरूक कर रहा है, टेक्नोलॉजी की जानकारी दे रहे हैं. अब आगे जो गिरदावरी होगी, उसमें बढ़ोतरी होगी. इस बार 1415 कास्तकारों ने ही अपनी गिरदावरी स्वयं की है, हम जागरूक कर रहे हैं. यह आंकड़े बढ़ने की संभावना है.
पटवारी को भी एप में आई दिक्कत : पटवारी रोहित कुमार वर्मा का कहना है कि उन्हें भी राज खसरा एप के जरिए गिरदावरी करने में समस्या का सामना करना पड़ा था. लगातार एप्लीकेशन में कई बदलाव किए गए हैं. इसमें पटवारी की एप से जन आधार, फोटो और लोकेशन की बाध्यता को हटाया गया, क्योंकि जब फील्ड में पटवारी एप के जरिए गिरदावरी करने पहुंचे, तब मोबाइल नेटवर्क की भी समस्या आई. दूसरी तरफ कई एरर भी इस समय सामने आ रहे थे. इसके चलते ही उन्हें समस्या हुई थी. दूसरी तरफ अधिकांश किसानों के तो खसरे की लोकेशन भी मोबाइल ने नहीं पकड़ी. एप को किस तरह से चलाना है, यह भी उनके समझ में नहीं आया.
लोकेशन बदलकर दूसरी जगह पर गिरदावरी करने जाना : अधिकांश किसानों की जमीन कई टुकड़ों में है और उनके खसरा नंबर भी अलग-अलग हैं. मोबाइल एप पर भी ये अलग-अलग आ रहे हैं. ऐसे में तुरंत लोकेशन बदलकर दूसरी जगह जाना भी संभव नहीं था. पटवारी रोहित वर्मा का कहना है कि किसान चाहते हैं कि उनके सभी खसरे एक साथ ही दर्ज हो जाएं. किसान तकनीक के कम जानकार हैं, दूसरी तरफ उन्हें समझने में भी समय लगता है. ऐसे में गिरदावरी के दौरान क्या-क्या जानकारी डालनी है, यह भी उनके लिए समस्या रही.
सरकार तक भी नहीं पहुंचता सटीक आंकड़ा : एक पटवारी को हजारों फसलों की गिरदावरी करनी होती है. ऐसे में इसके लिए महज कुछ दिनों का ही समय मिलता है. कई पटवारी हल्का में अतिरिक्त चार्ज भी होता है. दूसरी तरफ पटवारी को अन्य काम में भी व्यस्त रहना पड़ता है. इसके चलते इस गिरदावरी में भी गड़बड़झाला हो जाता है. अधिकांश में यह संभावना रहती है कि गांव में जाकर किसी एक व्यक्ति से पूछ लिया जाता है कि किस किसान ने कौन सी उपज बोई है. इसके चलते ही कई किसानों की उपज गलत दर्ज हो जाती है और सरकार तक दलहन, तिलहन और अनाज की कौनसी फसल कितनी उत्पादित की जा रही है, इसका सटीक का आंकड़ा भी नहीं पहुंचता है.