कोटा. संभाग के चारों जिलों कोटा, बारां, बूंदी व झालावाड़ में जहां 11 लाख 67 हजार हेक्टेयर में खरीफ की फसल की बुवाई हुई थी. जिसमें से 8 लाख हेक्टेयर फसल अतिवृष्टि की भेंट चढ़ गई है. किसानों को कहना है कि उनके पास अब अगली फसल के लिए भी धनराशि नहीं बची है. ऐसे में उसका भी संकट पैदा हो गया है.
पिछले दिनों कोटा दौरे पर आए मंत्री शांति धारीवाल में मान चुके हैं कि किसानों की फसलें लगभग खराब हो चुकी है. इसको लेकर सरकार सर्वे करा रही है. जिसके बाद किसानों को मुआवजा भी दिया जाएगा. साथ ही उन्होंने यह भी माना है कि किसानों के घर भी इस तेज बारिश में बह गए. कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक रामावतार शर्मा का कहना है कि हाड़ौती में सर्वाधिक जहां सोयाबीन की फसल होती है. ऐसे में यहां के किसानों को सबसे ज्यादा नुकसान का सामना करना पड़ा रहा है.
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नहीं बची दलहन की फसलें
हाड़ौती में 2 लाख 7 हजार हेक्टेयर में उड़द की फसलें बोई गई थी. जिसमें से 80 से 90 फ़ीसदी खराब हो चुकी हैं. इसके साथ ही 173819 हेक्टेयर उड़द की फसल खेतों में पानी भर जाने के चलते गल चुकी है. इतना ही नुकसान मूंग की फसल में भी हुआ है. हालांकि हाड़ौती में मूंग की फसल कम ही होती है. मात्र 321 फैक्टर में मूंग की फसल किसानों ने बोई थी. जिसमें से 231 हेक्टेयर फसल खराब हो गई है.
सितंबर माह में भी लगातार बारिश का क्रम जारी रहा. इससे किसानों को ज्यादा नुकसान हुआ है. धूप नहीं निकलने के चलते उनके खेतों में भरा पानी नहीं सुख पाया. चंबल नदी में कोटा बैराज से पानी छोड़े जाने के चलते कोटा जिले की सीमा और बूंदी जिले की सीमा में जहां-जहां भी यह नदी गुजर रही है, वहां किनारे से डेढ़ किलोमीटर तक के खेतों में चम्बल नदी का पानी आ गया. यह तेज बहाव किसानों की फसलों को ही बहा कर ले गया है. इन क्षेत्रों में 80 से 90 फीसदी फसलें तबाह हो गई है. ऐसे में वहां पर भी 10 से 20 फीसदी ही उत्पादन की संभावना है.
अगली फसल के लिए भी संकट
दूसरी तरफ किसानों का कहना है कि उन्होंने अपनी फसल को उगाने के लिए जमा पूंजी में से खाद, बीज, ट्रैक्टर हकाई से लेकर और फसलों को ही बीमारियों से बचाने के लिए दवाई छिड़कवाने का काम भी कर दिया था. अब बारिश ज्यादा होने से सब कुछ बह गया है. हमारे हाथ में कुछ भी नहीं है. अगर सरकार हमें मुआवजा नहीं देती है तो हम अगली फसल भी नहीं कर सकते हैं.
बच्चों के भूखे मरने की नौबत
अंता एरिया के एक सोयाबीन पूरी तरह से गल चुकी है, इसका एक भी दाना नहीं बचा है. अब बच्चों के भूखे मरने की नौबत आ गई है. सरकार से उम्मीद है कि कुछ मुआवजा मिल जाए. किसानों ने कहा कि हमारे पूरे जीवन में इतनी बारिश हमने कभी नहीं देखी है, जो भी जमा पूंजी थी. वह हमने दवाई छिड़कने और कचरा मिटाने में लगा दिए. सरकार इस ओर ध्यान नहीं दे रही है. अब तो हमारे खाने के भी लाले पड़ रहे हैं.
जेब की राशि चली गई, घर और जेवर गिरवी रखना पड़ेगा
सांगोद क्षेत्र के किसान का कहना है कि उन्होंने 14 हजार बीघा खेत को मुनाफे पर लेकर धान की फसल बोई थी. जिसमें 15 हजार बीघा का अलग खर्चा आया है, उसमें कुछ नहीं बच रहा है. खेतों में पानी भरा होने से अब नहीं लग रहा है कि धान की फसल में कुछ उपज आएगी. अब किसानों की महंगे दाम पर ऋण लेने और घर के गहनें गिरवी रखने की नौबत आ गई है.
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कुल बोई गई और खराब हुई फसलों का आकड़ा कुछ इस प्रकार है-
फसल | रकबा | खराब फसल | कितने फीसदी खराब हुई फसल |
सोयाबीन | 687000 | 546419 | 70 से 90 फीसदी |
उड़द | 260000 | 173819 | 80 से 90 फीसदी |
मक्का | 97813 | 64760 | 30 से 60 फीसदी |
धान | 73045 | 21011 | 20 से 25 फीसदी |
तिल | 4058 | 3195 | 70 से 80 फीसदी |
ज्वार | 1396 | 1015 | 20 से 35 फीसदी |
मूंग | 321 | 231 | 80 से 90 फीसदी |
हमेशा राहत देने वाली बारिश इस बार आफत बनकर आई है. ऐसी स्थिति में किसान सरकार से मुआवजे की आस लगाए बैठे हैं. अब देखना होगा कि गहलोत सरकार धरती पुत्रों को कितनी राहत दे पाती है.