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स्पेशल: लॉकडाउन ने कमजोरों की तोड़ी कमर, करौली में नहीं पहुंच रही सरकारी सहायता

लॉकडाउन के कारण सारे काम काम धंधे बंद हैं. ऐसे में गरीब और श्रमिक वर्ग के सामने रोटी का संकट पैदा हो गया है. वहीं करौली में जरूरतमंदों तक सरकारी सहायता भी नहीं पहुंच रही है.

Rajasthan news, करौली न्यूज
श्रमिकों के सामने भूखे मरने की नौबत
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Published : May 14, 2020, 11:23 AM IST

करौली. लॉकडाउन के कारण सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग और रोज कमाकर खाने वाले परेशान हैं. सारे कारखाने और काम धंधे बंद होने से उनसे रोजगार छिन गया है. ऐसे में उनके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है. सरकार सहायता पहुंचाने का दावा कर रही है, लेकिन जिले में जब ईटीवी भारत की टीम ने जायजा लिया तो हालात कुछ और नजर आए.

श्रमिकों के सामने भूखे मरने की नौबत

कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में लॉकडाउन है. लॉकडाउन के कारण रोज कमाकर पेट भरने वाले दिहाड़ी मजदूर, जरूरतमंद के सामने रोटी का संकट पैदा हो गया है. जिससे इनके भूखे सोने की नौबत आ गई है. वहीं सरकार और जिला प्रशासन इन जरूरतमंदों तक राशन पहुंचाने का दावा कर रही है, लेकिन ऐसे कई जरूरमंद और गरीब हैं, जिनके पास सरकार की सहायता नहीं पहुंची है. ईटीवी भारत की टीम ने करौली शहर के जरूरतमंदों के घर जाकर हालातों का जायजा लिया, जिसमें सरकार के दावों के पोल खुलते नजर आए.

शहर के चटीकना मोहल्ला निवासी दीनदयाल के घर जब ईटीवी भारत की टीम पहुंची तो नजारा कुछ और ही दिखा. एक बच्चा और एक आखों से लाचार महिला एक थाली में खाना खा रहे थे. इन सभी से राशन के बारे पूछा गया तो महिला ने जवाब दिया कि भामाशाह ने आटे का कट्टा दिया था. उससे गुजारा कर रहे हैं. वहीं टिकिया भल्ले का ठेला लगाकर रोज कमाकर खाने वाले दीनदयाल ने कहा कि साहब हम रोज कुआं खोदते हैं और रोज पानी पीते हैं, लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से एक पैसे का भी धंधा नहीं हुआ है. सरकार की तरफ से एक रुपये की मदद नहीं मिली है. दीनदयाल का कहना है कि तीन महीने निकलने को आए हैं. घर में अन्न का एक भी दाना नहीं है. गांव के पास के ही कुछ भामाशाहों ने थोड़ी मदद की वरना भूखे मरने की नौबत आ जाती.

लॉकडाउन ने कमर ही तोड़ दी

दीनदयाल ने बताया कि उसके घर में 8-10 लोग हैं और एक अंधी बेटी है. क्या करें प्रशासन की तरफ से अभी तक कोई भी राशन सामग्री या अन्य मदद नहीं मिली है. राशन से जरूर गेहूं मिले हैं, इसके अलावा अभी तक कुछ नहीं मिला. दूसरी ओर लॉकडाउन ने तो कमर ही तोड़ डाली है.

यह भी पढ़ें. Special : गरीब, बेसहारा और जरूरतमंदों के लिए वरदान साबित हो रही जयपुर की जनता रसोई

कई ग्रामीणों का भी कहना है कि शासन और प्रशासन की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली है. स्थिति यह हो गई है कि भूखे पेट ही सोना पड़ रहा है लेकिन हमारी सुनने वाला कोई नहीं है. शहर के जरूरतमंदों की समस्या से कलेक्टर को अवगत करवाया गया. जिस पर जिला कलेक्टर डॉ. मोहन लाल यादव ने बताया कि जांच पड़ताल कराकर जरूरतमंदों को राशन सामग्री पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी. वैसे प्रशासन द्वारा जरूरतमंदों को प्रतिदिन राशन पहुंचाने की व्यवस्था की जा रही है.

करौली. लॉकडाउन के कारण सबसे ज्यादा मजदूर वर्ग और रोज कमाकर खाने वाले परेशान हैं. सारे कारखाने और काम धंधे बंद होने से उनसे रोजगार छिन गया है. ऐसे में उनके सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है. सरकार सहायता पहुंचाने का दावा कर रही है, लेकिन जिले में जब ईटीवी भारत की टीम ने जायजा लिया तो हालात कुछ और नजर आए.

श्रमिकों के सामने भूखे मरने की नौबत

कोरोना वायरस के कारण पूरे देश में लॉकडाउन है. लॉकडाउन के कारण रोज कमाकर पेट भरने वाले दिहाड़ी मजदूर, जरूरतमंद के सामने रोटी का संकट पैदा हो गया है. जिससे इनके भूखे सोने की नौबत आ गई है. वहीं सरकार और जिला प्रशासन इन जरूरतमंदों तक राशन पहुंचाने का दावा कर रही है, लेकिन ऐसे कई जरूरमंद और गरीब हैं, जिनके पास सरकार की सहायता नहीं पहुंची है. ईटीवी भारत की टीम ने करौली शहर के जरूरतमंदों के घर जाकर हालातों का जायजा लिया, जिसमें सरकार के दावों के पोल खुलते नजर आए.

शहर के चटीकना मोहल्ला निवासी दीनदयाल के घर जब ईटीवी भारत की टीम पहुंची तो नजारा कुछ और ही दिखा. एक बच्चा और एक आखों से लाचार महिला एक थाली में खाना खा रहे थे. इन सभी से राशन के बारे पूछा गया तो महिला ने जवाब दिया कि भामाशाह ने आटे का कट्टा दिया था. उससे गुजारा कर रहे हैं. वहीं टिकिया भल्ले का ठेला लगाकर रोज कमाकर खाने वाले दीनदयाल ने कहा कि साहब हम रोज कुआं खोदते हैं और रोज पानी पीते हैं, लेकिन जब से लॉकडाउन हुआ है, तब से एक पैसे का भी धंधा नहीं हुआ है. सरकार की तरफ से एक रुपये की मदद नहीं मिली है. दीनदयाल का कहना है कि तीन महीने निकलने को आए हैं. घर में अन्न का एक भी दाना नहीं है. गांव के पास के ही कुछ भामाशाहों ने थोड़ी मदद की वरना भूखे मरने की नौबत आ जाती.

लॉकडाउन ने कमर ही तोड़ दी

दीनदयाल ने बताया कि उसके घर में 8-10 लोग हैं और एक अंधी बेटी है. क्या करें प्रशासन की तरफ से अभी तक कोई भी राशन सामग्री या अन्य मदद नहीं मिली है. राशन से जरूर गेहूं मिले हैं, इसके अलावा अभी तक कुछ नहीं मिला. दूसरी ओर लॉकडाउन ने तो कमर ही तोड़ डाली है.

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कई ग्रामीणों का भी कहना है कि शासन और प्रशासन की तरफ से कोई सहायता नहीं मिली है. स्थिति यह हो गई है कि भूखे पेट ही सोना पड़ रहा है लेकिन हमारी सुनने वाला कोई नहीं है. शहर के जरूरतमंदों की समस्या से कलेक्टर को अवगत करवाया गया. जिस पर जिला कलेक्टर डॉ. मोहन लाल यादव ने बताया कि जांच पड़ताल कराकर जरूरतमंदों को राशन सामग्री पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी. वैसे प्रशासन द्वारा जरूरतमंदों को प्रतिदिन राशन पहुंचाने की व्यवस्था की जा रही है.

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