जोधपुर. राइट टू हेल्थ बिल का निजी अस्पताल विरोध कर रहे हैं. वे बिल में बदलाव चाहते हैं. डॉक्टरों के विरोध के चलते तीन दिनों से प्रदेश के निजी अस्पतालों में सरकारी योजनाओं का काम ठप पड़ा है. कमोबेश यही हाल जोधपुर शहर के हैं. निजी अस्पतालों के विरोध के चलते सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भीड़ बढ़ गई है.
शहर में निजी अस्पतालों ने सरकारी कर्मचारियेां के निशुल्क उपचार की योजना आरजीएचएस व आम आदमी के लिए बनाई योजना चिरंजीवी का काम बंद कर दिया है. जिसके चलते मरीज परेशान हैं. सरकारी अस्पतालों में भीड़ बढ़ गई है. निजी अस्पतालों में उपचार के लिए उन्हें ज्यादा शुल्क देना पड़ रहा है. मरीजों के परिजनों का कहना है कि सरकार को जल्द यह गतिरोध तोड़ना चाहिए. क्योंकि बिना योजना के निजी अस्पताल में उपचार बहुत महंगा पड़ रहा है, जो आदमी के वश में नहीं है.
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पहले निशुल्क उपचार, अब देना पड़ रहा शुल्क: ईटीवी भारत ने शहर के निजी अस्पतालों में जाकर मरीजों के परिजनों से बात की, तो पता चला कि तीन दिनों से विरोध के कारण बहिष्कार के चलते निशुल्क उपचार के मरीजों को छुट्टियां दे दी गई. कुछ अस्पताल मरीज भर्ती नहीं कर रहे हैं. कुछ भर्ती कर रहे हैं, तो उसके लिए ज्यादा शुल्क वसूल रहे हैं. अपने पिता उपचार करवा रहे कुनाल ने बताया कि पहले आरजीएचएस में कैशलेस उपचार मिल रहा था. लेकिन अब हमें इसके लिए चार्जेज देने पड़ रहे हैं. अस्पताल कह रहे हैं कि कैशलेस करवाना है, तो पांच दिन बाद आओ. हमारे लिए पांच दिन कितने भारी हैं. सरकार को जल्द इसका समाधान करना चाहिए.
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चिंरजीवी के भी यही हालात: मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना सरकार की महत्वकांक्षी योजना है. लेकिन यह योजना भी राइट टू हेल्थ बिल के चलते बहिष्कार की भेंट चढ़ गई है. सरकारी कर्मचारियों के अलावा सभी लोग इसके लाभान्वित हैं. लेकिन अब तीन दिन से इस योजना के लाभान्वितों को निजी अस्पताल में निशुल्क उपचार नहीं मिल रहा है. वे सरकारी अस्पताल जा रहे हैं. जहां पहले से ही भीड़ है. इधर स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने इस पर चुप्पी साध रखी है. सूत्रों ने बताया कि वे सरकार के निर्देशों का इंतजार कर रहे हैं. जिससे कोई कार्रवाई की जा सके.
आपातकालीन स्थिति को लेकर है विवाद: राइट टू हेल्थ बिल में सरकार सभी निजी अस्पतालों को हर हाल में इमरजेंसी में आए मरीज का निशुल्क उपचार करने के लिए बाध्य करना चाहती है. वहीं डॉक्टरों का कहना है कि सरकार इमरजेंसी की स्थिति सपष्ट करे, अन्यथा हर मरीज निजी अस्पताल में आकर हंगामा करेगा. इसको लेकर सरकार के साथ वार्ता हुई. जिसके बाद प्रवर समिति बनी, लेकिन उसमें कोई रास्ता नहीं निकला. जिसके बाद निजी अस्पतालों ने सरकारी योजनाओं का बहिष्कार करना शुरू कर दिया.