भोपालगढ़ (जोधपुर). हथलेवे की मेहंदी अभी फीकी भी नहीं पड़ी थी, माथे के सिंदूर की लालिमा सूखने से पहले ही संतोष देवी का सिंदूर उजड़ गया. सुनकर सन्न रह गईं कि अब उनका पति लौटकर नहीं आएगा. उन्होंने पति का आखिरी खत पता नहीं कितनी बार खोलकर देखा और सीने से चिपका कर रोने लग जातीं. शहीद कालूराम जाखड़ ने जिस सुबह अपनी मां को खत भेजा उसी दिन भारत मां का वह सपूत शहीद हो गया. वीरांगना संतोष अब गांव की बेटियों को अपना मानकर बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने में जुटी हैं.
सन 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान सिपाही कालूराम जाखड़ अपनी रेजिमेन्ट -17 जाट के साथ जम्मू-कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में पिंंपल पहाड़ी पर तैनात थे. रेजिमेन्ट का लक्ष्य था पिंपल पहाड़ी पर पुनः अधिकार करना जहां पाकिस्तान के भाड़े के सैनिकों ने बंकर बना लिए थे वहां पुनः कब्जा कर राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए वीर भूमि भोपालगढ़ के खेड़ी चारणा गांव का ये वीर आगे बढ़ा. भीम-सी जांघ फटकारी और अपनी मोर्टार संभाली, अनगिनत गोले बरसाए. देखते ही देखते पिंपल पहाड़ी पर 2 बंकर नष्ट कर दिए और कई पाक सैनिकों को मार गिराया.
अभी एक बंकर और शेष था, जवानों की टुकड़ी में विचार-विमर्श हुआ कि दुश्मन को चकमा दिया जाए. जवानों की एक टुकड़ी ने पाक की दिशा से पाक सैनिकों पर गोले बरसाएं, दुश्मन कुछ समझ पाते, उससे पहले भारत की तरफ से भी गोले आने लगे, तीसरे बंकर में छिपे बैठे पाक सैनिकों में कोहराम मच गया. अपनी जान जाती देख दुश्मनों ने अपने हथियार संभाल लिए और जवाब में हमला बोल दिया, लेकिन पक्के इरादों वाला वह वीर कहां रूकने वाला था. गोले पे गोले दागते रहा.
इस बीच दुश्मन का एक गोला आया और वीर की जांघ पर लग गया, वीर की मुट्ठियां भींच गई और भारत माता की जय बोलते हुए राकेट दागने शुरू कर दिए, जिसके बाद तीसरे बंकर से भागों-भागों की आवाजें आने लगी और 17 जाट रेजिमेन्ट ने पिंप्पल पहाड़ी पर पुनः अधिकार कर लिया.
इसी बीच 4 जुलाई 1999 ऑपरेशन विजय के दौरान अपने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन करते हुए इस रणबांकुरे ने अपना सर्वोत्तम बलिदान दिया. उनकी सैनिक कुशलता, साहस, कर्तव्यनिष्ठा और देशभक्ति के लिए भारत सरकार ने उन्हें 'बैज ऑफ सेक्रीफाईस (मरणोपरांत )से सम्मानित किया.
शहीद कालूराम जाखड़ की स्मृति में गांव से जोधपुर जाने वाली मुख्य सड़क पर शहीद स्मारक बना हुआ है और गांव के मुख्य चौक में मूर्ति स्थल बना हुआ है जहां मूर्ति का अनावरण भव्य समारोह के बीच तत्कालीन मुख्यमंत्री की ओर से 11 नवंबर 2002 को किया गया. इनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए स्थानीय विद्यालय का नामकरण भी शहीद कालूराम जाखड़ रा.उ.मा. विद्यालय, खेड़ी चारणा किया गया है.
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जिस दिन शहीद हुए उसी दिन लिखा मां के नाम खत...
कालूराम जाखड़ जिस दिन शहीद हुए थे, उसी दिन सुबह उन्होंने अपनी मां को एक चिट्टी भेजी थी. उन्होंने लिखा था कि मां तुम मेरी चिंता मत करना. तेरे बेटे के नाम का शिलालेख गांव में लगेगा और तेरे बेटे को एक दिन पूरी दुनिया जानेगी कि कैसे वह दुश्मनों से लड़ा था. कालूराम का यह पत्र उनके जीवन का आखरी खत बनकर रह गया.
क्या कहती हैं शहीद की मां...
मेरा बेटे कालूराम ने भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राण त्याग दिए. हर मां के बेटे देश की सेवा के लिए आगे आकर भारत माता की रक्षा करें. मैं भाग्यशाली हूं कि मेरा बेटा देश की रक्षा में काम आया.
शहीदों से युवा लें प्रेरणा...
खेड़ी चारणा गांव के कारगिल विजय में शहीद कालूराम जाखड़ के प्रेरणा स्रोतों से युवा आगे बढ़े और देश की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहें.