जयपुर: पारिवारिक न्यायालय क्रम-1 महानगर प्रथम ने पारिवारिक विवाद से जुड़े एक मामले में कहा है कि पत्नी का भरण-पोषण करना पति का विधिक व नैतिक दायित्व है. न्यायालय ने अप्रार्थी पति को निर्देश दिया है कि वह प्रार्थिया पत्नी को हर महीने भरण-पोषण के 15 हजार रुपए भुगतान करे.
न्यायालय ने कहा कि अप्रार्थी पति की ओर से अपनी आय के संबंध में दिए जवाब व स्टेटमेंट में गंभीर विरोधाभास है. उसने आय के संबंध में तथ्यों को छिपाया है. अप्रार्थी का यह कहना कि वह अपने पिता के साथ रंगाई काम से तीन से चार हजार रुपए कमाता है, जो न्यायोचित प्रतीत नहीं होता. मामले के तथ्यों व परिस्थितियों को देखते हुए अप्रार्थी की आय 40 हजार रुपए माना जाना सही है. पीठासीन अधिकारी विरेन्द्र कुमार जसूजा ने यह आदेश पत्नी के प्रार्थना पत्र पर दिए.
मामले के अनुसार प्रार्थिया का निकाह 14 दिसंबर, 2012 को अप्रार्थी के साथ मुस्लिम रीति रिवाज से हुआ था, लेकिन शादी के बाद से ही ससुराल पक्ष का व्यवहार प्रार्थिया से अच्छा नहीं रहा और वे उसे दहेज के लिए शारीरिक व मानसिक तौर पर प्रताड़ित करने लगे. उन्होंने उससे 3 लाख रुपए नगद व एक कार की मांग की. मांग पूरी नहीं होने पर उसे प्रताड़ित कर घर से निकाल दिया. प्रार्थिया बेरोजगार है और पति विदेश में नगीनों का काम कर 80 हजार रुपए कमाता है. ऐसे में उसे भरण पोषण भत्ता दिलाया जाए.