झुंझुनू. जिले के नवलगढ़ उपखण्ड के अरावली पर्वतश्रंखला में स्थित है तीर्थराज लोहर्गल धाम. लोहार्गल को 'राजस्थान का हरिद्वार' कहा जाता है. क्योंकि हरिद्वार की तरह पूरे सावन भर यहां कावडियों का मेला लगा रहता है.
कावड़िए यहां के गऊ मुख से जल भरकर लेकर जाते हैं और सोमवार को भगवान शिव का इस जल से अभिषेक करते हैं. माना जाता है कि यहां का जल भी गंगा जल की भांति पवित्र और निर्मल है. हर साल सावन में यहां प्रदेश ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालु भी कावड़ लेने आते हैं. चारों ओर हरियाली पहाड़ियों से घिरा होने की वजह से यहां का दृश्य भी काफी मनोरंजक है. कावड़िए सूर्य कुण्ड में स्नान करने के पश्चात गऊ मुख के जल से कावड़ का पात्र भरते हैं. इसके बाद यहां के करीब 56 मंदिरों में दर्शन करते हुए गंतव्यों की ओर प्रस्थान करते हैं.
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प्राचीन मान्यता के अनुसार महाभारत का युद्ध जीतने के बाद जब पाण्डवों को सगोत्र भाइयों की हत्या का दंश लगा तो यहां आकर ही उनके लोहे से बने अस्त्र-शस्त्र गल गए थे. इसीलिए इस जगह को लोहार्गल कहा जाता है. कावड़ को भगवान शिव की एक यात्रा के रूप में माना जाता है. शिवभक्तों का मानना है कि कावड़ को अपने कंधों पर धारण करके और उसके जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से भगवान आशुतोष प्रसन्न होते हैं. इसी के साथ डाक कावड़ भी एक विशेष परंपरा के रूप में मानी जाती है.
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डाक कावड़ की विशेषता होती है कि लोहार्गल से जल भरने के पश्चात यह कावड़ कहीं भी विश्राम नहीं करती है. इस कावड़ के जल से सीधे गंतव्य पर जाकर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है.