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राजस्थान का हरिद्वार कहे जाने वाले "लोहार्गल" में गूंजा हर हर महादेव - लोहार्गल झुंझुनू

झुंझुनू जिले के नवलगढ़ उपखण्ड के अरावली पर्वतश्रंखला में स्थित है तीर्थराज लोहर्गल धाम. लोहार्गल को राजस्थान का हरिद्वार कहा जाता है. क्योंकि हरिद्वार की तरह पूरे सावन यहां कावडिय़ों का मेला लगा रहता है. कावड़िए यहां के गऊ मुख से जल भरकर लेकर जाते हैं और सोमवार को भगवान शिव का इस जल से अभिषेक करते हैं. माना जाता है कि यहां का जल भी गंगा जल की भांति पवित्र और निर्मल है.

Worshiping Shiva echoed in "Lohargal"
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Published : Aug 13, 2019, 2:04 AM IST

झुंझुनू. जिले के नवलगढ़ उपखण्ड के अरावली पर्वतश्रंखला में स्थित है तीर्थराज लोहर्गल धाम. लोहार्गल को 'राजस्थान का हरिद्वार' कहा जाता है. क्योंकि हरिद्वार की तरह पूरे सावन भर यहां कावडियों का मेला लगा रहता है.

"लोहार्गल" में गूंजी शिव की अराधना

कावड़िए यहां के गऊ मुख से जल भरकर लेकर जाते हैं और सोमवार को भगवान शिव का इस जल से अभिषेक करते हैं. माना जाता है कि यहां का जल भी गंगा जल की भांति पवित्र और निर्मल है. हर साल सावन में यहां प्रदेश ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालु भी कावड़ लेने आते हैं. चारों ओर हरियाली पहाड़ियों से घिरा होने की वजह से यहां का दृश्य भी काफी मनोरंजक है. कावड़िए सूर्य कुण्ड में स्नान करने के पश्चात गऊ मुख के जल से कावड़ का पात्र भरते हैं. इसके बाद यहां के करीब 56 मंदिरों में दर्शन करते हुए गंतव्यों की ओर प्रस्थान करते हैं.

पढ़ेंः झालावाड़: 20 किमी तक निकाली गई कावड़ यात्रा, सैकड़ों श्रध्दालुओं ने लिया भाग

प्राचीन मान्यता के अनुसार महाभारत का युद्ध जीतने के बाद जब पाण्डवों को सगोत्र भाइयों की हत्या का दंश लगा तो यहां आकर ही उनके लोहे से बने अस्त्र-शस्त्र गल गए थे. इसीलिए इस जगह को लोहार्गल कहा जाता है. कावड़ को भगवान शिव की एक यात्रा के रूप में माना जाता है. शिवभक्तों का मानना है कि कावड़ को अपने कंधों पर धारण करके और उसके जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से भगवान आशुतोष प्रसन्न होते हैं. इसी के साथ डाक कावड़ भी एक विशेष परंपरा के रूप में मानी जाती है.

पढ़ेंः विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल ने उदयपुर के मेनार से निकली कावड़ यात्रा

डाक कावड़ की विशेषता होती है कि लोहार्गल से जल भरने के पश्चात यह कावड़ कहीं भी विश्राम नहीं करती है. इस‌ कावड़ के जल से सीधे गंतव्य पर जाकर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है.

झुंझुनू. जिले के नवलगढ़ उपखण्ड के अरावली पर्वतश्रंखला में स्थित है तीर्थराज लोहर्गल धाम. लोहार्गल को 'राजस्थान का हरिद्वार' कहा जाता है. क्योंकि हरिद्वार की तरह पूरे सावन भर यहां कावडियों का मेला लगा रहता है.

"लोहार्गल" में गूंजी शिव की अराधना

कावड़िए यहां के गऊ मुख से जल भरकर लेकर जाते हैं और सोमवार को भगवान शिव का इस जल से अभिषेक करते हैं. माना जाता है कि यहां का जल भी गंगा जल की भांति पवित्र और निर्मल है. हर साल सावन में यहां प्रदेश ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालु भी कावड़ लेने आते हैं. चारों ओर हरियाली पहाड़ियों से घिरा होने की वजह से यहां का दृश्य भी काफी मनोरंजक है. कावड़िए सूर्य कुण्ड में स्नान करने के पश्चात गऊ मुख के जल से कावड़ का पात्र भरते हैं. इसके बाद यहां के करीब 56 मंदिरों में दर्शन करते हुए गंतव्यों की ओर प्रस्थान करते हैं.

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प्राचीन मान्यता के अनुसार महाभारत का युद्ध जीतने के बाद जब पाण्डवों को सगोत्र भाइयों की हत्या का दंश लगा तो यहां आकर ही उनके लोहे से बने अस्त्र-शस्त्र गल गए थे. इसीलिए इस जगह को लोहार्गल कहा जाता है. कावड़ को भगवान शिव की एक यात्रा के रूप में माना जाता है. शिवभक्तों का मानना है कि कावड़ को अपने कंधों पर धारण करके और उसके जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से भगवान आशुतोष प्रसन्न होते हैं. इसी के साथ डाक कावड़ भी एक विशेष परंपरा के रूप में मानी जाती है.

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डाक कावड़ की विशेषता होती है कि लोहार्गल से जल भरने के पश्चात यह कावड़ कहीं भी विश्राम नहीं करती है. इस‌ कावड़ के जल से सीधे गंतव्य पर जाकर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है.

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शेखावाटी के हरिद्वार "लोहार्गल" में गूंजे बोल बम-ताड़क बम
नवलगढ़(झुंझुनूं):- अरावली पर्वतश्रंखला की हरियाली वादियों में स्थित है तीर्थराज लोहर्गल धाम। लोहार्गल को राजस्थान का हरिद्वार कहा जाता है। क्योंकि हरिद्वार की तरह पूरे सावन यहां कावडिय़ों का मेला लगा रहता है। कावड़िए यहां के गऊ मुख से जल भरकर लेकर जाते हैं और सोमवार को भगवान शिव का इस जल से अभिषेक करते हैं। माना जाता है कि यहां का जल भी गंगा जल की भांति पवित्र और निर्मल है। हर साल सावन में यहां प्रदेश ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों के श्रद्धालु भी कावड़ लेने आते हैं। चारों ओर हरियाली पहाडिय़ों से घिरा होने की वजह से यहां का दृश्य भी काफी मनोरंजक है। कावड़िए यहां आकर दुकानों से पहले कावड़ लेते हैं, उसके बाद सूर्य कुण्ड में स्नान करने के पश्चात् गऊ मुख के जल से कावड़ का पात्र भरते हैं, इसके बाद यहां के करीब 56 मंदिरों में दर्शन करते हुए गंतव्यों की ओर प्रस्थान करते हैं। इस बार यहां के बाजारों में कावडिय़ों की कुछ विशेष टीशर्ट काफी लोकप्रिय हो रही है। इन टी-शर्ट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का फोटो छपा हुआ है। ये टी-शर्ट युवा वर्ग में काफी लोकप्रिय हो रही है। लोहार्गल के जल से भगवान शिव भी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं।Body:प्राचीन मान्यता के अनुसार महाभारत का युद्ध जीतने के बाद जब पाण्डवों को सगोत्र भाइयों की हत्या का दंश लगा तो यहां आकर ही उनके लोहे से बने अस्त्र-शस्त्र गल गए थे, इसीलिए इस जगह को लोहार्गल कहा जाता है। लोहार्गल को लेकर विभिन्न धार्मिक पुस्तकों में अलग-अलग मत प्रचलित हैं। लोहार्गल को महर्षि परशुराम की तपोस्थली भी माना जाता है। लोहार्गल में मालकेतु पर्वत भी है। इसके साथ ही यहां विभिन्न मान्यताओं के अनुसार काफी साधु-संतों ने तपस्या साधना की है।

कावड़ को भगवान शिव की एक यात्रा के रूप में माना जाता है। शिवभक्तों का मानना है कि कावड़ को अपने कंधों पर धारण करके और उसके जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से भगवान आशुतोष प्रसन्न होते हैं। इसी के साथ डाक कावड़ भी एक विशेष परंपरा के रूप में मानी जाती है। डाक कावड़ की विशेषता होती है कि लोहार्गल से जल भरने के पश्चात यह कावड़ कहीं भी विश्राम नहीं करती है। इस‌ कावड़ के जल से सीधे गंतव्य पर जाकर भगवान भोलेनाथ का अभिषेक किया जाता है। लोहार्गल में गौमुख से निरंतर बहती‌ धारा की वजह से इसे गंगा के जल की तरह पवित्र माना जाता है।

बाइट 01:- अश्विनीदास महाराज, सूर्य व वेंकटेश मंदिर लोहार्गल
बाइट 02:- मुकुल शर्मा, लोहार्गलConclusion:
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