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स्पेशल स्टोरी: ढाई हजार साल पुराने जैन धर्म के सिद्धांतों से ही हारेगा कोरोना

कोरोना महामारी से बचाव के लिए जो तरीके अपनाए जा रहे हैं, जैन धर्म में ढाई हजार वर्ष पहले ही ऐसे सिद्धांत बना दिए गए थे. इसको लेकर जैन आचार्य विजय दर्शन रत्न ने बताया कि 2500 साल पहले जैन धर्म में बताए गए सिद्धांतों के जरिए ही कोरोना से बचाव हो सकता है. देखें स्पेशल रिपोर्ट...

Jain principles for Corona protection, Principles of Jainism
ढाई हजार साल पुराने जैन धर्म के सिद्धांतों से ही हारेगा कोरोना
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Published : Jun 29, 2020, 10:33 PM IST

झुंझुनू. ज्ञान और सभ्यता में विश्व गुरु कहे जाने वाले भारत में करीब ढाई हजार वर्ष पुराने जैन धर्म में जो आचार-विचार और परंपराएं हैं, उनको आज कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है. जैन मुनि जिन सिद्धांतों का पालन करते हैं, वे कोरोना महामारी से बचाव के लिए अब पूरे विश्व में प्रथम साधन बन गए हैं.

ढाई हजार साल पुराने जैन धर्म के सिद्धांतों से ही हारेगा कोरोना

झुंझुनू में अभी चतुर्मास के लिए दादाबाड़ी में विराज रहे जैन धर्म के संत आचार्य विजय दर्शन रत्न से हमने इस बारे में चर्चा की. आचार्य बताते हैं कि जैन धर्म के अनुसार सभी जीवों को जीने का अधिकार है, और जाने अनजाने में भी उनकी हत्या महापाप है. उन्होंने कहा कि कोरोना जैसी भयानक बीमारियां जीवों की हत्या का ही परिणाम हैं.

अभी कोरोना के बारे में तो बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है, लेकिन कौन नहीं जानता कि स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू और न जाने कितनी महामारी पशु और जानवरों से इंसान में आई और इंसान को प्रकृति के आगे झुकने को मजबूर कर दिया. इसलिए जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत अहिंसा और संयम कोरोना से बचाव के लिए अब पूरे विश्व की मजबूरी बनता जा रहा है. गौरतलब है कि कोरोना महामारी के दौरान पशुओं की हत्या लगभग बंद हो गई थी और जहां पर हमेशा मांसाहार का उपयोग किया जाता है, वहां पर भी लोग शाकाहारी बन गए.

अहिंसा से ही जुड़ा हुआ है मुंह पर मास्क लगाना

जैन धर्म में माना जाता है कि वातावरण में करोड़ों वायरस या जीव विद्यमान हैं. मुंह खुला होने से अनजाने में ही मुंह के माध्यम से अंदर चले जाते हैं, जिससे जीव हत्या का पाप लगता है. इसलिए जैन साधु- संत हमेशा मुंह पर मास्क लगाकर ही रखते हैं. जैन धर्म में मुंह ढकने की ये परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है. आज मास्क लगाने की परंपरा कोरोना से बचाव में कारगर साबित हो रही है.

उबला पानी पीना

कोरोना महामारी में बचाव के लिए हमेशा हमेशा उबले या गर्म पानी पीने की सलाह दी जाती है, लेकिन जैन धर्म के साधु-संत हजारों सालों से इसका उपयोग कर रहे हैं. जैन धर्म के साधु-संत अपने सिद्धांत के अनुसार कभी भी कच्चा पानी यानी ठंडा पानी नहीं पीते हैं. वे हमेशा उबालकर ही पानी पीते हैं. वे जब भी विहार करते हैं, तब भी कड़ी प्यास लगने के बावजूद भी साधारण पानी का उपयोग नहीं करते. पानी को उबालकर पीना उनके नियमों में है.

जैन धर्म में भी होती है सोशल डिस्टेंसिंग

कोरोना से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को भी एक हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. इसके लिए दुनिया के तमाम देशों को लॉकडाउन जैसे फैसले लेने पड़े. जैन धर्म में अलगाव का सिद्धांत है. जैन धर्म में ध्‍यान लगाने के लिए अलगाव सिद्धांत का भी पालन किया जाता है. जैन धर्म में योग और ध्‍यान के लिए ऋषि-मुनि भी अलगाव में चले जाते हैं.

जैन मुनि अपने को रखते हैं आइसोलेशन में

सम्‍यक एकांत को सामान्‍य भाषा में आइसोलेशन कहा जाता है. जैन ऋषि और मु‍नि बाकी दुनिया से अलग एकांत में रहते हैं, ताकि कोई भी बुराई या फिर किसी प्रकार का लालच उन्‍हें छू भी न सके. इसी प्रकार से कोरोना के संक्रमण के डर से आजकल आइसोलेशन के नियमों को सारी दुनिया मान रही है. समाज से दूर लोग खुद को आइसोलेशन में रखना पसंद कर रहे हैं.

झुंझुनू. ज्ञान और सभ्यता में विश्व गुरु कहे जाने वाले भारत में करीब ढाई हजार वर्ष पुराने जैन धर्म में जो आचार-विचार और परंपराएं हैं, उनको आज कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को अपनाने के लिए मजबूर कर दिया है. जैन मुनि जिन सिद्धांतों का पालन करते हैं, वे कोरोना महामारी से बचाव के लिए अब पूरे विश्व में प्रथम साधन बन गए हैं.

ढाई हजार साल पुराने जैन धर्म के सिद्धांतों से ही हारेगा कोरोना

झुंझुनू में अभी चतुर्मास के लिए दादाबाड़ी में विराज रहे जैन धर्म के संत आचार्य विजय दर्शन रत्न से हमने इस बारे में चर्चा की. आचार्य बताते हैं कि जैन धर्म के अनुसार सभी जीवों को जीने का अधिकार है, और जाने अनजाने में भी उनकी हत्या महापाप है. उन्होंने कहा कि कोरोना जैसी भयानक बीमारियां जीवों की हत्या का ही परिणाम हैं.

अभी कोरोना के बारे में तो बहुत कुछ स्पष्ट नहीं है, लेकिन कौन नहीं जानता कि स्वाइन फ्लू, बर्ड फ्लू और न जाने कितनी महामारी पशु और जानवरों से इंसान में आई और इंसान को प्रकृति के आगे झुकने को मजबूर कर दिया. इसलिए जैन धर्म के मुख्य सिद्धांत अहिंसा और संयम कोरोना से बचाव के लिए अब पूरे विश्व की मजबूरी बनता जा रहा है. गौरतलब है कि कोरोना महामारी के दौरान पशुओं की हत्या लगभग बंद हो गई थी और जहां पर हमेशा मांसाहार का उपयोग किया जाता है, वहां पर भी लोग शाकाहारी बन गए.

अहिंसा से ही जुड़ा हुआ है मुंह पर मास्क लगाना

जैन धर्म में माना जाता है कि वातावरण में करोड़ों वायरस या जीव विद्यमान हैं. मुंह खुला होने से अनजाने में ही मुंह के माध्यम से अंदर चले जाते हैं, जिससे जीव हत्या का पाप लगता है. इसलिए जैन साधु- संत हमेशा मुंह पर मास्क लगाकर ही रखते हैं. जैन धर्म में मुंह ढकने की ये परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है. आज मास्क लगाने की परंपरा कोरोना से बचाव में कारगर साबित हो रही है.

उबला पानी पीना

कोरोना महामारी में बचाव के लिए हमेशा हमेशा उबले या गर्म पानी पीने की सलाह दी जाती है, लेकिन जैन धर्म के साधु-संत हजारों सालों से इसका उपयोग कर रहे हैं. जैन धर्म के साधु-संत अपने सिद्धांत के अनुसार कभी भी कच्चा पानी यानी ठंडा पानी नहीं पीते हैं. वे हमेशा उबालकर ही पानी पीते हैं. वे जब भी विहार करते हैं, तब भी कड़ी प्यास लगने के बावजूद भी साधारण पानी का उपयोग नहीं करते. पानी को उबालकर पीना उनके नियमों में है.

जैन धर्म में भी होती है सोशल डिस्टेंसिंग

कोरोना से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को भी एक हथियार के रूप में प्रयोग किया जा रहा है. इसके लिए दुनिया के तमाम देशों को लॉकडाउन जैसे फैसले लेने पड़े. जैन धर्म में अलगाव का सिद्धांत है. जैन धर्म में ध्‍यान लगाने के लिए अलगाव सिद्धांत का भी पालन किया जाता है. जैन धर्म में योग और ध्‍यान के लिए ऋषि-मुनि भी अलगाव में चले जाते हैं.

जैन मुनि अपने को रखते हैं आइसोलेशन में

सम्‍यक एकांत को सामान्‍य भाषा में आइसोलेशन कहा जाता है. जैन ऋषि और मु‍नि बाकी दुनिया से अलग एकांत में रहते हैं, ताकि कोई भी बुराई या फिर किसी प्रकार का लालच उन्‍हें छू भी न सके. इसी प्रकार से कोरोना के संक्रमण के डर से आजकल आइसोलेशन के नियमों को सारी दुनिया मान रही है. समाज से दूर लोग खुद को आइसोलेशन में रखना पसंद कर रहे हैं.

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