झालावाड़. कोरोना पॉजिटिव मरीज मिलने के बाद प्रशासन द्वारा उसकी कॉन्टैक्ट व ट्रेवल हिस्ट्री निकाली जाती है, ताकि जितने भी लोग संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आये हैं, उनकी पहचान हो सके. यह इसलिए भी जरूरी है ताकि कोरोना संक्रमण की चेन को रोका जा सके, लेकिन इसी काम को लेकर झालावाड़ जिला प्रशासन व चिकित्सा विभाग की बड़ी लापरवाही सामने आई है. जिसका खामियाजा झालावाड़ जिले के समराई गांव के 1200 लोगों को भुगतना पड़ रहा है.
दरअसल, झालरापाटन में 27 मई को एक लहसुन का व्यापारी कोरोना वायरस से संक्रमित पाया गया था. जिसकी कॉन्टैक्ट व ट्रेवलिंग हिस्ट्री निकाली गई तो उसमें सामने आया कि वो उसी दिन व 1 दिन पहले समराई गांव में लहसुन की खरीदारी करने गया था. जहां पर वो गांव के कई घरों के अंदर गया और लोगों से बातचीत की. इसी के साथ कई जगह पर उसने चाय व पानी का भी सेवन किया. ऐसे में जब व्यापारी की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव निकलने की सूचना गांव वालों को मिली तो गांव में हड़कंप मच गया, लेकिन प्रशासन व चिकित्सा विभाग ने इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया.
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बता दें कि ग्रामीण खुद ही कोरोना का टेस्ट करवाने के लिए पहले झालावाड़ शहर के एसआरजी अस्पताल में गए. जहां से उनको लौटा दिया गया. जिसके बाद में ग्रामीण झालरापाटन शहर पहुंचे. वहां पर उनका टेस्ट तो नहीं हुआ, बल्कि पुलिस द्वारा डंडे मारे गए. जिसके बाद ग्रामीण वापस लौट आए. ऐसे में जिस चिकित्सा विभाग को गांव में जाकर सभी लोगों की सैंपलिंग करनी चाहिए थी. उसी विभाग की टीम ने लापरवाही की सारी हदें पार करते हुए उनके पास पहुंचे लोगों का टेस्ट तो दूर, बिना स्क्रीनिंग के ही वापस लौटा दिया. जिसके बाद से ग्रामीण डर के साए में जी रहे हैं.
ग्रामीणों ने बताया कि आस-पास के गांवों में अफवाह फैल गयी है कि समराई गांव में कोरोना पॉजिटिव निकला है. जिससे ग्रामीण ना तो जरूरी सामान ला पा रहे हैं और ना ही ले जा पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि चिकित्सा विभाग की ओर से ग्रामीणों की स्क्रीनिंग व टेस्टिंग करनी चाहिए थी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. प्रशासन की लापरवाही के चलते गांव में कोरोना वायरस के संक्रमण की आशंका बनी हुई है.