जयपुर: ईटीवी भारत की खास पेशकश 'नेताजी नॉन पॉलिटिकल' सीरिज में आज हम आपको राजस्थान सरकार में चर्चित चेहरा शिक्षा मंत्री मदन दिलावर से मुलाकात करवा रहे हैं. अपने बयानों और हाजिर जवाबी के कारण सियासी गलियारों में खास पहचान रखने वाले मदन दिलावर का सफर काफी चुनौतियों से भरा रहा है. संघर्ष के रास्ते राजनीति में खास मुकाम बनाने वाले दिलावर की नॉन पॉलिटिकल लाइफ को आज हम जानेंगे और जीवन के कई अनकही पहलुओं को भी समझेंगे.
शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का गैर राजनीतिक पहलू समझने की कोशिश के बीच ईटीवी भारत जयपुर में अल सुबह उनके सरकारी आवास पर पहुंचा. यहां शिक्षा मंत्री सुबह की शुरुआत गोसेवा के साथ करते हुए नजर आए. इस दौरान दिलावर मूली के हरे पत्ते अपनी गायों को खिला रहे थे. उन्होंने बताया कि जयपुर में वे दो गाय रखते हैं, जिनके साथ दो बछड़े भी हैं. उन्होंने बताया कि राजनीतिक आपाधापी के बीच प्रयास रहता है कि वे स्वयं गोसेवा करें.
इस दौरान गोपालन को लेकर उन्होंने अपनी सोच को भी साझा किया. उन्होंने कहा कि मवेशियों में मानव के लिए जितना ज्यादा समर्पित एक गाय होती है, उतना कोई और नहीं. यही कारण है कि वे गोपालन को बढ़ावा देने के मकसद से भी काम कर रहे हैं. दिलावर की मान्यता है कि गाय हमेशा ऑक्सीजन देती है. गाय का सारा अपशिष्ट भी मानव के लिए उपयोगी होता है.
बचपन में खेती के साथ बेची है सब्जियांः मदन दिलावर ने बताया कि वे किसान परिवार से आते हैं. बचपन में उन्होंने खेती की है और वहां से मिलने वाली सब्जियों को बेचा भी है. यहां तक कि उन्होंने मंडी से लाकर भी सब्जी विक्रेता के रूप में काम किया है. अपने सरकारी आवास पर भी वे ऋतु के मुताबिक सब्जियां उगाते हैं, जिसमें उनका स्टाफ भी मदद करता है. लिहाजा खेती और जमीन से उनका प्रेम स्वाभाविक है.
पढ़ाई के बाद भी जारी रहा संघर्षः मदन दिलावर ने इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया है. वह बताते हैं कि पढ़ाई के बाद जब नौकरी नहीं लगी, तो बड़े भाई के साथ साइकिल पर कपड़े बेचने का काम किया. करीब 3 साल तक उन्होंने अपने बड़े भाई की साइकिल पर कपड़ों की गठरी बांधकर बेचने में मदद की. इस दौरान उन्होंने महसूस किया कि बरसात के वक्त में जब साइकिल चलाने में दिक्कत होती थी, तो कोटा आने के बाद 450 रुपए महीने में कोटा थर्मल पावर प्लांट में मैकेनिकल इंजीनियर के पद पर भी नौकरी की. इस तरह से पहली बार गांव से निकलकर शहर में दिलावर रोजगार की तलाश के साथ पहुंचे थे.
राम और कृष्ण जन्म भूमि पर लिए प्रणः मदन दिलावर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बचपन से जुड़े रहे. यही कारण था कि वे राम मंदिर से जुड़ी कार सेवा में भी गए थे. इस दौरान उनकी गिरफ्तारी भी हुई थी. दिलावर ने इस सिलसिले में दो शपथ ली थी. जिनमें से उन्होंने फरवरी 1990 में राम मंदिर नहीं बनने तक जमीन पर सोने और माला नहीं पहनने का संकल्प लिया था. दिलावर कहते हैं कि जब तक मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि पर मंदिर नहीं बनेगा, वह आगे भी माला स्वीकार नहीं करेंगे.
मदन दिलावर ने बताया कि वे 13 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क में आए थे और स्वयंसेवक बन गए. प्रचारक के रूप में काम करने के बाद राजस्थान में बजरंग दल की स्थापना के साथ पहले सदस्य बने. इसके बाद अपने हितेषियों की मदद से भैरों सिंह शेखावत के संपर्क में आए और राजनीति में कदम रखते हुए पहली बार अटरू से विधायक बने.
परिवार राजनीति से तालमेल का अभ्यस्तः राजनीति के साथ ही परिवार के साथ तालमेल को लेकर शिक्षा मंत्री दिलावर का कहना है कि आम तौर पर समय नहीं दे पाने के कारण परिवार के लोग उनसे नाराज रहते हैं. फिर भी वे प्रयास करते हैं, जो कई दफा संभव नहीं हो पाता है. हालांकि, दिलावर बताते हैं कि परिवार से बच्चे से बड़े होने के साथ ही साढ़े तीन दशक के राजनीतिक जीवन में इस तरह की शिकायत कम ही आती है. अपने परिवार को लेकर उनका कहना है कि सभी अब अभ्यस्त हो गए हैं. मदन दिलावर की तीन संतान है, जिनमें एक बेटी डॉक्टर है, एक बेटा कर्मशियल पायलट था, जो अब स्वयं का काम कर रहे हैं, वहीं दूसरा बेटा एक पेट्रोल पंप चलाते हैं.
सरकारी काम में निजी जीवन की छापः मदन दिलावर अपने जीवन के तजुर्बे के आधार पर सरकारी कामकाज पर भी सामाजिक सरोकारों की छाप छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं. पौराणिक रीति के मुताबिक गोपालक योजना के जरिए वे प्रयास कर रहे हैं कि मवेशियों को जंगलों में एक व्यवस्थित रूप से चरने के लिए भेजा जाए. इसी तरह से गांवों में होने वाले आयोजनों में डिस्पोजल सामान के इस्तेमाल से होने वाले प्रदूषण को रोका जाए, इसके लिए उन्होंने बर्तन बैंक जैसी स्कीम तैयार की है, जो काफी लोकप्रिय भी हो रही है.