झालावाड़. हुकुमचंद पाटीदार ने दो दशक पहले जैविक खेती की शुरुआत की थी. इस कारण लोग उनका मजाक उड़ाते थे. पाटीदार ने नुकसान भी सहा लेकिन काम जारी रखा, जिसकी बदौलत 2018 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. अब विदेश से लोग उनसे जैविक खेती के गुर सीखने के लिए आते हैं. साथ ही अब वो अपने उपज को विदेशों में निर्यात भी करते हैं.
जिले के असनावर इलाके के मानपुरा गांव निवासी हुकमचंद पाटीदार ने बताया कि उन्होंने अपने खेत में जैविक खेती करना शुरू किया था. ऑर्गेनिक खेती होने के चलते शुरुआत में उत्पादन कम हो रहा था. इससे उन्हें काफी नुकसान हुआ. सामाज के लोग उन्हें तवज्जो नहीं दे रहे थे. हालांकि जैविक खेती का काम उन्होंने जारी रखा. इसके बाद अचानक पासा पलटा. जैविक खेती का उत्पादन कम होने के बाद भी उपज के दाम ज्यादा मिलने लगे, इसकी डिमांड भी बढ़ गई, जिसके बाद पाटीदार का नाम पूरे इलाके में होने लगा.
उन्होंने बताया कि अब विदेश से भी लोग जैविक खेती के गुर सीखने के लिए आते हैं. वो उपज को विदेश में भी निर्यात करने लगे हैं, इससे उन्हें बाजार के भाव से करीब ढाई गुना ज्यादा पैसा मिलने लगा है. उन्होंने जैविक खेती का खूब प्रचार-प्रसार भी शुरू कर दिया. इसके चलते ही कई लोग उनसे जुड़ कर जैविक खेती शुरू कर चुके हैं.
टेस्ट रिपोर्ट के बाद, उपज भेजी थी विदेश : पाटीदार ने बताया कि उन्होंने अपने भाइयों के साथ मिलकर जैविक खेती करना शुरू कर दिया था. इसपर उनसे कोलकाता के एक सप्लायर ने आकर मुलाकात की और जैविक खेती के उत्पादों को विदेश भेजने के लिए कहा. उसने उत्पादों को टेस्ट करवाने की बात कही. साथ ही कहा कि अगर टेस्ट में पास हो जाते हैं तो उनकी उपज को विदेश भेजा जा सकेगा. इस टेस्ट में उनकी उपज पास हो गई.
पक्षियों की मौत के बाद शुरू की खेती : पाटीदार का कहना है कि साल 2003 में उनके इलाके में अचानक पक्षियों की मौत होने लगी थी. इसका कारण रासायनिक खाद सामने आया. इसके बाद उन्होंने रासायनिक खाद का उपयोग बंद करने का फैसला लिया था. तब से ही पाटीदार के साथ उनके चारों भाई जुटे हुए हैं. पाटीदार के भाई हंसराज जैविक खाद का पूरा कार्य देखते हैं, जबकि सबसे छोटे भाई केवल चंद ग्रेडिंग और पैकेजिंग का काम देखते हैं. उनका कहना है कि हमने अपनी उपज की प्रोसेसिंग भी की है, जिसके चलते हमें अच्छे दाम मिलने लग गए.
ऑर्गेनिक होने के चलते कम आ रही है लागत : पाटीदार का कहना है कि उनके खेत में किसी भी तरह की कोई कीटनाशक या रासायनिक खाद का उपयोग नहीं करते हैं, केवल खुद की बनाई खाद का ही उपयोग कर रहे हैं. इसे पशुधन के गोबर और अन्य उत्पादों से बनाया जाता है. उन्होंने बताया कि खाद खुद से बनाने के कारण बाजार का खर्च बिल्कुल भी नहीं है. हालांकि उपज प्रति हेक्टेयर कम होती है, लेकिन खर्चा नहीं होने के चलते यह ज्यादा भारी नहीं पड़ता. वो इसे भारत के ही कई हिस्सों में ऑनलाइन बेच रहे हैं, जहां पर बाजार के भाव का दो गुना पैसा मिल रहा है.
पहले उड़ाया मजाक, अब प्रेरणा ले रहे : पाटीदार का कहना है कि उन्होंने साल 2004 में केवल 1 हेक्टेयर एरिया में ही जैविक खेती की थी. इसके बाद 25 हेक्टेयर के खेत में पूरी तरह से जैविक खेती ही शुरू कर दी. पूरा परिवार इसमें जुटा रहा. आज कई लोगों ने हमसे प्रेरणा लेकर जैविक खेती करना शुरू किया है. उन्होंने बताया कि प्रशिक्षण का काम अक्षय जैविक संस्थान के जरिए किया जाता था. हमारे यहां फ्रांस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड व जापान जैसे देशों से विदेशी जैविक खेती के टेक्निक सीखने आते हैं.
मसालों का कर रहे हैं विदेश में निर्यात : पाटीदार विदेशों में धनिया, लहसुन, सौंफ, अजवाइन व मेथी निर्यात करते हैं, जबकि गेहूं और दाल को ऑनलाइन मार्केटिंग के जरिए बेचते हैं. इसके ऑर्डर मेल पर आ जाता है और फिर इसे डिस्पैच कर देते हैं. उन्होंने कहा कि साल 2013 से 2018 तक लगातार निर्यात किया गया, बाद में कोविड-19 की वजह से ये रोक दिया गया. इसके बाद साल 2021 में कच्ची हल्दी व धनिया हमने निर्यात किया है.