जालोर. प्रदेश में विदेशी बबूल की झाड़ियों व पेड़ों पर अब सरकारी बुलडोजर चलेगा. इसके लिए बाकायदा वन विभाग टेंडर निकालकर बबूल के पेड़ व झाड़ियां कटवाएगा. जिसके पीछे वन विभाग की मंशा है कि प्रदेश से कंटीले बबूल के पेड़ खत्म करके फल व छायादार पौधे लगाए जाएं. जिससे की लोगों को इसका फायदा मिले. बबूल के पेड़ों की कटाई जालोर जिले से शुरू होगी.
वन व पर्यावरण मंत्री सुखराम बिश्नोई ने बताया कि प्रदेश में विदेशी बबूल के पेड़ एक समस्या बनते जा रहे हैं. बबूल के पेड़ों के कारण दूसरे पेड़-पौधों की प्रजाति खतरे में पड़ गई हैं. जिसके चलते अब वन विभाग विदेशी बबूल का खात्मा करेगा. उन्होंने बताया कि प्रदेशभर में टेंडर प्रकिया के तहत बबूल कटवाए जाएंगे. जिसकी शुरुआत जालोर जिले से की जाएगी. जिले के चितलवाना क्षेत्र उपखण्ड क्षेत्र में करीबन 11 हजार हेक्टेयर जमीन जो किसी भी राजस्व रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है. उस भवातड़ा जोड में खड़े बबूल को नष्ट करवाने का कार्य किया जाएगा.
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बबूल के पेड़ों का क्या है नेहरू से कनेक्शन
पंडित जवाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में हेलीकॉप्टर से बीज डलवाए गए थे. देशभर में ईंधन की कमी के कारण पंडित नेहरू ने देशभर में नदी व नहरों के आस-पास व खाली पड़ी जमीनों में हेलिकॉप्टर से विदेशी बबूल के बीज डलवाये थे. जिससे की लोगों को ईंधन के लिए परेशान नहीं होना पड़े. उसके बाद धीरे-धीरे बबूल के पेड़ों की संख्या बढ़ती गई. आज हालात यह हैं कि नदी व सूनसान जगहों पर या सड़क के किनारे जगह-जगह बबूल के पेड़ों की भरमार है.
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लूणी नदी क्षेत्र के हजारों बीघा जमीन में बबूल का जंगल है. लूणी नदी में गुढ़ामालानी से आगे निकलते ही जालोर की सीमा शुरू होती है. वहां से लेकर भवातड़ा रणखार तक हजारों बीघा जमीन में बबूल का घना जंगल है. ऐसे में अगर वन विभाग टेंडर प्रक्रिया से बबूल की कटाई करता है तो विभाग को लाखों, करोड़ों की कमाई भी हो जाएगी. मंत्री बिश्नोई ने बताया कि वन विभाग फल व छायादार पौधे लगाकर उस एरिया को बर्ड कन्वर्जेंस बनाएगा. जहां विदेशी पक्षी आसानी से विचरण कर सकेंगे. वैज्ञानिकों के अनुसार बबूल के पेड़ों की जड़े करीब 57 फीट तक गहरी जमीन में जाती हैं. जिससे जमीन की अधिकतर नमी बबूल के पेड़ सोंख लेते हैं और दूसरे पेड़-पौधे नहीं पनप पाते हैं.