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स्वर्ण नगरी में आज भी दीपावली के दिन हटड़ी पूजन का है विशेष महत्व

Deepawali 2023, स्वर्ण नगरी जैसलमेर में आज भी दीपावली के दिन हटड़ी पूजन का विशेष महत्व है. हटड़ी पूजन के बिना दीवाली का पर्व अधूरा माना जाता है. यहां जानिए इस खास परंपरा के बारे में...

Diwali Celebration in Rajasthan
हटड़ी पूजन का है विशेष महत्व
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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Nov 12, 2023, 8:29 AM IST

Updated : Nov 12, 2023, 10:51 AM IST

क्या कहते हैं फकीरचंद मिरासी ?

जैसलमेर. स्वर्ण नगरी जैसलमेर में इन दिनों दीपावली पर्व को लेकर उत्साह का माहौल देखने को मिल रहा है. जैसलमेर में विभिन्न पर्व व त्योहार मनाने की परंपरा व यहां के रीति-रिवाज अपने आप में अलग पहचान रखते हैं. इसी प्रकार दीवाली के दिन स्वर्ण नगरी जैसलमेर में हटड़ी पूजन का भी विशेष महत्व है. हटड़ी पूजन के बिना दीवाली पर्व अधूरा माना जाता है. हटड़ी घोड़े की लीद से बनी होती है. हालांकि, अब बदलते समय के साथ-साथ स्टील व अन्य धातु से बनी हटड़ी का भी प्रचलन बढ़ा है, लेकिन मंगणियार परिवार द्वारा पारम्परिक तरीके से बनाई गई हटड़ी को बुजुर्ग लोग शुभ मानते हैं.

जैसलमेर में एकमात्र हटड़ी बनाने वाले फकीरचंद मिरासी बताते हैं कि यह उनका खानदानी पेशा है. उन्होंने बताया कि यह हटड़ी की परंपरा केवल जैसलमेर में है. फकीरचंद ने बताया कि हटड़ी को एक प्रकार से लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है. उन्होंने बताया कि हटड़ी के निर्माण मिट्टी लाने से लेकर हटड़ी को बनाने और किसी को देने तक का काम शुभ और अशुभ का मुहूर्त देखकर ही किया जाता है. फकीरचंद ने बताया कि यह हटड़ी को घोड़े की लीद और एक विशेष स्थान से लाई गई मिट्टी से बनाई जाती है. इसके बाद इस पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाकर आकर्षक बनाया जाता है. उन्होंने बताया कि दिवाली के दिन हटड़ी पूजन का विशेष महत्व है.

पढ़ें : Diwali 2023 : आज यहां लगेगा कुंवारों का मेला, जानिए 'शादी देव' की महिमा

फकीरचंद ने बताते हैं कि मंगणियार परिवार के लोग हटड़ी का निर्माण कर दीपावली विवाह उत्सव पुत्र होने या अन्य शुभ कार्य में इस भेंट करते हैं. इसके बदले में संबंधित लोग उन्हें अच्छा नारियल ओढ़नी व श्रद्धानुसार भेंट देते हैं. गौरतलब है कि अब कृत्रिम व धातु से बनी हटड़ियां बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाने के बावजूद मांगलिक दृष्टिकोण से प्रभावित न होने और रिद्धि सिद्धि की कामना के लिए कई लोग मिट्टी व पास की लड़कियों से निर्मित हटड़ी को ही शुभ मानते हैं. इसलिए ही ऐसे आधुनिकता के दौर में भी परंपरागत रूप से बनी हटड़ी व उसके पूजन का महत्व बरकरार है.

यह है पौराणिक कथा : इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी जब अयोध्या लौटे थे तो लोगों ने उनके स्वागत के लिए घरों में घी के दीपक जलाए थे. इसी के साथ कई लोगों ने उस दिन मिट्टी का घरौंदा, यानी घर भी बनाया था, साथ ही उसे कई तरह से सजाया भी था. इसे प्रतीकात्मक तौर पर नगर के बसने के तौर पर देखा जाता है, तभी से यह प्रचलन चला आ रहा है. मान्यता है कि जिसका खुद का घर नहीं होता है तो इस घरौंदे की पूजा करने से अलगे वर्ष के पहले उसका खुद का मकान भी बन जाता है.

क्या कहते हैं फकीरचंद मिरासी ?

जैसलमेर. स्वर्ण नगरी जैसलमेर में इन दिनों दीपावली पर्व को लेकर उत्साह का माहौल देखने को मिल रहा है. जैसलमेर में विभिन्न पर्व व त्योहार मनाने की परंपरा व यहां के रीति-रिवाज अपने आप में अलग पहचान रखते हैं. इसी प्रकार दीवाली के दिन स्वर्ण नगरी जैसलमेर में हटड़ी पूजन का भी विशेष महत्व है. हटड़ी पूजन के बिना दीवाली पर्व अधूरा माना जाता है. हटड़ी घोड़े की लीद से बनी होती है. हालांकि, अब बदलते समय के साथ-साथ स्टील व अन्य धातु से बनी हटड़ी का भी प्रचलन बढ़ा है, लेकिन मंगणियार परिवार द्वारा पारम्परिक तरीके से बनाई गई हटड़ी को बुजुर्ग लोग शुभ मानते हैं.

जैसलमेर में एकमात्र हटड़ी बनाने वाले फकीरचंद मिरासी बताते हैं कि यह उनका खानदानी पेशा है. उन्होंने बताया कि यह हटड़ी की परंपरा केवल जैसलमेर में है. फकीरचंद ने बताया कि हटड़ी को एक प्रकार से लक्ष्मी का स्वरूप माना जाता है. उन्होंने बताया कि हटड़ी के निर्माण मिट्टी लाने से लेकर हटड़ी को बनाने और किसी को देने तक का काम शुभ और अशुभ का मुहूर्त देखकर ही किया जाता है. फकीरचंद ने बताया कि यह हटड़ी को घोड़े की लीद और एक विशेष स्थान से लाई गई मिट्टी से बनाई जाती है. इसके बाद इस पर विभिन्न प्रकार की आकृतियां बनाकर आकर्षक बनाया जाता है. उन्होंने बताया कि दिवाली के दिन हटड़ी पूजन का विशेष महत्व है.

पढ़ें : Diwali 2023 : आज यहां लगेगा कुंवारों का मेला, जानिए 'शादी देव' की महिमा

फकीरचंद ने बताते हैं कि मंगणियार परिवार के लोग हटड़ी का निर्माण कर दीपावली विवाह उत्सव पुत्र होने या अन्य शुभ कार्य में इस भेंट करते हैं. इसके बदले में संबंधित लोग उन्हें अच्छा नारियल ओढ़नी व श्रद्धानुसार भेंट देते हैं. गौरतलब है कि अब कृत्रिम व धातु से बनी हटड़ियां बाजार में आसानी से उपलब्ध हो जाने के बावजूद मांगलिक दृष्टिकोण से प्रभावित न होने और रिद्धि सिद्धि की कामना के लिए कई लोग मिट्टी व पास की लड़कियों से निर्मित हटड़ी को ही शुभ मानते हैं. इसलिए ही ऐसे आधुनिकता के दौर में भी परंपरागत रूप से बनी हटड़ी व उसके पूजन का महत्व बरकरार है.

यह है पौराणिक कथा : इसके पीछे एक पौराणिक कथा है कि श्रीराम, माता सीता और लक्ष्मण जी जब अयोध्या लौटे थे तो लोगों ने उनके स्वागत के लिए घरों में घी के दीपक जलाए थे. इसी के साथ कई लोगों ने उस दिन मिट्टी का घरौंदा, यानी घर भी बनाया था, साथ ही उसे कई तरह से सजाया भी था. इसे प्रतीकात्मक तौर पर नगर के बसने के तौर पर देखा जाता है, तभी से यह प्रचलन चला आ रहा है. मान्यता है कि जिसका खुद का घर नहीं होता है तो इस घरौंदे की पूजा करने से अलगे वर्ष के पहले उसका खुद का मकान भी बन जाता है.

Last Updated : Nov 12, 2023, 10:51 AM IST
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