जयपुर. विश्व दृष्टि दिवस हर साल अक्टूबर के दूसरे गुरुवार को मनाया जाता है. यह एक वैश्विक कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य अंधेपन और दृष्टि दोष पर लोगों का ध्यान आकर्षित करना है. इस खास दिन हम आपको मिलाते हैं एक ऐसे शख्स से, जो पिछले 30 साल से लोगों को नेत्रदान करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. ये हैं कमल कुमार सचेती जो अब तक 3300 से ज्यादा लोगों की अंधेरी दुनिया में रोशनी लौटा चुके हैं. व्यापारी वर्ग से सचेती का मानव सेवा का काम मां के आई डोनेट कराने के साथ शुरू हुआ था, ये सफर 30 साल बाद भी अनवरत जारी है.
मां के नेत्र दान से मिला लक्ष्य : कमल कुमार कहते हैं कि 5 जुलाई 1993 को उनकी मां का स्वर्गवास हुआ था. जयपुर से अजमेर पहुंचे, मां के पार्थिव शरीर के पास बैठे-बैठे उन्हें देख रहे थे कि अचानक मन में ख्याल आया कि मां की आंखों को दान किया जाए. इसके लिए उन्होंने अपने परिवार के सदस्यों से बात की, सभी ने उनकी भावनाओं को समझा और नेत्रदान के लिए तैयार हो गए. डॉक्टर को बुलाया गया और मां का नेत्रदान किया गया. उसी दिन मन में इस ख्याल ने जन्म लिया कि क्यों न जिन लोगों की आंखें नहीं हैं, उन्हें रोशनी लौटाने के लिए काम किया जाए. उस दिन के बाद यह तय कर लिया कि अब नेत्रदान के लिए काम करना है. उन्होंने बताया कि अब तक 3300 कॉर्निया ट्रांसप्लांट करवा चुके हैं.
जैन सोशल ग्रुप का किया गठन : कमल बताते हैं कि वह एक व्यापारी हैं, लेकिन अपने व्यापार के साथ-साथ वह नेत्रदान के काम में जुटे हुए हैं. शुरुआत के दिनों में अकेले ही लोगों को नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित करते थे. बाद में इस नेक काम में और भी कई साथी जुड़ गए. इसके बाद जैन सोशल ग्रुप संस्था का गठन किया गया, जिसमें 150 कपल यानी 300 मेंबर हैं. ये हर दिन इस कार्य के लिए निस्वार्थ भाव से जुटे रहते हैं. जब भी पता लगता है कि कहीं किसी घर में मौत हुई है तो वहां पर अपनी टीम के साथ पहुंच जाते हैं और परिवार के सदस्यों से बात करते हैं. उन्हें समझाते हैं कि जो चला गया वह वापस लौट के नहीं आ सकता, लेकिन उसकी आंखों के जरिए वह कई लोगों के जीवन में रोशनी ला सकते हैं. कमल बताते हैं कि कई बार स्थिति ऐसी होती है कि वह परिवार के साथ किसी शादी समारोह में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं. खाने की प्लेट हाथ में होती है कि इस दौरान सूचना आती है कि किसी के घर में मौत हो गई है. ऐसे में तुरंत उस परिवार के पास पहुंचते हैं और उन्हें नेत्रदान के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
कई जगह हुआ अपमान : कमल कहते हैं कि कई बार हालात बड़े विकट होते हैं. परिवार का कोई भी सदस्य, चाहे वह जवान हो या बुजुर्ग उनके लिए खास होता है. ऐसे वक्त में बड़ी विनम्रता के साथ उन्हें नेत्रदान के लिए तैयार किया जाता है. अब तक के इन प्रयासों में 95 फीसदी परिवारों को समझने में कामयाब रहे हैं. हालांकि, कुछ जगह ऐसे भी हालात बने जहां पर उन्हें अपमानित करके भेजा गया, लेकिन इससे वह निराश नहीं हुए और अपना काम अनवरत जारी रखा. कमल बताते हैं कि 80 साल से कम उम्र का कोई भी व्यक्ति, जो संक्रामक रोग से पीड़ित न हो, नेत्रदान कर सकता है. मृत्यु के 6 घंटे के भीतर नेत्रदान संभव है. उन्होंने बताया कि अगर कोई नेत्रदान करना चाहते हैं तो SMS अस्पताल में 0141-2560291 या आई बैंक ऑफ सोसायटी ऑफ राजस्थान में 0141-2604117 पर कॉल कर सकते हैं. इसके अलावा जैन सोश्यल ग्रुप (सेन्ट्रल) संस्था के नंबर 9352715811 पर संपर्क कर सकते हैं.
एक कहानी के जरिए समझाते हैं : कमल कुमार बताते हैं कि वह जब भी किसी परिवार से उनके गुजरे हुए सदस्य की आंखें दान करने की बात करते हैं तो उसे वह एक कहानी के जरिए समझाने की कोशिश करते हैं. कमल कहानी कहते हैं कि एक 16-17 साल का किशोर अपने पिता के साथ पार्क में बैठा हर चीज के बारे में पूछता है. पेड़-पौधे, पक्षी, जानवर, रंग से लेकर सभी के बारे में बड़ी उत्सुकता के साथ सवाल करता है. इस दौरान पार्क में वॉक करने वाले कुछ लोग उसके पिता को कहते हैं कि उनका बेटा पागल है. इसे किसी अच्छे डॉक्टर को दिखाओ, यह इतने सवाल कर रहा है. इतना बड़ा होने के बाद भी इसे यह समझ नहीं आ रहा कि यह सब क्या है? इस पर पिता बड़े शांत भाव से कहते हैं कि आप सही कह रहे हैं. मैं इसे कल ही डॉक्टर के पास से लेकर आया हूं. आज ही इसकी आंखों की पट्टी खुली है. इससे पहले इसने कभी भी इस दुनिया को आंखों से नहीं देखा था. इसकी आंखें नहीं थी, आज पहली बार यह अपनी आंखों से सब कुछ देख रहा है, इसलिए इसके मन में हर चीज की जानकारी की जिज्ञासा है. कमल बताते हैं कि इस कहानी को सुनने के बाद ज्यादातर लोग नेत्रदान के लिए तैयार हो जाते हैं.