जयपुर. हर साल 11 जनवरी को राष्ट्रीय मानव तस्करी जागरूकता दिवस के रूप में मनाया जाता है. यह दिन मानव तस्करी के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए है. इस दिन का उद्देश्य मानव तस्करी पीड़ितों की दुर्दशा के बारे में जागरूकता बढ़ाना और उनके अधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना है. यह दिन विशेष रूप से जागरूकता और मानव तस्करी की रोकथाम के लिए समर्पित है. राजस्थान की बात करें, तो यहां भी मानव तस्करी एक कलंक की तरह है. आंकड़े बताते हैं कि देश में राजस्थान दूसरा प्रदेश है, जहां सबसे ज्यादा चाइल्ड मानव तस्करी होती है. 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मानव तस्करी के मामले में बिहार और राजस्थान सबसे आगे हैं. पांच साल के कुल आंकड़े देखें तो राजस्थान में 2711 मामलों में, जबकि बिहार में 1848 चाइल्ड मानव तस्करी के मामलों में चार्जशीट पेश की गई.
इस दिन का इतिहास : सामाजिक कार्यकर्ता विजय गोयल बताते हैं कि 2007 में संयुक्त राज्य अमेरिका की सीनेट ने 11 जनवरी को राष्ट्रीय मानव तस्करी जागरूकता दिवस के रूप में स्थापित करने के प्रस्ताव की पुष्टि की थी. 2010 में राष्ट्रपति ओबामा ने मानव तस्करी के प्रति जागरूकता और रोकथाम के लिए जनवरी का पूरा महीना समर्पित किया. मानव तस्करी को गुलामी का एक आधुनिक रूप माना जाता है. भारत में 2013 में अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम 1956 में संशोधन करते हुए IPC की धाराओं में दुर्व्यापार की धारा 370 जोड़ी गई. इस गैरकानूनी कृत्य में श्रम या यौन संबंध के लिए बल, धोखाधड़ी या जबरदस्ती का उपयोग शामिल है. तस्कर अपने पीड़ितों को तस्करी की स्थिति में फंसाने के लिए हिंसा, चालाकी या झूठे वादों का इस्तेमाल करते हैं. इस दिन का उद्देश्य यौन तस्करी के अपराध के प्रति अधिक जागरूकता लाना है. सामाजिक संगठनों और सरकार के स्तर पर हर साल दुनिया भर के संगठन जागरूकता बढ़ाने के लिए अलग-अलग तरह के कार्यक्रम किए जाते हैं.
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राजस्थान और बिहार में सबसे ज्यादा मामले : मानव तस्करी और खास तौर पर चाइल्ड मानव तस्करी की बात की जाए तो राजस्थान देश के उन राज्यों में सिरमौर है जहां सबसे ज्यादा बच्चे गैरकानूनी तरीके से लाए जाते हैं. विजय गोयल बताते है राजस्थान में बाल श्रम एक अभिशाप के रूप में फल फूल रहा है. हालांकि सरकार और सामाजिक संगठनों के प्रयास से 2016 के बाद इन आंकड़ों में गिरावट दर्ज हुई, लेकिन जो भी आंकड़े एनसीआरबी में दर्ज किए गए, वो भी डराने वाले हैं. 2018 के बाद से 2022 तक के 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के मानव तस्करी की बात की जाए तो राजस्थान और बिहार वो राज्य हैं, जहां पर सबसे ज्यादा मामले दर्ज किए गए.
आंकड़े बताते हैं कि 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मानव तस्करी के मामले में देश का बिहार और राजस्थान सबसे आगे है. पांच साल के कुल आंकड़े देखें तो राजस्थान में 2711 चाइल्ड मानव तस्करी के मामलों में चार्जशीट पेश की गई, जबकि बिहार में 1848 मामलों में. एनसीआरबी में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक 2018 में बिहार में 537 मामले दर्ज हुए, जबकि राजस्थान में 373. साल 2019 की बात करें तो राजस्थान में 653 तो बिहार में 294 मामले दर्ज किए गए. साल 2020 में राजस्थान में 815 मामले दर्ज हुए, जबकि केरला में 184 मामले दर्ज हुए. साल 2021 के आकड़ों को देखें तो ओडिसा में 497 मामले दर्ज हुए, जबकि राजस्थान में 417 मामले दर्ज हुए. इसी प्रकार 2022 के आकड़ें बताते हैं कि बिहार में 613 जबकि राजस्थान में 453 मामले दर्ज किए गए.
मानव तस्करी क्या हैं कारण ? : दरअसल किसी व्यक्ति को बल प्रयोग कर, डराकर, धोखा देकर, हिंसा आदि के जरिए बंधक बनाकर रखना या उसे बेच देना मानव तस्करी के अंतर्गत आता है. मानव तस्करी के ज्यादातर मामले छोटे बच्चों या बालिकाओं के आते हैं. छोटे बच्चों को बाल श्रम के लिए दूसरे राज्य से गैरकानूनी तरीके से लाया जाता है. बच्चों को भीख मंगवाने, होटलों, घरों, ढाबों और दुकानों में काम करने के लिए भी बड़े पैमाने पर तस्करी की जाती है. बालिकाओं को देह व्यापार के लिए तस्करी की जाती है. ड्रग्स और हथियारों के बाद मानव तस्करी दुनिया का सबसे बड़ा संगठित अपराध है.
मानव तस्करी की बड़ी वजह पर बात करते हुए विजय गोयल बताते हैं कि हमारे देश में मानव तस्करी के कई बड़े कारण हैं. इनमें से प्रमुख कारण गरीबी, अशिक्षा, बंधुआ मजदूरी, देह व्यापार, सामाजिक असमानता, क्षेत्रीय लैंगिक असंतुलन, चाइल्ड पोर्नोग्राफी है. उन्होंने कहा कि 2016 के बाद से मानव तस्करी के आंकड़ों में कमी जरूर आई है, लेकिन जो गिरावट होनी चाहिए वो अभी तक नहीं हुई है. हालांकि राजस्थान के सभी पुलिस जिला मुख्यालय पर मानव तस्करी यूनिट का गठन किया गया है, जो समय-समय पर कार्रवाई करती है.