ETV Bharat / state

विलुप्त हो चुकी परंपराओं के बीच 300 साल पुराने 'तमाशा' का मंचन

author img

By

Published : Mar 21, 2019, 12:17 AM IST

विलुप्त हो रही प्राचीन लोक परंपराओं के बीच जयपुर का लोकनाट्य तमाशा ने एक बार फिर अपने रंग बिखेरे. 300 सालों के लंबे सफर के बाद आज भी तमाशा जनमानस में अपनी पहचान और लोकप्रियता बनाए हुए हैं.

कवि सम्मेलन

जयपुर. विलुप्त हो रही प्राचीन लोक परंपराओं के बीच जयपुर का लोकनाट्य तमाशा ने एक बार फिर अपने रंग बिखेरे. 300 सालों के लंबे सफर के बाद आज भी तमाशा जनमानस में अपनी पहचान और लोकप्रियता बनाए हुए हैं.होली के अवसर पर लोगों को रिझाने वाले इस लोकनाट्य में इस बार हीर रांझे का मंचन हुआ.

वीडियो


दरअसल 300 साल पुरानी जयपुर की पारंपरिक सभ्यता होली के मौके पर एक बार फिर जीवंत हुई.राजा महाराजाओं के समय से जयपुर में प्रचलित लोकनाट्य तमाशा का मंचन राजधानी के ब्रह्मपुरी क्षेत्र में किया गया.जयपुर के इतिहास को टटोलें तो हीर रांझा, राजा गोपीचंद, जोगी जोगन, छैला पणिहारी और लैला मजनू जैसे नाट्य का 52 जगहों पर मंचन हुआ करता था. जो अब महज ब्रह्मपुरी के छोटी अखाड़े तक ही सिमट कर रह गया है. जहांशास्त्रीय संगीत का तड़का लगाकर तमाशा शैली का प्रदर्शन किया जाता है. कलाकार भट्ट परिवार की 7 पीढ़ियों और इसी तरह क्षेत्रीय दर्शकों की भी 7 पीढ़ियां इस तमाशा कार्यक्रम से जुड़ी हुई हैं जो जयपुर की सभ्यता और संस्कृति को आज भी साकार किए हुए हैं.

बिना किसी तामझाम के खुले मंच पर होने वाला जयपुर का पारंपारिक लोकनाट्य तमाशा में सिर पर कलंगी वाला मुकुट चटकीले रंग के वस्त्र धारण किए हुए, हाथ में मोर पंख, पैरों में घुंघरू बांधकर कलाकारों ने एक बार फिर हारमोनियम और सारंगी की धुनों पर स्वर छेड़े. होली के रस से भरे गीतों के साथ साथ इस बार उन्होंने हीर रांझा की कहानी को शब्दों के साथ उकेरा. वहीं मौके पर पहुंचे डिप्टी मेयर मनोज भारद्वाज ने कहा कि निगम प्रशासन अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए पारंपरिक लोक नाट्य को संरक्षण देने की हरसंभव कोशिश करेगा.


Conclusion:बहरहाल, सदियों से चली आ रही जयपुर की तमाशा शैली मनोरंजन के बदलते आयामों के बावजूद अपनी आकर्षण शक्ति से जन जुड़ाव का एक सशक्त माध्यम बनी हुई है... जरूरत है कि सरकार जयपुर की इस पहचान को संरक्षण दे...

जयपुर. विलुप्त हो रही प्राचीन लोक परंपराओं के बीच जयपुर का लोकनाट्य तमाशा ने एक बार फिर अपने रंग बिखेरे. 300 सालों के लंबे सफर के बाद आज भी तमाशा जनमानस में अपनी पहचान और लोकप्रियता बनाए हुए हैं.होली के अवसर पर लोगों को रिझाने वाले इस लोकनाट्य में इस बार हीर रांझे का मंचन हुआ.

वीडियो


दरअसल 300 साल पुरानी जयपुर की पारंपरिक सभ्यता होली के मौके पर एक बार फिर जीवंत हुई.राजा महाराजाओं के समय से जयपुर में प्रचलित लोकनाट्य तमाशा का मंचन राजधानी के ब्रह्मपुरी क्षेत्र में किया गया.जयपुर के इतिहास को टटोलें तो हीर रांझा, राजा गोपीचंद, जोगी जोगन, छैला पणिहारी और लैला मजनू जैसे नाट्य का 52 जगहों पर मंचन हुआ करता था. जो अब महज ब्रह्मपुरी के छोटी अखाड़े तक ही सिमट कर रह गया है. जहांशास्त्रीय संगीत का तड़का लगाकर तमाशा शैली का प्रदर्शन किया जाता है. कलाकार भट्ट परिवार की 7 पीढ़ियों और इसी तरह क्षेत्रीय दर्शकों की भी 7 पीढ़ियां इस तमाशा कार्यक्रम से जुड़ी हुई हैं जो जयपुर की सभ्यता और संस्कृति को आज भी साकार किए हुए हैं.

बिना किसी तामझाम के खुले मंच पर होने वाला जयपुर का पारंपारिक लोकनाट्य तमाशा में सिर पर कलंगी वाला मुकुट चटकीले रंग के वस्त्र धारण किए हुए, हाथ में मोर पंख, पैरों में घुंघरू बांधकर कलाकारों ने एक बार फिर हारमोनियम और सारंगी की धुनों पर स्वर छेड़े. होली के रस से भरे गीतों के साथ साथ इस बार उन्होंने हीर रांझा की कहानी को शब्दों के साथ उकेरा. वहीं मौके पर पहुंचे डिप्टी मेयर मनोज भारद्वाज ने कहा कि निगम प्रशासन अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए पारंपरिक लोक नाट्य को संरक्षण देने की हरसंभव कोशिश करेगा.


Conclusion:बहरहाल, सदियों से चली आ रही जयपुर की तमाशा शैली मनोरंजन के बदलते आयामों के बावजूद अपनी आकर्षण शक्ति से जन जुड़ाव का एक सशक्त माध्यम बनी हुई है... जरूरत है कि सरकार जयपुर की इस पहचान को संरक्षण दे...
Intro:विलुप्त हो रही प्राचीन लोक परंपराओं के बीच जयपुर का लोकनाट्य तमाशा ने एक बार फिर अपने रंग बिखेरे.... 300 सालों के लंबे सफर के बाद आज भी तमाशा जनमानस में अपनी पहचान और लोकप्रियता बनाए हुए हैं... होली के अवसर पर लोगों को रिझाने वाले इस लोकनाट्य में इस बार हीर रांझे का मंचन हुआ...


Body:300 साल पुरानी जयपुर की पारंपरिक सभ्यता होली के मौके पर एक बार फिर जीवंत हुई... राजा महाराजाओं के समय से जयपुर में प्रचलित लोकनाट्य तमाशा का मंचन राजधानी के ब्रह्मपुरी क्षेत्र में हुआ... जयपुर के इतिहास को टटोलें तो हीर रांझा,,, राजा गोपीचंद,,, जोगी जोगन,,, छैला पणिहारी और लैला मजनू जैसे नाट्य का 52 जगहों पर मंचन हुआ करता था,,, जो अब महज ब्रह्मपुरी के छोटी अखाड़े तक ही सिमट कर रह गया है... जहाँ शास्त्रीय संगीत का तड़का लगाकर तमाशा शैली का प्रदर्शन किया जाता है... कलाकार भट्ट परिवार की 7 पीढ़ियों और इसी तरह क्षेत्रीय दर्शकों की भी 7 पीढ़ियां इस तमाशा कार्यक्रम से जुड़ी हुई हैं... जो जयपुर की सभ्यता और संस्कृति को आज भी साकार किए हुए हैं...

बिना किसी तामझाम के खुले मंच पर होने वाला जयपुर का पारंपारिक लोकनाट्य तमाशा में,,, सिर पर कलंगी वाला मुकुट, चटकीले रंग के वस्त्र धारण किए हुए, हाथ में मोर पंख, पैरों में घुंघरू बांधकर कलाकारों ने एक बार फिर हारमोनियम और सारंगी की धुनों पर स्वर छेड़े... होली के रस से भरे गीतों के साथ साथ इस बार उन्होंने हीर रांझा की कहानी को शब्दों के साथ उकेरा... वहीं मौके पर पहुंचे डिप्टी मेयर मनोज भारद्वाज ने कहा कि निगम प्रशासन अपनी संस्कृति को बचाए रखने के लिए पारंपरिक लोक नाट्य को संरक्षण देने की हरसंभव कोशिश करेगा...


Conclusion:बहरहाल, सदियों से चली आ रही जयपुर की तमाशा शैली मनोरंजन के बदलते आयामों के बावजूद अपनी आकर्षण शक्ति से जन जुड़ाव का एक सशक्त माध्यम बनी हुई है... जरूरत है कि सरकार जयपुर की इस पहचान को संरक्षण दे...
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.