जयपुर. कांग्रेस विधायक दल की बैठक को लेकर हुए टकराव के बाद राजस्थान में एक बार फिर विधायक गहलोत और पायलट कैंप में विभाजित हो गए हैं. हालांकि इस बार एक तीसरा कैंप भी बना है जो गहलोत-पायलट नहीं बल्कि कांग्रेस के साथ है. बहरहाल 70 से ज्यादा विधायकों के इस्तीफे (congress mla resignation) स्पीकर सीपी जोशी के पास पेंडिंग पड़े हैं. वहीं, सचिन पायलट के बाद अब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी दिल्ली पहुंच चुके (Ashok Gehlot Delhi Tour) हैं. मतलब साफ है कि अब राष्ट्रीय कांग्रेस की राजनीति के साथ ही राजस्थान कांग्रेस की राजनीति भी दिल्ली शिफ्ट हो चुकी है. आगामी 2 दिनों में ही साफ हो जाएगा कि कांग्रेस पार्टी का स्वरूप क्या रहेगा. कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत आज सोनिया गांधी से मुलाकात (Ashok Gehlot can meet Sonia Gandhi) करेंगे, उसके बाद ही यह तय होगा कि वह राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए नामांकन करते हैं या नहीं.
राष्ट्रीय स्तर पर बदलेगा कांग्रेस का चेहरा- सीएम अशोक गहलोत दिल्ली पहुंच चुके (Ashok Gehlot Delhi Tour) हैं और आज सोनिया गांधी से मुलाकात कर सकते हैं. मुलाकात के बाद यह तय होगा कि गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए नामांकन भरते हैं या नहीं. अगर गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन भरते हैं तो साफ है कि कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान में हुई गहलोत कैंप के विधायकों की बगावत को नजरअंदाज कर दिया है और गहलोत को क्लीन चिट दे दी है. क्योंकि अगर आलाकमान के कहने पर अशोक गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन (Congress President Election Nomination) भरते हैं तो फिर यह भी तय है कि वह राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे भी और ऐसे में राजस्थान में मुख्यमंत्री को लेकर केवल इतना ही झगड़ा रह जाएगा कि पायलट मुख्यमंत्री बनते हैं या किसी तीसरे पर दांव लगाया जाता है.
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लेकिन अगर गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन नहीं भरते हैं उस स्थिति में कांग्रेस आलाकमान के सामने दोहरा चैलेंज होगा कि कैसे राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की कुर्सी खाली हो क्योंकि उसके बाद सचिन पायलट या किसी और के लिए बात रखने की जगह गहलोत खुद मुख्यमंत्री बना रहना पसंद करेंगे. अगर गहलोत के सिवाय कोई और राष्ट्रीय अध्यक्ष बनता है तो उसके सामने पहली चुनौती अध्यक्ष बनने के साथ ही राजस्थान की होगी.
राजस्थान की राजनीति में बदलाव- अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते हैं, तो कांग्रेस आलाकमान के कहने पर वह सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाने के लिए राजी हो सकते हैं और विधायकों को इसके लिए इशारा भी कर सकते हैं.
गहलोत किसी तीसरे की वकालत करे- अगर गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन भर अध्यक्ष बनते हैं तो वह अपनी पुरानी बात पर भी कायम रह सकते हैं कि भले ही उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटा दिया जाए, लेकिन राजस्थान का मुख्यमंत्री सचिन पायलट को नहीं बनाकर उन 102 विधायकों में से किसी को भी बना दिया जाए जो 2020 में राजनीतिक उठापटक के समय कांग्रेस के साथ खड़े थे.
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अध्यक्ष नहीं बने तो खुद बने रहेंगे मुख्यमंत्री- अगर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का नामांकन दाखिल नहीं करते हैं, तो फिर ऐसी स्थिति में वह कांग्रेस आलाकमान से यही कहेंगे कि जब विधायकों का समर्थन उनके साथ है तो फिर उन्हें पद से क्यों हटाया जाए.
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नतीजा कुछ भी हो राजस्थान में होगा आमूलचूल परिवर्तन- राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के लिए नामांकन करें या नहीं करें, लेकिन एक बात साफ है कि अब राजस्थान में सत्ता और संगठन में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिलेंगे. यदि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मुख्यमंत्री रह भी जाते हैं तो ऐसे में वह कैबिनेट में परिवर्तन कर सकते हैं. वहीं, अगर मुख्यमंत्री पद छोड़ते हैं और सचिन पायलट या कोई तीसरा मुख्यमंत्री बनता है तो ऐसी स्थिति में राजस्थान की पूरी कैबिनेट का ही दोबारा गठन किया जा सकता है. ऐसे में 29 और 30 सितंबर राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ ही राजस्थान कांग्रेस के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण होने वाले हैं.