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Rajasthan High Court order: नियम विरुद्ध बनाया बीएलओ, काम नहीं किया तो की कार्रवाई, हाईकोर्ट ने लगाई रोक - ईटीवी भारत राजस्थान न्यूज

राजस्थान हाईकोर्ट ने बिना सहमति बीएलओ बनाने (punitive action taken against the teacher) से जुड़ी एक याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई की.

Rajasthan High Court stayed,  Rajasthan High Court order
राजस्थान हाईकोर्ट का आदेश.
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Published : Feb 17, 2023, 6:05 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने शिक्षा सचिव, निदेशक और एसडीओ बांसवाड़ा से पूछा है कि शिक्षक की सहमति के बिना उसे बीएलओ नियुक्त क्यों किया गया. जब उसने व्यक्तिगत कारणों से काम नहीं किया तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई क्यों की गई?. इसके साथ ही अदालत ने शिक्षक के खिलाफ की गई दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है. जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह आदेश लोकेश चंद पंड्या की याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए.

याचिका में अधिवक्ता सुनील कुमार सिंगोदिया ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता शारीरिक शिक्षक के तौर पर शिक्षा विभाग में कार्यरत है. निर्वाचन विभाग ने गत 8 अगस्त को आदेश जारी कर उसे बूथ लेवल अधिकारी नियुक्त कर दिया. जबकि इसके लिए याचिकाकर्ता शिक्षक से निर्वाचन विभाग ने सहमति नहीं ली. वहीं जब उसने व्यक्तिगत कारणों के चलते बीएलओ पद के कर्तव्यों की पालना नहीं की तो उसके खिलाफ 17 सीसीए के तहत कार्रवाई करते हुए एक वार्षिक वेतन वृद्धि असंचयी प्रभाव से रोक दी. साथ ही इसका उल्लेख उसकी सर्विस बुक में भी लाल स्याही से कर दिया गया.

पढ़ेंः Rajasthan High Court: निष्पक्ष और शीघ्र जांच की मांग करना पीड़ित और आरोपी का मौलिक अधिकार

याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के अनुसार किसी भी शिक्षक को उसकी सहमति के बिना चुनावी कार्यो में नहीं लगाया जा सकता. इसके अलावा याचिकाकर्ता के खिलाफ दंडादेश बांसवाड़ा उपखंड अधिकारी ने जारी किया है. जबकि वह दंड देने के लिए सक्षम अधिकारी ही नहीं है. प्रकरण में विभाग ने उसे बीएलओ का काम सौंपते समय सहमति भी नहीं ली. इसके अलावा वह व्यक्तिगत कारणों के चलते बीएलओ का काम नहीं कर सका था. ऐसे में याचिकाकर्ता के खिलाफ की गई दंडात्मक कार्रवाई को रद्द किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाते हुए संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने शिक्षा सचिव, निदेशक और एसडीओ बांसवाड़ा से पूछा है कि शिक्षक की सहमति के बिना उसे बीएलओ नियुक्त क्यों किया गया. जब उसने व्यक्तिगत कारणों से काम नहीं किया तो उसके खिलाफ विभागीय कार्रवाई क्यों की गई?. इसके साथ ही अदालत ने शिक्षक के खिलाफ की गई दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगा दी है. जस्टिस सुदेश बंसल की एकलपीठ ने यह आदेश लोकेश चंद पंड्या की याचिका पर प्रारंभिक सुनवाई करते हुए दिए.

याचिका में अधिवक्ता सुनील कुमार सिंगोदिया ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता शारीरिक शिक्षक के तौर पर शिक्षा विभाग में कार्यरत है. निर्वाचन विभाग ने गत 8 अगस्त को आदेश जारी कर उसे बूथ लेवल अधिकारी नियुक्त कर दिया. जबकि इसके लिए याचिकाकर्ता शिक्षक से निर्वाचन विभाग ने सहमति नहीं ली. वहीं जब उसने व्यक्तिगत कारणों के चलते बीएलओ पद के कर्तव्यों की पालना नहीं की तो उसके खिलाफ 17 सीसीए के तहत कार्रवाई करते हुए एक वार्षिक वेतन वृद्धि असंचयी प्रभाव से रोक दी. साथ ही इसका उल्लेख उसकी सर्विस बुक में भी लाल स्याही से कर दिया गया.

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याचिका में कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों के अनुसार किसी भी शिक्षक को उसकी सहमति के बिना चुनावी कार्यो में नहीं लगाया जा सकता. इसके अलावा याचिकाकर्ता के खिलाफ दंडादेश बांसवाड़ा उपखंड अधिकारी ने जारी किया है. जबकि वह दंड देने के लिए सक्षम अधिकारी ही नहीं है. प्रकरण में विभाग ने उसे बीएलओ का काम सौंपते समय सहमति भी नहीं ली. इसके अलावा वह व्यक्तिगत कारणों के चलते बीएलओ का काम नहीं कर सका था. ऐसे में याचिकाकर्ता के खिलाफ की गई दंडात्मक कार्रवाई को रद्द किया जाए. जिस पर सुनवाई करते हुए एकलपीठ ने दंडात्मक कार्रवाई पर रोक लगाते हुए संबंधित अधिकारियों से जवाब तलब किया है.

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