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Rajasthan High Court: चाकसू प्रधान के निलंबन आदेश की क्रियान्विति पर लगाई रोक

राजस्थान हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए चाकसू प्रधान के निलंबन आदेश की क्रियांविति पर रोक लगा दी है.

Rajasthan High Court,  High Court bans the implementation
निलंबन आदेश की क्रियान्विति पर लगाई रोक.
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Published : Aug 17, 2023, 8:38 PM IST

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने चाकसू प्रधान को राहत देते हुए पंचायती राज विभाग के उस आदेश की क्रियान्विति पर रोक लगा दी है, जिसके तहत उन्हें प्रधान पद से निलंबित किया गया था. जस्टिस इन्द्रजीत सिंह की एकलपीठ ने यह आदेश प्रधान उगन्ती देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

याचिका में अधिवक्ता प्रहलाद शर्मा ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता की कार्य प्रणाली को लेकर कुछ सरपंचों और चाकसू पंचायत समिति के कुछ सदस्यों ने पंचायती राज विभाग में याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. इस पर विभाग ने सात अगस्त 2022 को जांच अधिकारी नियुक्त कर जांच कराई. जांच अधिकारी ने एक पक्षीय जांच कर एक दिन बाद आठ अगस्त को जांच रिपोर्ट देते हुए याचिकाकर्ता को दोषी मान लिया. इस दौरान याचिकाकर्ता को शिकायत की कॉपी भी नहीं दी गई. इस कार्रवाई के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से विभाग के मंत्री के समक्ष अभ्यावेदन दिया गया.

पढ़ेंः Rajasthan High Court: मुनेश गुर्जर को मेयर पद से निलंबित करने को लेकर सरकार को जवाब पेश करने के निर्देश

जिस पर कार्रवाई करते हुए मंत्री ने याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन को जिला कलेक्टर को भेजते हुए पुन: जांच करने को कहा. वहीं कलेक्टर ने जांच के लिए प्रकरण संभागीय आयुक्त के पास भेज दिया. इसके बाद संभागीय आयुक्त ने जांच के लिए मामला जिला परिषद के सीईओ के पास भेजा. सीईओ ने प्रकरण को यह कहते हुए पुन: कलेक्टर के पास भेज दिया कि प्रकरण में याचिकाकर्ता की ओर से बीडीओ और कर्मचारियों के खिलाफ की गई शिकायत की जांच जिला परिषद ने की है और उन्हें दोषी माना है. ऐसे में अब याचिकाकर्ता के खिलाफ वे जांच नहीं कर सकते. याचिका में कहा गया कि जिला परिषद से पत्रावली मिलने के बाद कलेक्टर की ओर से कोई जांच नहीं की गई.

पढ़ेंः Rajasthan High Court: उदयपुरवाटी नगरपालिका चेयरमैन के निलंबन पर रोक

वहीं पंचायती राज विभाग ने आठ अगस्त की जांच रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता को निलंबित कर दिया. इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि पंचायती राज नियमों के तहत विभाग को निलंबन की कार्रवाई करने से पूर्व प्रारंभिक जांच करनी चाहिए थी. जांच रिपोर्ट में दोषी पाए जाने पर उसे निलंबित करना था. पूर्व की जांच रिपोर्ट को विभाग के मंत्री ने कलेक्टर को भेजते हुए पुन: जांच के आदेश दिए थे, लेकिन कलेक्टर ने जांच नहीं की. ऐसे में यह माना जाएगा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दी गई शिकायत पर कोई प्रारंभिक जांच ही नहीं हुई और पुरानी जांच रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता का निलंबन करना अवैध है. इसलिए निलंबन आदेश को रद्द किया जाए. वहीं राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को चार्जशीट जांच कर प्रकरण जांच के लिए भेजा जा चुका है. यदि जांच रिपोर्ट उनके पक्ष में आएगी तो उन्हें बहाल कर दिया जाएगा. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता के निलंबन आदेश पर रोक लगा दी है.

जयपुर. राजस्थान हाईकोर्ट ने चाकसू प्रधान को राहत देते हुए पंचायती राज विभाग के उस आदेश की क्रियान्विति पर रोक लगा दी है, जिसके तहत उन्हें प्रधान पद से निलंबित किया गया था. जस्टिस इन्द्रजीत सिंह की एकलपीठ ने यह आदेश प्रधान उगन्ती देवी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए.

याचिका में अधिवक्ता प्रहलाद शर्मा ने अदालत को बताया कि याचिकाकर्ता की कार्य प्रणाली को लेकर कुछ सरपंचों और चाकसू पंचायत समिति के कुछ सदस्यों ने पंचायती राज विभाग में याचिकाकर्ता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. इस पर विभाग ने सात अगस्त 2022 को जांच अधिकारी नियुक्त कर जांच कराई. जांच अधिकारी ने एक पक्षीय जांच कर एक दिन बाद आठ अगस्त को जांच रिपोर्ट देते हुए याचिकाकर्ता को दोषी मान लिया. इस दौरान याचिकाकर्ता को शिकायत की कॉपी भी नहीं दी गई. इस कार्रवाई के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से विभाग के मंत्री के समक्ष अभ्यावेदन दिया गया.

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जिस पर कार्रवाई करते हुए मंत्री ने याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन को जिला कलेक्टर को भेजते हुए पुन: जांच करने को कहा. वहीं कलेक्टर ने जांच के लिए प्रकरण संभागीय आयुक्त के पास भेज दिया. इसके बाद संभागीय आयुक्त ने जांच के लिए मामला जिला परिषद के सीईओ के पास भेजा. सीईओ ने प्रकरण को यह कहते हुए पुन: कलेक्टर के पास भेज दिया कि प्रकरण में याचिकाकर्ता की ओर से बीडीओ और कर्मचारियों के खिलाफ की गई शिकायत की जांच जिला परिषद ने की है और उन्हें दोषी माना है. ऐसे में अब याचिकाकर्ता के खिलाफ वे जांच नहीं कर सकते. याचिका में कहा गया कि जिला परिषद से पत्रावली मिलने के बाद कलेक्टर की ओर से कोई जांच नहीं की गई.

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वहीं पंचायती राज विभाग ने आठ अगस्त की जांच रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता को निलंबित कर दिया. इसे चुनौती देते हुए कहा गया कि पंचायती राज नियमों के तहत विभाग को निलंबन की कार्रवाई करने से पूर्व प्रारंभिक जांच करनी चाहिए थी. जांच रिपोर्ट में दोषी पाए जाने पर उसे निलंबित करना था. पूर्व की जांच रिपोर्ट को विभाग के मंत्री ने कलेक्टर को भेजते हुए पुन: जांच के आदेश दिए थे, लेकिन कलेक्टर ने जांच नहीं की. ऐसे में यह माना जाएगा कि याचिकाकर्ता के खिलाफ दी गई शिकायत पर कोई प्रारंभिक जांच ही नहीं हुई और पुरानी जांच रिपोर्ट के आधार पर याचिकाकर्ता का निलंबन करना अवैध है. इसलिए निलंबन आदेश को रद्द किया जाए. वहीं राज्य सरकार की ओर से कहा गया कि याचिकाकर्ता को चार्जशीट जांच कर प्रकरण जांच के लिए भेजा जा चुका है. यदि जांच रिपोर्ट उनके पक्ष में आएगी तो उन्हें बहाल कर दिया जाएगा. दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने याचिकाकर्ता के निलंबन आदेश पर रोक लगा दी है.

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