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गहलोत 'राज' 1 साल: कांग्रेस के संगठन और सत्ता के बीच 1 साल रहा खट्टा मीठा अनुभव - Government and organization coordination

प्रदेश की अशोक गहलोत सरकार 17 दिसंबर को अपना एक साल का कार्यकाल पूरा करने जा रही है, सरकार अपनी उपलब्धियां भी गिना रही है. कांग्रेस के अंदर सत्ता और संगठन के बीच का टकराव जग-जाहिर है. प्रदेश के लॉ-एंड-ऑर्डर, हाइब्रिड सिस्टम जैसे मुद्दों पर सरकार और संगठन कई बार आमने सामने हो चुके हैं. लेकिन अब मौजूद सरकार के लिए आने वाला वक्त कितना मुश्किलों भरा होगा इसे समझना जरुरी है...

Gehlot government, प्रदेश की कांग्रेस सरकार
गहलोत 'राज' 1 साल.
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Published : Dec 11, 2019, 8:00 PM IST

जयपुर. राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार का कार्यकाल 17 दिसंबर को एक साल पूरा होने जा रहा है. हालांकि कहा जाता है कि जब सरकार किसी पार्टी की प्रदेश में होती है तो ऐसे में वहां संगठन को सबसे उपर रखा जाता है. लेकिन राजस्थान में क्योंकि सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष हैं और राजस्थान की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं ऐसे में संगठन को प्रदेश में सर्वोपरी नहीं माना जा सकता...

गहलोत 'राज' 1 साल.

ऐसे में बात करें राजस्थान में कांग्रेस के संगठन और सरकार के साथ समन्वय की तो इसमें कुछ खट्टी मीठी बातें पूरे साल में देखने को मिली. जहां सरकार की शुरुआत इस बात के साथ हुई कि प्रदेश में सरकार का मुखिया कौन होगा जिसमें बीच का रास्ता निकला और दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने का तजुर्बा रखने वाले अशोक गहलोत को तीसरी बार राजस्थान की सत्ता की चाबी मिली. तो वहीं सचिन पायलट को भी प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन इसके ठीक 4 महीने बाद ही प्रदेश में लोकसभा चुनाव आ गए जिसमें सत्ता और संगठन ने मिलकर चुनाव लड़ा.

लेकिन यह भी सच है कि इतिहास में यह पहली बार हुआ कि लगातार दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में 25 की 25 सीटें हारनी पड़ी. लोकसभा चुनाव के बाद हार की जिम्मेदारी किसी की हो इसे लेकर भी प्रदेश में बहस छिड़ गई. कई विधायकों ने इसके लिए संगठन तो कईयों ने इसके लिए सरकार को जिम्मेदार बताया बस हाल जैसे-तैसे इसके बाद संगठन और सरकार के बीच तालमेल बनाने का प्रयास हुआ.

प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने सरकार और संगठन के बीच तालमेल बैठाने का जिम्मा अपने हाथ में लिया इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने अचानक सबको यह कहकर चौंका दिया कि प्रदेश में लॉ-एंड-ऑर्डर की स्थिति सुधारने की आवश्यकता है. इसके बाद एक बार फिर से सत्ता और संगठन में खींचतान की खबरें सामने आने लगी, जिसके बाद लगातार कांग्रेस आलाकमान की ओर से दोनों नेताओं के बीच ताल-मेल सुधारने का प्रयास किया गया.

ये भी पढ़ें: स्पेशल रिपोर्ट: स्मार्ट सिटी में रहने वालों ये तस्वीर भी देखो...चिमनी की रोशनी के तले पढ़ रहा देश का भविष्य

हालांकि इसे किसी ने कभी स्वीकार नहीं किया. इसके ठीक बाद प्रदेश में सत्ता और संगठन के बीच उस समय तनाव हो गया जब बसपा के 6 विधायकों ने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया. उसके बाद भी पायलट ने कहा कि इसकी उन्हें कोई जानकारी नही थी और बसपा के विधायकों ने अपने सत्र में विकास के लिए कांग्रेस पार्टी का दामन थामा है. हालात ये है कि अब तक सभी 6 विधायक कभी प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में नहीं आये हैं इस मामले में फिर एक बार प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने मध्यस्थता की और मामले को सुलझाया.

राजस्थान में उपचुनाव:

इसके बाद राजस्थान में मंडावा और खींवसर में हुए उपचुनाव में कांग्रेस को एक सीट मंडावा पर बड़ी जीत मिली. दूसरी सीट कांग्रेस लगातार तीन बार हारी. हालांकि इस बार जीत का अंतर काफी कम था. मंडावा पर जीत के बाद सरकार और संगठन दोनों को इसका क्रेडिट मिला. लेकिन जब प्रदेश के निकाय चुनाव को सीधे करवाने की बजाय पार्षदों द्वारा तय करने का निर्णय कांग्रेस सरकार ने ले लिया जिसके लिए कांग्रेस ने अपने ही चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किए और सरकार बनने के साथ ही प्रदेश में लागू किए गए सीधे चुनाव के नियमों को बदलना पड़ा.

हाइब्रिड सिस्टम मॉड्यूल:

हालांकि यहां तक तो सब ठीक था लेकिन जब प्रदेश में निकाय चुनाव के लिए एक हाइब्रिड सिस्टम मॉड्यूल अपनाने की बात सामने आई उसके बाद मामला फिर से बिगड़ गया. प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने इसका सीधे तौर पर विरोध किया और इस नियम को अलोकतांत्रिक बताया जिसके चलते यूडीएच विभाग को बाद में स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा. जिलमें कहा गया कि केवल विशेष परिस्थितियों में ही यह नियम लागू किया जाएगा और पार्टी के अध्यक्ष को ही अधिकार लागू करने का होगा. बहरहाल इस सफाई के बाद यह मामला भी शांत हो गया.

49 में से 37 निकायों में कांग्रेस को जीत:

प्रदेश में कांग्रेस ने रिकॉर्ड 49 में से 37 निकायों में जीत दर्ज की इस जीत ने कहीं ना कहीं कांग्रेस को लोकसभा की हार से उभारा. ना सिर्फ संजीवनी का काम किया बल्कि प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच सब ठीक नजर आ रहा है इसका संदेश भी देने की कोशिश की गई. अब सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने पंचायत चुनाव की है. जिसमें कांग्रेस हर हाल में जीतना चाहेगी क्योंकि निकाय चुनाव जीतने के बाद में और जिस तरीके से हमेशा कहा जाता है कि कांग्रेस गांव की पार्टी है और इसमें कांग्रेस को ही जीत मिलती है ऐसे में पहला चैलेंज कांग्रेस के सामने यह है कि पंचायत चुनाव में किस तरीके से जीत दर्ज की जाए.

सरकार और संगठन का तालमेल:

अगर प्रदेश में सत्ता और संगठन का तालमेल सही रहा तो पंचायत चुनाव को बेहतर तरीके से लड़ने की कांग्रेस के पास चुनौती होगी. वहीं प्रदेश में कांग्रेस के सामने एक चुनौती यह भी है कि किस तरीके से कांग्रेस कार्यकर्ता को राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए एडजस्ट किया जाए. इसे लेकर भी लगातार सत्ता और संगठन के बीच तककार की खबरें आती रही है. हालांकि अभी तक राजनीतिक नियुक्तियों के अलावा कांग्रेस कार्यकर्ता नियुक्ति के लिए इंतजार कर रहे हैं. वहीं जिस तरीके से बसपा के विधायकों को गहलोत सरकार के मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी देनी है उसे लेकर भी सत्ता और संगठन में तालमेल बनाने की एक चुनौती रहेगी.

पायलट के मुताबिक कांग्रेस का कार्यकाल संतोषजनक:
पिछले एक साल में सरकार और संगठन के बीच कई बार टकराव के हालात बने. लेकिन कहते हैं ना कि अंत भला तो सब भला. लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की गाड़ी जो पटरी से उतरी वह उपचुनाव और निकाय चुनाव में मिली जीत के बाद फिर से पटरी पर लौटती दिखाई दे रही है. और यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट सरकार के एक साल के कार्यकाल को संतोषजनक बता रहे हैं. लेकिन आने वाले वक्त में प्रदेश की गहलोत सरकार के लिए किसान, कर्जमाफी, रोजगार, जैसी समस्याओं से निपटने के लिए बड़ी चुनौती होगी.

जयपुर. राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार का कार्यकाल 17 दिसंबर को एक साल पूरा होने जा रहा है. हालांकि कहा जाता है कि जब सरकार किसी पार्टी की प्रदेश में होती है तो ऐसे में वहां संगठन को सबसे उपर रखा जाता है. लेकिन राजस्थान में क्योंकि सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष हैं और राजस्थान की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं ऐसे में संगठन को प्रदेश में सर्वोपरी नहीं माना जा सकता...

गहलोत 'राज' 1 साल.

ऐसे में बात करें राजस्थान में कांग्रेस के संगठन और सरकार के साथ समन्वय की तो इसमें कुछ खट्टी मीठी बातें पूरे साल में देखने को मिली. जहां सरकार की शुरुआत इस बात के साथ हुई कि प्रदेश में सरकार का मुखिया कौन होगा जिसमें बीच का रास्ता निकला और दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने का तजुर्बा रखने वाले अशोक गहलोत को तीसरी बार राजस्थान की सत्ता की चाबी मिली. तो वहीं सचिन पायलट को भी प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन इसके ठीक 4 महीने बाद ही प्रदेश में लोकसभा चुनाव आ गए जिसमें सत्ता और संगठन ने मिलकर चुनाव लड़ा.

लेकिन यह भी सच है कि इतिहास में यह पहली बार हुआ कि लगातार दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में 25 की 25 सीटें हारनी पड़ी. लोकसभा चुनाव के बाद हार की जिम्मेदारी किसी की हो इसे लेकर भी प्रदेश में बहस छिड़ गई. कई विधायकों ने इसके लिए संगठन तो कईयों ने इसके लिए सरकार को जिम्मेदार बताया बस हाल जैसे-तैसे इसके बाद संगठन और सरकार के बीच तालमेल बनाने का प्रयास हुआ.

प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने सरकार और संगठन के बीच तालमेल बैठाने का जिम्मा अपने हाथ में लिया इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने अचानक सबको यह कहकर चौंका दिया कि प्रदेश में लॉ-एंड-ऑर्डर की स्थिति सुधारने की आवश्यकता है. इसके बाद एक बार फिर से सत्ता और संगठन में खींचतान की खबरें सामने आने लगी, जिसके बाद लगातार कांग्रेस आलाकमान की ओर से दोनों नेताओं के बीच ताल-मेल सुधारने का प्रयास किया गया.

ये भी पढ़ें: स्पेशल रिपोर्ट: स्मार्ट सिटी में रहने वालों ये तस्वीर भी देखो...चिमनी की रोशनी के तले पढ़ रहा देश का भविष्य

हालांकि इसे किसी ने कभी स्वीकार नहीं किया. इसके ठीक बाद प्रदेश में सत्ता और संगठन के बीच उस समय तनाव हो गया जब बसपा के 6 विधायकों ने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया. उसके बाद भी पायलट ने कहा कि इसकी उन्हें कोई जानकारी नही थी और बसपा के विधायकों ने अपने सत्र में विकास के लिए कांग्रेस पार्टी का दामन थामा है. हालात ये है कि अब तक सभी 6 विधायक कभी प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में नहीं आये हैं इस मामले में फिर एक बार प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने मध्यस्थता की और मामले को सुलझाया.

राजस्थान में उपचुनाव:

इसके बाद राजस्थान में मंडावा और खींवसर में हुए उपचुनाव में कांग्रेस को एक सीट मंडावा पर बड़ी जीत मिली. दूसरी सीट कांग्रेस लगातार तीन बार हारी. हालांकि इस बार जीत का अंतर काफी कम था. मंडावा पर जीत के बाद सरकार और संगठन दोनों को इसका क्रेडिट मिला. लेकिन जब प्रदेश के निकाय चुनाव को सीधे करवाने की बजाय पार्षदों द्वारा तय करने का निर्णय कांग्रेस सरकार ने ले लिया जिसके लिए कांग्रेस ने अपने ही चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किए और सरकार बनने के साथ ही प्रदेश में लागू किए गए सीधे चुनाव के नियमों को बदलना पड़ा.

हाइब्रिड सिस्टम मॉड्यूल:

हालांकि यहां तक तो सब ठीक था लेकिन जब प्रदेश में निकाय चुनाव के लिए एक हाइब्रिड सिस्टम मॉड्यूल अपनाने की बात सामने आई उसके बाद मामला फिर से बिगड़ गया. प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने इसका सीधे तौर पर विरोध किया और इस नियम को अलोकतांत्रिक बताया जिसके चलते यूडीएच विभाग को बाद में स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा. जिलमें कहा गया कि केवल विशेष परिस्थितियों में ही यह नियम लागू किया जाएगा और पार्टी के अध्यक्ष को ही अधिकार लागू करने का होगा. बहरहाल इस सफाई के बाद यह मामला भी शांत हो गया.

49 में से 37 निकायों में कांग्रेस को जीत:

प्रदेश में कांग्रेस ने रिकॉर्ड 49 में से 37 निकायों में जीत दर्ज की इस जीत ने कहीं ना कहीं कांग्रेस को लोकसभा की हार से उभारा. ना सिर्फ संजीवनी का काम किया बल्कि प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच सब ठीक नजर आ रहा है इसका संदेश भी देने की कोशिश की गई. अब सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने पंचायत चुनाव की है. जिसमें कांग्रेस हर हाल में जीतना चाहेगी क्योंकि निकाय चुनाव जीतने के बाद में और जिस तरीके से हमेशा कहा जाता है कि कांग्रेस गांव की पार्टी है और इसमें कांग्रेस को ही जीत मिलती है ऐसे में पहला चैलेंज कांग्रेस के सामने यह है कि पंचायत चुनाव में किस तरीके से जीत दर्ज की जाए.

सरकार और संगठन का तालमेल:

अगर प्रदेश में सत्ता और संगठन का तालमेल सही रहा तो पंचायत चुनाव को बेहतर तरीके से लड़ने की कांग्रेस के पास चुनौती होगी. वहीं प्रदेश में कांग्रेस के सामने एक चुनौती यह भी है कि किस तरीके से कांग्रेस कार्यकर्ता को राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए एडजस्ट किया जाए. इसे लेकर भी लगातार सत्ता और संगठन के बीच तककार की खबरें आती रही है. हालांकि अभी तक राजनीतिक नियुक्तियों के अलावा कांग्रेस कार्यकर्ता नियुक्ति के लिए इंतजार कर रहे हैं. वहीं जिस तरीके से बसपा के विधायकों को गहलोत सरकार के मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी देनी है उसे लेकर भी सत्ता और संगठन में तालमेल बनाने की एक चुनौती रहेगी.

पायलट के मुताबिक कांग्रेस का कार्यकाल संतोषजनक:
पिछले एक साल में सरकार और संगठन के बीच कई बार टकराव के हालात बने. लेकिन कहते हैं ना कि अंत भला तो सब भला. लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की गाड़ी जो पटरी से उतरी वह उपचुनाव और निकाय चुनाव में मिली जीत के बाद फिर से पटरी पर लौटती दिखाई दे रही है. और यही वजह है कि कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट सरकार के एक साल के कार्यकाल को संतोषजनक बता रहे हैं. लेकिन आने वाले वक्त में प्रदेश की गहलोत सरकार के लिए किसान, कर्जमाफी, रोजगार, जैसी समस्याओं से निपटने के लिए बड़ी चुनौती होगी.

Intro:सरकार और संगठन का एक ख्याल कुछ खट्टा कुछ मीठा लोकसभा चुनाव हारे लेकिन बाकी चुनाव में कांग्रेस ने भाजपा को किया चित्त किया हालांकि प्रदेश के लॉ एंड ऑर्डर और हाइब्रिड सिस्टम पर सरकार और संगठन आमने सामने भी होते दिखे तो वंही अब भी पंचायत चुनाव जीतना ,बीएसपी से आये विधयकों को मंत्रिमंडल में जगह देना और राजनीतिक नियुक्तियों आने वाले समय के चैलेंज


Body:राजस्थान में अशोक गहलोत सरकार को 17 दिसंबर को 1 साल पूरा होने जा रहा है हालांकि कहा जाता है कि जब सरकार किसी पार्टी की प्रदेश में होती है तो ऐसे में वहां संगठन गौण हो जाता है लेकिन राजस्थान में क्योंकि सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष हैं और राजस्थान की सरकार में उपमुख्यमंत्री भी हैं ऐसे में संगठन को प्रदेश में गौर नहीं माना जा सकता ऐसे में बात करें राजस्थान में कांग्रेस के संगठन और सरकार के साथ समन्वय की तो इसमें कुछ खट्टी मीठी बातें पूरे साल में देखने को मिली जहां सरकार की शुरुआत इस बात के साथ हुई कि प्रदेश में सरकार का मुखिया कौन होगा जिसमें बीच का रास्ता निकला और दो बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहने का तजुर्बा रखने वाले अशोक गहलोत को तीसरी बार राजस्थान की सत्ता की चाबी मिली तो वहीं सचिन पायलट को भी प्रदेश का उपमुख्यमंत्री बनाया गया लेकिन इसके ठीक 4 महीने बाद ही प्रदेश में लोकसभा चुनाव आ गए जिसमें सत्ता और संगठन ने मिलकर चुनाव लड़ा लेकिन यह भी सच है कि इतिहास में यह पहली बार हुआ कि लगातार दो लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को राजस्थान में 25 की 25 सीटें हार नहीं पड़ी लोकसभा चुनाव के बाद हार की जिम्मेदारी किसी की हो इसे लेकर भी प्रदेश में बहस छिड़ गई कई विधायकों ने इसके लिए संगठन तो कईयों ने इसके लिए सरकार को जिम्मेदार बताया बस हाल जैसे-तैसे इसके बाद संगठन और सरकार के बीच तालमेल बनाने का प्रयास हुआ और प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने सरकार और संगठन के बीच तालमेल बैठाने का जिम्मा अपने हाथ में लिया इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने अचानक सबको यह कहकर चौंका दिया कि प्रदेश में लॉएंडऑर्डर की स्थिति सुधारने की आवश्यकता है इसके बाद एक बार फिर से सत्ता और संगठन में किस्तान की खबरें सामने आने लगी जिसके बाद लगातार कांग्रेस आलाकमान की ओर से दोनों नेताओं के बीच ताल में सुधारने का प्रयास किया गया हालांकि इसे किसी ने कभी स्वीकार नहीं किया इसके ठीक बाद प्रदेश में सत्ता और संगठन के बीच उस समय तनाव हो गया जब बसपा के 6 विधायकों ने कांग्रेस पार्टी का दामन थाम लिया उसके बाद भी पायलट ने कहा कि इसकी उन्हें कोई जानकारी नही थी और बसपा के विधायकों ने अपने सत्र में विकास के लिए कांग्रेस पार्टी का दामन थामा है हालात ये है कि अब तक सभी 6 विधायक कभी प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में नही आये है इस मामले में फिर एक बार प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे ने मध्यस्थता की ओर मानले को सुलझाया इसके बाद राजस्थान में उपचुनाव में हुए जिसमें राजस्थान कांग्रेस को एक सीट मंडावा पर बड़ी जीत मिली तो दूसरी सीट कांग्रेस लगातार तीन बार रही थी उस पर उसे मामूली अंतर से हार मिली जिसे कांग्रेस की जीत ही मानी जा रही है और जीत के बाद सरकार और संगठन दोनों को इसका क्रेडिट भी मिला लेकिन जब प्रदेश के निकाय चुनाव को सीधे करवाने की बजाय पार्षदों द्वारा तय करने का निर्णय कांग्रेस सरकार ने ले लिया जिसके लिए कांग्रेस ने अपने ही चुनाव घोषणा पत्र में शामिल किए और सरकार बनने के साथ ही प्रदेश में लागू किए गए सीधे चुनाव के नियमों को बदलना पड़ा हालांकि यहां तक तो सब ठीक था लेकिन जिस तरीके से प्रदेश में इन चुनाव के लिए एक हाइब्रिड सिस्टम मॉड्यूल अपनाने की बात सामने आई उसके बाद मामला फिर से बिगड़ गया और प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने इसका सीधा तौर पर विरोध किया और इस नियम को अलोकतांत्रिक बताया जिसके चलते यूडीएच विभाग को बाद में स्पष्टीकरण जारी करना पड़ा कि केवल विशेष परिस्थितियों में ही यह नियम लागू किया जाएगा और पार्टी के अध्यक्ष को ही अधिकार होगा कि विशेष परिस्थितियों में वह इस नियम का इस्तेमाल कर सके बहरहाल इस सफाई के बाद यह मामला भी शांत हो गया और कांग्रेस को इस नियम की जरूरत भी निकाय चुनाव में नहीं पड़ी और जब राजस्थान में निकाय चुनाव के नतीजे आए तो इस विषय पर हर किसी ने ले ली और प्रदेश में कांग्रेस ने रिकॉर्ड 49 में से 37 निकायों में जीत दर्ज की इस जीत ने कहीं ना कहीं कांग्रेस को लोकसभा की हार से उभारा और संजीवनी का काम किया था ना कि प्रदेश में सरकार और संगठन के बीच सब ठीक नजर आ रहा है लेकिन यह परिस्थितियां कब तक रहेगी यह आने वाला समय बताएगा
वाला समय सरकार और संगठन के लिए चुनौतियों वाला जहां राजनीतिक नियुक्तियां और पंचायती राज चुनाव में जीत और बसपा के विधायकों को कैबिनेट में हिस्सेदारी देना रहेगी सबसे बड़ी चुनौतियां
ऐसा नहीं है कि अब सरकार बनने के बाद कांग्रेस के सामने चुनौतियां नहीं है सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने पंचायत चुनाव की है जिसमें कांग्रेस हर हाल में जीत चाहेगी क्योंकि निकाय चुनाव जीतने के बाद में और जिस तरीके से हमेशा कहा जाता है कि कांग्रेस गांव की पार्टी है और इसमें कांग्रेस को ही जीत मिलती है ऐसे में पहला चैलेंज कांग्रेस के सामने यह है कि पंचायत चुनाव में किस तरीके से जीत दर्ज की जाती है और सत्ता और संगठन तालमेल के साथ इन चुनाव को बेहतर तरीके से लड़ते हैं और चुनाव के नतीजे निकाय चुनाव की तरह ही लेकर आते हैं तो वहीं प्रदेश में कांग्रेस के सामने एक चुनौती यह भी है कि किस तरीके से कांग्रेस कार्यकर्ता को राजनीतिक नियुक्तियों के जरिए एडजस्ट किया जाए इसे भी लेकर लगातार सत्ता और संगठन के बीच खान की खबरें आती रही है हालांकि अभी का राजनीतिक नियुक्तियों के अलावा कांग्रेस कार्यकर्ता नियुक्ति के लिए इंतजार कर रहे हैं जल्दी नियुक्तियों की आस है कि कांग्रेस सरकार और संगठन मिलकर कैसे कार्यकर्ताओं को एडजस्ट करते हैं तो वही जिस तरीके से बसपा के विधायकों को गहलोत सरकार के मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी देनी है उसे लेकर भी सत्ता और संगठन में तालमेल बनाने की एक चुनौती रहेगी
पायलट बोले 1 साल का कार्यकाल सरकार का संतोषजनक लोकसभा छोड़ बाकी चुनाव में कांग्रेस को मिली जीत
प्ले सत्ता और संगठन में कई बार 1 साल में टकराव के हालात बने हो लेकिन अंत भला तो सब भला की कहावत राजस्थान में सत्ता और संगठन के बीच बनी हुई है क्योंकि लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस की गाड़ी जो पटरी से उतर गई थी वह उपचुनाव और निकाय चुनाव में मिली जीत के बाद फिर से पटरी पर लौटती दिखाई दे रही है कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट भी अब कहते नजर आते हैं कि 1 साल सरकार का काम संतोषजनक रहा और जनता ने सरकार के काम को पूरी तरीके से पसंद किया है
बाइट सचिन पायलट प्रदेश अध्यक्ष राजस्थान कांग्रेस

इसमें सचिन पायलट के शार्ट है अशोक गहलोत के शार्ट हैं पुरानी वह वाइट भी है जिसमें पायलट ने सवाल उठाए थे हाइब्रिड सिस्टम पर बसपा विधायकों पर और राजनीतिक नियुक्तियों को लेकर और अंत में सरकार के 1 साल को संतोषजनक बताने की बाइट है जो नई है यह 1 साल सरकार के होने पर स्पेशल स्टोरी है इसका वीवो डेस्क से ही होगा


Conclusion:
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