जयपुर. देश भर में आज यानी 1 अगस्त को "मुस्लिम महिला अधिकार दिवस" मनाया जा रहा है. तीन तलाक के खिलाफ कानून के लागू होने के उपलक्ष्य में 2019 से पूरे देश में "मुस्लिम महिला अधिकार दिवस" मनाया जाने लगा. इन दिन मुस्लिम महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों के लिए जागरूक किया जाता है, लेकिन सच जानकर आप भी हैरान और परेशान होंगे क्योंकि कानून बनने के चार साल बाद भी इसका सही से इम्प्लीमेंट नहीं हो रहा है, जिसके चलते मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ के लिए दर-दर की ठोकरें खाने पड़ रही है. आंकड़े बताते हैं कि राजस्थान में इन चार सालों करीब आधा दर्जन जिलों में 15 से ज्यादा मामले तीन तलाक के सामने आ चुके हैं, लेकिन इन पीड़ित महिलाओं को इस कानून से भी न्याय नही मिल पा रहा है.
2019 में हुई शुरुआत : भारत में मुस्लिम महिला अधिकार दिवस की शुरुआत 1 अगस्त से हुई. नेशनल मुस्लिम वुमन वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष निशात हुसैन बताती है कि देश में लंबे समय से चली आ रही मुस्लिम महिलाओं की तीन तलाक कानून की मांग लागू होने के उपलक्ष्य में 1 अगस्त को पूरे देश में चार साल से मुस्लिम महिला अधिकार दिवस मनाया जाता है. इस कानून में शरीयत या मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, मुस्लिम पुरुषों को लगातार तीन बार तलाक शब्द का उच्चारण करके अपनी शादी को समाप्त करने का विशेषाधिकार को गैरकानूनी मानते हुए दंड का प्रावधान किया गया है. 2019 में भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सख्त आदेश के बाद तीन तलाक के खिलाफ कानून लेकर आई. निशात हुसैन बताती है कि इस दिन का मुख्य उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को अधिक से अधिक उनके कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक करना है, जिसमें खास तौर पर तीन तलाक कानून जो 30 साल की एक लंबी लड़ाई के बाद मिला उसके बारे में बताया जाता है.
कानून लागू, लेकिन लाभ नहीं : निशात हुसैन बताती है कि देश में भले ही मुस्लिम महिलाओं को ट्रिपल तलाक के खिलाफ कानून अधिकार दे दिए हों, लेकिन आज भी देश और प्रदेश में तीन तलाक के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. राजस्थान की बात करें तो ट्रिपल तलाक कानून आने के बाद से अब तक आधा दर्जन जिलों में 15 से अधिक तीन तलाक के केस सामने आ चुके हैं, हुसैन बताती हैं कि ये तो वो कुछ मामले है जो पुलिस थानों में दर्ज हुए हैं, कई मामले तो पारिवारिक और समाज के डर से सामने नहीं आ रहे हैं. दुर्भाग्य इस बात का है कि भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन के 30 साल के संघर्ष के बाद बने इस कानून का फायदा मुस्लिम महिलाओं को नहीं मिल रहा है. प्रदेश में कानून बनने के बाद हुए तीन तलाक के मामलों में एक अजमेर का केस छोड़ दें तो अभी तक किसी भी केस में दोषी को सजा नहीं मिली है. दर्जनों मुस्लिम बहनें आज भी इंसाफ के लिए भटक रही हैं. थाने में सुनवाई नहीं होती है, जब तक कानून धरातल पर लागू नहीं होगा तब तक इन पीड़ित मुस्लिम बहनों को न्याय नहीं मिलेगा.
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2 साल से न्याय का इंतजार: ट्रिपल तलाक से पीड़ित सना खान बताती उसकी शादी जयपुर के रहने वाले अमानुऊल्ला से साल 2020 में हुई थी. शादी के बाद से ही पत्नी उसके साथ लगातार दहेज को लेकर मारपीट करता, धीरे-धीरे बात इस कदर बढ़ गई कि उसने 2022 में उसके साथ जबरदस्त मारपीट की और तलाक तलाक तलाक बोलकर उसको छोड़ दिया. सना बताती है कि पिछले एक साल से अपनी डेढ़ साल की बेटी को लेकर न्याय की गुहार को लेकर दर-दर की ठोकरें खा रही है. ट्रिपल तलाक को लेकर भले ही कानून बन गया लेकिन आज भी उसका लाभ पीड़ित महिलाओं को नहीं मिल रहा है. सना बताती है कि वह ट्रिपल तलाक कानून के नियमों को लेकर पुलिस थाने भी गई, लेकिन पुलिस ने उसके अमानुऊल्ला को गिरफ्तार नहीं किया. अब हालात ये है कि वह सरेआम धमकियां देता है. सना कहती है कि ऐसे कानून का क्या फायदा जिससे पीड़ितों को न्याय नहीं मिलता हो.
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किस जिले में कितने केस : ट्रिपल तलाक के आंकड़ों पर नजर डालें तो कानून बनने के बाद राजधानी जयपुर में 6 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं. वहीं कोटा में एक, अजमेर में दो, बांसवाड़ा में एक, भरतपुर में एक, टोंक में दो, बूंदी और पाली में भी एक एक मामले सामने आ चुके है. नेशनल मुस्लिम वुमन वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष निशात हुसैन बताती हैं कि अजमेर के मामले को छोड़ दें तो बाकी किसी भी मामले में अब तक कोई भी कार्रवाई पुलिस की तरफ से ट्रिपल तलाक देने वाली पुरुष पर नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि पुलिस का जो रवैया है यह पीड़ित महिलाओं को और ज्यादा निराश करता है. देश में कानून बन गया, लेकिन इस कानून को धरातल पर लागू कर पीड़ितों को न्याय दिलाना ही पुलिस का काम है. जो आज भी राजस्थान में सही तरीके से नहीं हो रहा है. जिसकी वजह से कई मुस्लिम महिलाओं को दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर होना पड़ रहा है.