जयपुर. प्रदेश में निकाय और निगम चुनाव सीधे हो या पहले की तरह अप्रत्यक्ष रुप से हो. इसे लेकर कांग्रेस के सामने अब मुसीबत खड़ी हो गई है. चुनाव कैसे हो इसे लेकर मंत्री शांति धारीवाल को एक टास्क दिया गया है. वहीं सभी चुने हुए कांग्रेस के जनप्रतिनिधियों से बात करके रिपोर्ट तैयार करें कि चुनाव को किस तरीके से करवाया जाए. इस रिपोर्ट के आधार पर ही सरकार तय करेगी. इस बार के निकाय चुनाव में कांग्रेस अपने निर्णय पर डटी रहना है या फिर सरकार बनने के बाद लाया गया अपना ही संशोधन वह वापस लेना है.
दरअसल, राजस्थान कांग्रेस ने अपने मेनिफेस्टो में वादा किया था. अगर कांग्रेस की सरकार प्रदेश में बनती है. तब प्रदेश में निकाय और निगमों के चुनाव में शैक्षणिक देता की शर्त को हटाई जाएगी. इसके साथ ही प्रदेश में निगम और निकाय प्रमुख के चुनाव भी सीधे करवाए जाएंगे. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही गहलोत ने विधानसभा में शैक्षणिक बाध्यता की शर्त को हटाते हुए निगम के महापौर और निकाय के सभापति के चुनाव सीधे करवाने का निर्णय भी ले लिया.
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लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस के नेताओं में यह डर सता रहा है कि कहीं सीधे चुनाव करवाने से ऐसा ना हो कि भाजपा लोकसभा चुनाव की तरह निगम और निकाय के चुनाव में भी बड़ा नुकसान कर दे. खुद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस बात पर प्रदेश कांग्रेस में हुई बैठक में कहा था कि वह इस बात को दिखा रहे हैं.
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अब राजस्थान कांग्रेस की ओर से निकाय और निगम के चुनाव सीधे या अप्रत्यक्ष हो. इसका जिम्मा संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल को सौंपा गया है. कांग्रेस के सामने दिक्कत यह है कि अपने ही नियम को बदलाव करें तो किरकिरी होगी. लेकिन अगर नियम नहीं बदला और नेताओं के भाजपा के अनुच्छेद- 370 के नाम पर चुनाव में जीत मिलने का डर सच साबित हुआ तो कांग्रेस को ज्यादा नुकसान हो सकता है. गौरतलब है कि अप्रत्यक्ष चुनाव में मतदाता अपने प्रत्याशी का चुनाव स्वंय नहीं करते है. बल्कि उन लोगों का चुनाव करते हैं. जो इन पदों के लिए प्रत्याशियों का चुनाव करेगें.