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मनीषा कुमावतः मजदूर की बेटी जिसने JET जैसी परीक्षा को टॉप कर दिया - जोबनेर की मनीषा जेट टॉपर

'मंजिल उनको मिलती है जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता हौसले से उड़ान होती है'. किसी शायर की लाइन आप सभी ने पढ़ी और सुनी होगी लेकिन जयपुर के जोबनेर कस्बे की रहने वाली एक मजदूर की बेटी मनीषा कुमावत ने इसे सच कर दिखाया है. मनीषा ने जेट में पहला स्थान हासिल कर साबित कर दिया कि ढृढ़ निश्चय, मेहनत और जूनुन के आगे गरीबी भी घुटने टेक देती है.

Rajasthan Jet exam topper, राजस्थान न्यूज
जोबनेर की मनीषा जेट टॉपर
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Published : Oct 29, 2020, 8:18 AM IST

जयपुर. अक्सर लोग गरीबी, मुश्किल और सुविधा के अभाव का रोना रोते हैं, जिस कारण वे सफलता के लिए प्रयास भी नहीं करते लेकिन जयपुर के जोबनेर कस्बे की एक लाडो ने साबित कर दिया कि सपनों को पूरा करने के ललक के सामने हर अड़चन छोटी होती है. जोबनेर कस्बे की मनीषा कुमावत की सफलता ने उनका भी मुंह बंद कर दिया, जो बेटियों को कम समझते हैं. राजस्थान के एक छोटे कस्बे की मजदूर की बेटी ने जेट 2020 परीक्षा में सामान्य वर्ग राजस्थान में पहला स्थान प्राप्त कर न सिर्फ मां-बाप का बल्कि जयपुर का नाम रौशन किया है.

जोबनेर की मनीषा जेट टॉपर

जयपुर से 50 किलोमीटर दूर जोबनेर कस्बे में रहने वाली मनीषा कुमावत को कल तक कोई नहीं जानता था लेकिन मनीषा इन दिनों सुर्खियां में बनी हुई है. घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है. आज कस्बे और शहर में मनीषा की चर्चा हो रही है.

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माता-पिता के साथ मनीषा

राजस्थान कृषि महाविद्यालय में प्रवेश के लिए आयोजित जेट 2020 परीक्षा में सामान्य वर्ग में पहला स्थान प्राप्त कर मजदूर की इस बेटी ने साबित कर दिया है कि लड़कियों को मौका मिले तो वो लड़कों से कम नहीं है.

मां-बाप ने ताने सुने फिर भी बेटी को पढ़ाया

अक्सर ग्रामीण अंचल में मां-बाप 12वीं पास करने के बाद लड़की की पढ़ाई छुड़ा देते हैं और जल्द उसकी शादी कर देते हैं. जिसकी वजह से लड़कियां अपने सपने को पूरा नहीं कर पाती हैं लेकिन मनीषा के मजदूर पिता शिक्षा के महत्व को समझते हुए हमेशा बेटी का साथ दिया. इसके लिए उन्हें समाज से ताने सुनने पड़े पर उन्होंने हार नहीं मानी.

480 में से 330 अंक किए हासिल

मनीषा के परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर है. पिता मेहनत मजदूरी करके जैसे-तैसे करके परिवार का पेट पालते हैं. बचपन से ही मनीषा पढ़ना चाहती थी. ऐसे में पिता ने बेटी के ख्वाब को मुक्कमल करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी. बेटी ने भी मां-बाप के सपने को पूरा करने के लिए जी जान से मेहनत की और जेट में सबको पीछे छोड़कर पहला स्थान हासिल किया. जोबनेर की इस बेटी ने राजस्थान जेट परीक्षा में समान्य वर्ग में 480 में से 330 अंक लाकर सामान्य वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त किया है.

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अपनी सफलता पर मनीषा कहती हैं कि एक लड़की के सामने चुनौती ज्यादा होती हैं. मेरा कोई भाई नहीं है. मैं तीन बहनें हूं. दो की शादी हो गई है. पापा ने मुझे कभी पढ़ाई करने से नहीं रोका. उन्हीं के साथ की बदौलत में इस मुकाम पर पहुंच सकी हूं.

किसानों की मदद करने का सपना

मनीषा कहती हैं कि मेरा कृषि वैज्ञानिक बनने का सपना है. जिससे ग्रामीणों को फसल की उपज और उसका सही मूल्य दिला पाऊं. वहीं लड़का-लड़की में भेदभाव को लेकर वो कहती हैं कि आज लड़का-लड़की में भेदभाव नहीं समझना चाहिए क्योंकि जो लड़के कर सकती हो तो लड़की भी कर सकती है.

मां-बाप ने कहा-'बेटी छोरो से कम नहीं'

वहीं अपनी बेटी के इस सफलता पर मनीषा के पिता रामकरण कुमावत फुले नहीं समा रहे. बेटी ने उनकी मेहनत और उम्मीदों में रंग भर दिया है. रामकरण कुमावत कहते हैं कि मेरी बेटी ने आसपास के इलाके में नहीं बल्कि राजस्थान में नाम रोशन किया है, जो हमारे सम्मान दिलाया है, उस खुशी का ठिकाना नहीं है.

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पैदल कई किमी चलकर पढ़ने जाती थी मनीषा

वो कहते हैं कि बेटी ने यह साबित कर दिया कि बेटी-बेटे से कम नहीं है. मनीषा के पिता कहते हैं कि समाज के तानों से परेशान होकर कभी-कभी हमें गम होता था कि हमारे बेटा नहीं लेकिन आज इसी बेटी पर फक्र है.

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मनीषा की मां विमला देवी कहती है कि आज भी समाज में बेटियों को बोझ समझता जाता है. थोड़ी बड़ी हुई नहीं की उसकी शादी कर देते है. जबकि मां बाप का फर्ज बनता है कि वो बेटी के सपनों में अपनी खुशी की तलाश करे. बेटी यह साबित कर दिया कि वो भी कोई छोरों से कम नहीं है.

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दिन रात मेहनत से पाई सफलता

मनीषा ने सुविधाओं के अभाव में मेहनत में कोई कसर नहीं छोड़ी. पढ़ाई के साथ चूल्हा-चौका और घर के कामकाज में भी मां का हाथ बंटाती थी. जोबनेर की मनीषा एक उदाहरण है, उन बच्चों के लिए जो सुविधाओं के अभाव में हताश हो जाते हैं.

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मां के काम में हाथ बंटाती मनीषा

इस मजदूर की बेटी ने साबित कर दिया कि सफलता के जरूरी नहीं की सुविधाएं मिले बल्कि जरूरत है कठोर परिश्रम की, फिर नामुमकिन लक्ष्य को भी आसानी से प्राप्त किया जा सकता जा सकता है.

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